न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★हर साल बजट किसी खास सेक्टर पर फोकस करता है। ताकि उस क्षेत्र में जरूरी विकास किया जा सके। इसे ही बजट की थीम कहते हैं। जैसे इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ‘DigitAll’ थीम पर बजट पेश करेंगी। पिछले कुछ वर्षों की बजट थीम पर नजर डालें तो कभी बजट वुमन सेंट्रिक कहलाया, कभी ‘आत्मनिर्भर भारत’ वाला, तो कभी ‘डिजिटल इंडिया’ की थीम पर जारी हुआ।★
‘थीम’ यानी खास फोकस। आपने पूजा पंडालों की थीम के बारे में सुना ही होगा। देशभक्ति, बॉलीवुड या स्पेस मिशन की थीम पर बने पंडाल देखे भी होंगे। पिछले कुछ वर्षों से देश का बजट भी थीम बेस्ड आ रहा है।
हर साल बजट किसी खास सेक्टर पर फोकस करता है। ताकि उस क्षेत्र में जरूरी विकास किया जा सके। इसे ही बजट की थीम कहते हैं। जैसे इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ‘DigitAll’ थीम पर बजट पेश करेंगी। पिछले कुछ वर्षों की बजट थीम पर नजर डालें तो कभी बजट वुमन सेंट्रिक कहलाया, कभी ‘आत्मनिर्भर भारत’ वाला, तो कभी ‘डिजिटल इंडिया’ की थीम पर जारी हुआ।
पिछले 9 वर्षों में मोदी सरकार में पेश हुई बजट थीम और उसके नतीजों का खास पैटर्न नजर आता है। बजट थीम जिस सेक्टर पर रही, उसके आने के बाद वही सेक्टर चुनौतियों की चपेट में आ गया। जिस सेक्टर की भलाई को लेकर कल्पना की गई; आने वाले समय में उसी सेक्टर का सबसे ज्यादा खस्ताहाल देखने को मिला। कभी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों तो कभी महामारी की चपेट में आकर मोदी सरकार के बजट की थीम अपने रास्ते से डगमगा गई।
पहले बजट की थीम- ‘सबका साथ-सबका विकास’
2014 में मोदी सरकार का पहला बजट वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया। इस बजट की थीम थी- ‘सबका साथ-सबका विकास’, लेकिन इसके तुरंत बाद ही देश भर में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए। 2015 में दादरी का चर्चित अखलाक हत्याकांड सामने आया और गिरजाघरों पर भी हमले देखने को मिले। असहिष्णुता को लेकर देश भर में हंगामा हुआ; फिर JNU विवाद सुलग उठा। इन सबके विरोध में साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों ने अपने अवॉर्ड वापस किए। ‘सबका साथ-सबका विकास’ वाले नारे के साल भर के भीतर ही देश अलग-अलग खेमों में बंटता दिखा।
दूसरे बजट की थीम- कालेधन पर लगाम और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’
मोदी सरकार का दूसरा बजट 28 फरवरी, 2015 को पेश किया गया। इस बार कई थीम थीं। जिसमें मुख्य रूप से ‘कालेधन पर लगाम’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘कारोबार को सुगम बनाने का संकल्प’ सर्वोपरि था। लेकिन इसके अगले ही साल देश में नोटबंदी लागू हो गई, जिसके चलते आने वाले कई साल तक सरकार इन तीनों थीमों को पार लगाने में जुटी रही। नोटबंदी के चलते ढेरों छोटे व्यापारियों की कमाई बंद हो गई।
CMIE यानी ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ के एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के शुरुआती 1 महीने में ही छोटे उद्योगों को लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। कई कंपनियां तो पूरी तरह ठप हो गईं। इस साल के बजट का मेन फोकस ‘कालेधन’ को लेकर भी नतीजा सिफर रहा। बाद में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि नोटबंदी का उद्देश्य कालाधन वापस लाना था ही नहीं।
तीसरे बजट में किसानों पर जोर, सड़क पर आया अन्नदाता
साल 2016-17 का बजट भी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया। इस बजट के केंद्र में किसान रहे। अगले 5 सालों में किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया। 5 साल पूरे होने से पहले ही यह थीम भी दम तोड़ती नजर आई।
सरकार से जुड़े लोगों ने 2016-17 के बजट को ‘गांव-गरीब-किसान’ का बजट कहा। लेकिन 2020 में तीन कृषि कानून अध्यादेश के जरिए लाए गए। जिसके विरोध में जगह-जगह पर किसानों की नाराजगी सड़कों पर उतर आई। 2021 आते-आते आंदोलन ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया। सरकार और किसानों में लंबे वक्त तक तलवार खिंची रही। आखिरकार सरकार को अपनी तलवार वापिस म्यान में रखनी पड़ी।
चौथे बजट में इंफ्रा और डिजिटल इकोनॉमी पर जोर, कोविड में आई काम
2017-18 का बजट वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली का चौथा बजट था। इस बजट में हेल्थ केयर, शिक्षा, रोजगार, MSME, इंफ्रा सेक्टर और स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स पर फोकस रहा।
लेकिन इसके 3 साल बाद जब कोविड आया तो उसे संभालने में देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर नाकाफी साबित हुआ। अस्पताल से लेकर श्मशान तक लंबी लाइनें देखी गईं। हालांकि, इस दौरान पहले से तैयार डिजिटल इकोनॉमी से लोगों को थोड़ी राहत मिली।
2018-19 के बजट में ‘आयुष्मान भारत योजना’, नहीं आई कोरोना में काम
2018-19 का बजट बतौर वित्त मंत्री अरुण जेटली का आखिरी बजट था। इस बजट में ‘आयुष्मान भारत योजना’ की घोषणा हुई। 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख रूपए प्रतिवर्ष के स्वास्थ्य बीमा कवच से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया।
2019-20 तक योजना के पूर्ण रूप अमल में आने की उम्मीद थी, लेकिन 2020-21 में आई कोविड की दो लहरों ने स्वास्थ्य बीमा के कवच को चटका दिया। कई अस्पतालों ने कोविड में इस योजना का लाभ देने से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ, कोविड के दौरान बड़ी आबादी अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों के लिए दर-दर भटकती रही।
लोकसभा चुनाव से पहले बजट, किसानों को हर साल 6 हजार रुपए
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश किया। इसमें कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं हुआ, सिवाय ‘पीएम किसान निधि’ योजना के।
इसके तहत देश के छोटे और सीमांत किसानों को हर साल 6 हजार रुपए नकद देने का फैसला किया गया, यानी 500 रुपए महीने। सरकार की इस नीति की देश भर में प्रशंसा हुई।
नई सरकार के पहले बजट भाषण में अमीरों पर टैक्स की बात, दुनिया के दूसरे सबसे अमीर भारत से निकले
साल 2019-20 में मोदी सरकार 2.0 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया। यह उनका और किसी भी पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री का पहला बजट था। इस बजट में निर्मला सीतरमण ने कहा कि देश के विकास के लिए अमीरों को ज्यादा टैक्स देने की जरूरत है। बजट में अमीर टैक्सपेयर्स पर सरचार्ज की दो दरें पेश की गईं।
सुनने में यह क्रांतिकारी कदम लगा। माना जा रहा था कि इसके बाद अमीर और गरीब के बीच की खाई थोड़ी कम होगी, लेकिन कुछ अलग ही देखने को मिला। जनवरी 2020 से जून 2021 के बीच गौतम अडानी की संपत्ति 7 गुना बढ़ गई। यही नहीं, अडानी 2022 में अमेरिकी बिजनेसमैन जेफ बेजोस के बाद दुनिया के दूसरे सबसे अमीर इंसान भी बन गए। इधर, कोविड के चलते देश की अर्थव्यवस्था में नकारात्मक वृद्धि हुई और प्रति व्यक्ति आय भी कम हुई।
2020-21 में केयरिंग सोसाइटी की बात, कोविड में लावारिस लाशों का ढेर
साल 2020-21 के लिए निर्मला सीतारमण ने बजट में मुख्य रूप से तीन बातों पर फोकस किया-
1. केयरिंग सोसाइटी का निर्माण
2. सबका आर्थिक विकास
3. महत्वाकांक्षी भारत का निर्माण
इस बजट के पेश होने के कुछ महीने बाद ही देश ने कोविड का भयंकर दौर देखा। इस दौरान समाज का स्याह पक्ष भी उजागर हुआ। बच्चों ने कोविड से मरे मां-बाप की लाशों को लेने से इनकार कर दिया। नदियों में तैरती लाशों ने भी दुनिया भर का ध्यान खींचा। सबसे मुश्किल वक्त में ‘केयरिंग सोसाइटी’ में एक-दूसरे की केयर करने वाले लोग कहीं नजर आए तो कहीं नदारद मिले।
ऑक्सीजन सिलेंडर, जरूरी दवाएं और अस्पताल के बेड तक की कालाबाजारी दिखी। इस साल लोगों की महत्वाकांक्षा भी खुद को किसी तरह जिंदा रखने तक सिमट गई और देश की इकोनॉमी लगभग ठप हो गई।
2021-22 में स्वास्थ्य बजट 137% बढ़ा, विशेषज्ञ बोले- देर आए, दुरुस्त आए
साल 2021-22 में कोविड की वजह से निर्मला सीतारमण ने देश का पहला डिजिटल बजट पेश किया। इस बार के बजट में स्वास्थ्य बजट को बढ़ाकर 2,23,846 करोड़ रुपए किया गया। जो 2020-21 में 94,452 करोड़ रुपए था। कोविड वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए रखे गए। भारत ने न केवल स्वदेशी वैक्सीन बनाई बल्कि कई देशों को मुहैया भी कराई।
कोविड के खौफनाक अनुभव के बाद हेल्थ सेक्टर के बजट बढ़ाने का विशेषज्ञों ने स्वागत किया। लेकिन साथ में यह भी कहा गया कि ऐसा फैसला अगर कोविड के शुरुआती दौर में होता तो कई जानें बच जातीं।
2022-23 में आत्मनिर्भर भारत पर जोर, बढ़ गया व्यापार घाटा
साल 2022-23 का बजट मुख्य रूप से ‘आजादी के अमृत महोत्सव पर अगले 25 साल का लक्ष्य’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर केंद्रित रहा। लेकिन इस बजट के पेश होने के बाद आत्मनिर्भर होने की जगह देश का व्यापार घाटा बढ़ गया। हमने दूसरे देशों से आयात ज्यादा किया, जबकि उसके मुकाबले में निर्यात कम हो गया।
अंत में एक्सपर्ट की राय…
आर्थिक मामलों के जानकार विकास वर्मा बताते हैं- सरकार और संसद यानी विधायिका का काम है योजना और कानून बनाना। दूसरी ओर, कार्यपालिका यानी ब्यूरोक्रेसी का काम है उसे लागू करना और आम लोगों को उसका लाभ पहुंचाना। अब चाहे सरकार जितनी अच्छी योजनाएं बना ले; जब तक उन्हें लागू करने वालों की नीयत और इच्छाशक्ति सही नहीं होगी; बजट अपनी थीम से भटकता रहेगा।
इस बार की थीम है DigitAll
साहिर लुधयानवी का एक शेर कुछ यूं है-
‘’तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को
बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने’’
अतीत के अनुभवों से ये सीख मिलती है कि केंद्र सरकार ने जिन-जिन योजनाओं को बड़े दिल से प्यार के साथ पेश किया, उनका अंजाम उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।
‘सबका साथ-सबका विकास’ अल्पसंख्यकों पर हमले के शोर में दब गया। ‘खेती-किसानी’ वाली थीम किसानों को भड़का गई। कालाधन वापस लाने और व्यापार को आसान बनाने की थीम नोटबंदी में नोटों को राख कर गई। लाखों छोटे बिजनेस पर बड़े ताले लटक गए। वित्त मंत्री ने जब अमीरों पर अधिक टैक्स लगाने और अमीर-गरीब की खाई को पाटने की बात की तो पहले से अमीरों की संपत्ति आठ-दस गुना बढ़ गई और प्रति व्यक्ति आय घट गई। आम आदमी के सिर पर कर्ज दोगुना हो गया।
वैसे, इस बार की बजट थीम ‘DigitAll’ है। यानी सरकार सबको टेक-सेवी बनाने का सोच रही है; तो आप अपने गैजेट्स चाक-चौबंद कर लें, पैसा कहीं भी खोसेंगे, नजर आ जाएगा। खैर, कोई बात नहीं। ये आज का भारत है और बड़े-बड़े लोकतंत्रों में छोटी-मोटी बातें हो जाया करती हैं।