डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
बिहार की राजनीति में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा। जदयू में जिस तरह से सीएम नीतीश कुमार को साइड कर दिया गया है, उससे भविष्य की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव दिखने को मिल सकता है। मोदी कैबिनेट विस्तार के बाद से ही यह कहा जा रहा है कि सीएम नीतीश से पूछे बिना आरसीपी सिंह ने मंत्री पद का एक सीट स्वीकार कर लिया।
कहते हैं इतिहास दोहराता है. जी हां! इस बात की चर्चा बिहार के राजनीतिक हलके में हो रही है. यह चर्चा मोदी मंत्रिमंडल विस्तार के बाद से शुरू हुई है. कहा जा रहा है कि क्या जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की मर्जी के बगैर मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हो गए हैं. अगर नहीं तो अभी तक नीतीश कुमार ने एक भी बधाई का संदेश सोशल मीडिया के जरिए मंत्रिमंडल विस्तार पर क्यूं नहीं दिया. वो भी तब जब जदयू मंत्रिमंडल में शामिल हो चुकी है. सवाल इसीलिए उठ रहा है कि क्या जदयू का इतिहास एक बार फिर से दोहराया जा रहा है.
दरअसल, कैबिनेट के विस्तार में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह का मंत्री पद की शपथ लेना भी एक बड़ा संदेश देता है. वो भी तब जब जिनके ऊपर पार्टी ने पूरी ज़िम्मेदारी सौंपी थी. राजनीति में जब आपको पावर मिलता है तो सत्ता की महक आपको परेशान करने लगती है. 2015 में जब राजद और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा और बिहार की सत्ता पर भाजपा को हराकर कब्जा किया था, उस वक़्त जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव हुआ करते थे. महागठबंधन की सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही शरद यादव लालू यादव के नज़दीकी होते चले गए और नीतीश कुमार की तल्खी लालू यादव के साथ बढ़ती चली गई.
एक समय ऐसा भी आया जब नीतीश कुमार ने लालू यादव का साथ छोड़ भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की बात जदयू में उठाई. तब शरद यादव ने इस बात का कड़ा विरोध किया, लेकिन तब नीतीश कुमार ने शरद यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी से हटने पर मजबूर कर दिया और खुद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. फिर कुछ दिन के बाद भाजपा की मदद से बिहार में NDA की सरकार बना मुख्यमंत्री भी बन गए.
2020 में नीतीश कुमार ने काम का बोझ बढ़ने का हवाला देकर राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी ख़ाली कर अपनी जगह अपने करीबी और स्वजातीय आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया. आरसीपी सिंह जो 2019 में मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री बनते बनते रह गए थे. जब शपथ के दिन उन्हें भोज के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन तब मात्र एक सीट मिलने की वजह से नीतीश कुमार ये तय नहीं कर पा रहे थे कि किसे भेजें. ललन सिंह को या आरसीपी सिंह को. क्योंकि नीतीश कुमार के लिए दोनों ख़ास थे और नीतीश किसी भी एक को नाराज़ नहीं करना चाहते थे.
इस बार भी जब मोदी मंत्रिमंडल की चर्चा शुरू हुई तो बीजेपी से बातचीत के लिए नीतीश कुमार ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को अधिकृत कर दिया. इस बार आर सी पी सिंह खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और वो पूरी तरह अधिकृत थे कि फ़ैसला क्या लेना है. बातचीत शुरू हुई और बात फिर से वहीं आकर फंस गई कि जदयू को एक से ज़्यादा सीट नहीं मिलेगी. इस बार आरसीपी सिंह ने कोई रिस्क नहीं लिया और उन्होंने तय कर लिया कि इस बार एक अगर कोई बनेगा तो वही बनेंगे. भले ही नीतीश कुमार के 2019 में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का हवाला दें.
इस सवाल पर कि क्या आरसीपी सिंह का फ़ैसला जदयू के लिए सही है, इस सवाल पर जदयू के वरिष्ठ नेता उपेन्द्र कुशवाहा कहते हैं कि वो राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और जो भी फ़ैसला है उनका है. वहीं ललन सिंह के मंत्री नहीं बनाए जाने के सवाल पर कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार ने अभी तक बधाई क्यूं नहीं दी इस पर उन्होंने कहा कि बधाई देने के कई तरीके होते हैं.