
न्यूज़ टुडे टीम ब्रेकिंग अपडेट : कानपुर/ उत्तरप्रदेश :
कानपुर में उत्तर प्रदेश के मोस्ट वॉन्टेड अपराधी विकास दुबे का खेल खत्म हो चुका है. पिछले 30 साल से आंतक मचाने वाले इस गैंगस्टर को पुलिस ने शुक्रवार को मौत के घाट उतार दिया. प्रदेश में अपराध की घटनाओं से तंग आ चुके लोग विकास दुबे के एनकाउंटर को सही ठहरा रहे हैं. लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं. जाहिर है आने वाले दिनों में पुलिसवालों पर हत्या का मुकदमा चलेगा और मामले की जांच होगी. लेकिन सवाल उठता है क्या सच में पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई. पुलिस को अब कोर्ट में ये साबित करना होगा कि अगर वो फायरिंग नहीं करते तो फिर उनकी भी जान जा सकती थी. आईए पूरे घटनाक्रम को कानून की नजरों से समझने की कोशिश करते हैं.
कैसे हुआ एनकाउंटर? क्या कहती है पुलिस
पुलिस के मुताबिक, आरोपी विकास दुबे को एसटीएफ उत्तर प्रदेश लखनऊ टीम द्वारा पुलिस उपाधीक्षक तेजबहादुर सिंह के नेतृत्व में सरकारी गाड़ी से लाया जा रहा था. यात्रा के दौरान कानपुर नगर के सचेण्डी थाना क्षेत्र के कन्हैया लाल अस्पताल के सामने पहुंचे थे कि अचानक गाय-भैंसों का झुंड भागता हुआ रास्ते पर आ गया. लंबी यात्रा से थके ड्राइवर ने इन जानवरों से दुर्घटना को बचाने के लिए अपनी गाड़ी को अचानक मोड़ने की कोशिश की. जिसके बाद ये गाड़ी अनियंत्रित होकर पलट गई. इस गाड़ी में बैठे पुलिस अधिकारियों को गंभीर चोटें आईं. इसी बीच विकास दुबे अचानक हालात का फायदा उठाकर घायल निरीक्षक रमाकांत पचौरी की सरकारी पिस्टल को झटके से खींच लिया और दुर्घटना ग्रस्त सरकारी वाहन से निकलकर कच्चे रास्ते पर भागने लगा. जिसके बाद पुलिस को गोली चलानी पड़ी.