न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : मोतिहारी/ बिहार :
29 मई वही दिन है जब इंसान ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवेरेस्ट को फतह कर लिया था। तब से इस दिन को पूरी दुनिया में माउंट एवरेस्ट दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन पर्वतारोहण में दिलचस्पी रखने वालों के लिए काफी खास होता है। हालांकि, पूर्वी चंपारण जिला हिमालयी क्षेत्र से नजदीक होने के बावजूद भी यहां पर्वतारोहण जैसी गतिविधियां उतनी प्रचलित नहीं रही हैं। लेकिन अब यहां के युवाओं ने भी पर्वतारोहण व इससे जुड़ी गतिविधियों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया है।
सुगौली के पर्वतारोही रवि ने बनाए हैं कई कीर्तिमान जिले के सुगौली प्रखंड अंतर्गत सुगांव निवासी रवि राज मिश्रा ने पर्वतारोहण के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। रवि बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही पहाड़ों से लगाव रहा है। यही कारण है कि वो कई बार साइकिल से ही नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में चले जाते थे। उन्होंने वर्ष 2011 में पर्वतारोहण कि बेसिक माउंटेनियरिग तथा एडवांस माउंटेनियरिग कोर्स हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिग से पूरी की।
इसके बाद लद्दाख स्थित माउंट स्टॉक कांगड़ी (6153 मीटर) की चढ़ाई पूरी की। वर्ष 2013 में टीएसएएफ में बछेंद्री पाल के निर्देशन में प्रशिक्षक नियुक्त हुए। वहीं, जुलाई 2013 में हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति स्थित बरशागिरी में आइएमएफ द्वारा आयोजित पर्वतारोहण प्रतियोगिता में भाग लिया और 6290 मीटर ऊंची एक अनाम चोटी को फतह किया। उसके बाद जुलाई 2015 से अक्टूबर माह के बीच लद्दाख स्थित माउंट कंगयास्ते-6200 की सफलतापूर्वक चढ़ाई की। वहीं, जम्मू कश्मीर एलओसी के नजदीक स्थित वहां की सबसे ऊंची चोटी माउंट नुन पर अमेरिकन ऑस्ट्रेलियन टीम के साथ चढ़ाई पूरी की। हालांकि इस दौरान वे पहली बार फर्स्ट डिग्री फ्रॉस्ट बाइट के शिकार हो गए थे।
एवरेस्ट फतह करने की है चाहत
रवि बताते हैं कि उनका अगला लक्ष्य माउंट एवरेस्ट को फतह करना है। विगत कई सालों से वे इसकी तैयारी में जुटे हैं। लेकिन प्रायोजक नहीं मिलने के कारण उन्हें आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। एक बहुत ही खर्चीला इवेंट है। एवरेस्ट की चढ़ाई करने में कम से कम 35 लाख रुपए का खर्च आता है। रवि बताते हैं कि अगर बिहार सरकार पर्वतारोहण को प्रोत्साहित करे तो यहां के युवाओं में भी काफी प्रतिभा है और वे इस क्षेत्र में काफी आगे जा सकते हैं। बिहार राज्य में वर्तमान में उनको मिलाकर मात्र दो पर्वतारोही ही हैं। आर्थिक मदद के अभाव में माउंट एवरेस्ट पर बिहार का परचम लहराने से वंचित हैं।