
न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
सरकारी महकमों के लिए तबादला कोई नई बात नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर बिहार में जून महीने में हुए इन तबादलों पर घमासान क्यों मचा है। असल में जून में होने वाले तबादलों की खास बात यह है कि ये तबादले मंत्री स्तर से किए जा सकते हैं। यही नहीं, बड़े पैमाने पर तबादला होने के कारण इस पर कोई सवाल-जवाब भी नहीं होता।
2005 से पहले बिहार में तबादलों को कोई महीना नहीं होता था। विभाग जब चाहे तब अफसर और कर्मियों का ट्रांसफर कर सकती थी। 2005 में जब पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने तो उन्होंने तबादलों को लेकर एक सर्कुलर जारी किया। इसके बाद यह नियम बन गया कि रूटीन ट्रांसफर सिर्फ साल में एक बार जून महीने में होंगे। सरकार की तरफ से यह व्यवस्था तबादला अराजकता को खत्म करने के लिए की गई थी। इस नियम की वजह से नए पदस्थापन के बाद किसी भी कर्मी और पदाधिकारी को 1 साल से पहले नई पोस्टिंग नहीं दी जा सकती थी। अगर 1 साल से पहले ट्रांसफर-पोस्टिंग की जाती है तो इसके लिए विभाग को सरकार के सामने इसका वाजिब कारण बताना पड़ता है और इसे इमरजेंसी ट्रांसफर-पोस्टिंग की श्रेणी में रखना पड़ता है।
जून का ट्रांसफर मंत्रियों के लिए क्यों है अहम
ट्रांसफर-पोस्टिंग यूं तो एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन इसमें जून का ट्रांसफर काफी अहम होता है। वजह ये होती है इस महीने में लगभग सभी विभाग ट्रांसफर-पोस्टिंग की लिस्ट जारी करते हैं। हजारों की संख्या में होनेवाले इस ट्रांसफर-पोस्टिंग को विभाग के स्तर से तैयार किया जाता और वहीं एक तरह से अंतिम मुहर भी लग जाती है। इसकी वजह है कि इतनी बड़ी संख्या में होनेवाले तबादलों की गहराई से जांच नहीं की जा सकती। मुख्य सचिव स्तर पर जब ये फाईले जाती हैं तो उन पर औपचारिक रूप से मुहर लगा दी जाती है। इससे विभाग को यह फायदा होता है कि वे मनचाहे तरीके से अधिकारियों की पोस्टिंग कर सकते हैं। तबादलों की इस बाढ़ में दागी से लेकर काम नहीं करनेवाले अफसर भी पैरवी की बदौलत अपनी नैया पार करा लेते हैं।
पेड ट्रांसफर-पोस्टिंग के लगते रहे हैं आरोप
जून में होनेवाले ट्रांसफर-पोस्टिंग में पैसे लेकर पोस्टिंग दी जाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। हालांकि इस आरोप को लगाने वाली पार्टी कोई एक नहीं। सत्ता परिवर्तन के हिसाब से इस मुद्दे को उठाने वाली पार्टियां भी बदलती रही हैं। हमेशा से इस तरह के आरोप विपक्ष में रहने वाली पार्टी ही लगाती है। राजद और जदयू की साझा सरकार में भाजपा ने मंत्रियों पर पैसे लेकर पोस्टिंग देने के आरोप लगाए थे। अब कांग्रेस और राजद जैसी विपक्षी पार्टियां इस मामले को समय-समय पर उठाती हैं, लेकिन यह पहली बार हुआ है कि सत्ता पक्ष के लोग ही ट्रांसफर-पोस्टिंग पर सवाल खड़े कर रहे हैं। भाजपा के ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू ने अपने मंत्रियों पर पैसे लेकर ट्रांसफर करने के आरोप लगाए हैं। जदयू से आनेवाले समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी तो उनसे भी एक कदम आगे बढ़ते दिख रहे हैं। मदन सहनी ट्रांसफर नहीं कर पाने पर इतने गुस्से में आ गए हैं कि उन्होंने इस्तीफे तक की पेशकश कर दी है।