न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : नई दिल्ली :
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में विरासत को लेकर चाचा और भतीजा की जंग थमने का नाम नहीं ले रही। जहां चिराग पासवान लगातार पिता की पार्टी पर पहला हक रखने की बात कर रहे हैं, वहीं उनके चाचा पशुपति पारस ने पार्टी के ज्यादातर नेताओं का समर्थन जुटाकर लोजपा पर अपने नेतृत्व का दावा कर चुके हैं। इस बीच चिराग ने खुलासा किया है कि बिहार के विधानसभा चुनाव में उनका एनडीए से अलग होकर लड़ने का फैसला भाजपा के साथ चर्चा के बाद लिया गया था। जबकि उस वक्त भी उनकी पार्टी में इस फैसले को लेकर आंतरिक मतभेद जारी थे।
बता दें कि लोजपा का जदयू के खिलाफ अलग से चुनाव लड़ना पार्टी के बागी नेताओं को खासा नापसंद था। यहां तक कि तब पशुपति पारस ने भी इसे खराब फैसला करार दिया था। माना जाता है कि यहीं से पार्टी में दरार पड़ने की शुरुआत हो गई थी। हालांकि, अपने अकेले चुनाव लड़ने के निर्णय का बचाव करते हुए चिराग ने कहा, “फैसले को लेकर भाजपा को सारी जानकारी दी गई थी। उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष, गृह मंत्री और राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष जी को बैठक के दौरान बताया गया था कि सिर्फ 15 सीटों के साथ बिहार चुनाव में लोजपा का उतरना संभव नहीं है।
चिराग की शिकायत- भाजपा नेताओं ने ‘वोटकटवा’ तक कहा
एक अखबार को दिए इंटरव्यू में चिराग ने बताया कि भाजपा नेताओं के साथ बैठक में उन्होंने साफ कर दिया था कि अगर आने वाली सरकार में उनके एजेंडे को कोई अहमियत नहीं दी जाएगी, तो उनका ऐसे गठबंधन में रहने का क्या फायदा। चिराग ने कहा कि उनका गठबंधन 2014 से ही भाजपा के साथ था, तब जदयू दृश्य में भी नहीं थी। इसलिए हमने फैसला किया कि हम विधानसभा चुनाव में छह सीटों को छोड़कर बाकी पर भाजपा के खिलाफ नहीं लड़ेंगे।
लोजपा सांसद ने बताया कि चुनाव से पहले भाजपा के साथ बैठक के दौरान ये कहा गया था कि चुनाव के दौरान या इसके बाद दोनों पक्षों के बीच कोई कड़वाहट नहीं रहेगी। मैंने उनसे कहा था कि मेरा भरोसा आप (भाजपा) पर है, नीतीश कुमार पर नहीं। मैं आपके बारे में कुछ नहीं कहूंगा और आपकी तरफ से ऐसी ही उम्मीद करता हूं। लेकिन चुनाव के दौरान मैंने वोट कटवा से लेकर अलग-अलग शब्द सुनने शुरू कर दिए। इससे मुझे काफी कष्ट हुआ।