न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
कोरोना काल ने लोगों से रिश्ते की भी पहचान कराई। मौत की सूचना के बाद सिर्फ बड़ी बेटी का पति अपने दो दोस्तों के साथ पहुंचा बाकि के रिश्तेदार और पड़ोसियों ने मुंह मोड़ लिया। ऐसे समय में जिनसे पहचान तक नहीं थी उन्होंने रिश्ते निभाये।
कोरोना संक्रमण से हो रही मौतों के कारण कुछ परिवार अंतिम संस्कार करने में भी मजबूर और असहाय हो जा रहे हैं। किसी का कोई वारिस या परिवार नहीं है तो किसी के पास पैसे की मजबूरी।अब ऐसे लोगों के लिए काशी में आरएसएस उनका वारिस और सहारा बनकर कफ़न, कंधा के लेकर अंतिम संस्कार की रस्में निभाएगा। दुद्धी ,सोनभद्र के रहनेवाले वाले उमाशंकर तिवारी (65) वर्ष की दुर्घटना के 8 महीने तक बिस्तर पर रहने के बाद इंफैक्शन से तबियत बिगड़ी तो शनिवार को ट्रामा सेंटर में भर्ती हुए जिनकी रविवार की सुबह मौत हो गई।
मौत के बाद सिर्फ दो बेटी रत्ना और रचना उर्फ सपना तथा पत्नी सरोजा देवी का रो रो कर बुरा हाल था। मृतक पेंटर का काम करते थे। बेटियां और लाचार पत्नी यही सोच रहे थे कि कोरोना के नाम पर कोई आएगा नहीं। आखिर कौन करेगा अंतिम संस्कार।
इसकी जानकारी आरएसएस काशी दक्षिण, सेवा भारती को हुई जिन्होंने सौरभ सिंह और मिथिलेश तिवारी को इनके परिवार के साथ खड़े होकर शव यात्रा की तैयारी और दाहसंस्कार की जिम्मेदारी सौंपी। अंतिम यात्रा के सामान लेकर कार्यकर्ता ट्रामा सेंटर पहुंच गए और उसके पहले सामनेघाट मदरवां स्थित अस्थाई शवदाह स्थल पर चिता लगवाई।
कोरोना काल ने लोगों से रिश्ते की भी पहचान कराई। मौत की सूचना के बाद सिर्फ बड़ी बेटी का पति अपने दो दोस्तों के साथ पहुंचा बाकि के रिश्तेदार और पड़ोसियों ने मुंह मोड़ लिया। ऐसे समय में जिनसे पहचान तक नहीं थी उन्होंने रिश्ते निभाये। आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने ट्रामा सेंटर से एम्बुलेंस द्वारा अंत्येष्टि स्थल तक शव को पहुंचाया और अंतिम संस्कार की रस्मे निभाई। बेटी रत्ना और सपना ने कंधा दिया जबकि छोटी बेटी सपना ने पिता को मुखाग्नि दिया।
मिथिला की बेटी सिंपी को सलाम, बेटा बन किया विधिवत पिता का अंतिम संस्कार और श्राद्ध कर्म
वहीं कोरोना के इस महाकाल में जहां एक ओर लोग मृतकों को छोड़ देते हैं और उनका दाह संस्कार भी नहीं करते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस महामारी के दौर में उदाहरण प्रस्तुत कर एक नया संदेश देते हैं, ताजा मामला झारखंड की राजधानी रांची से है, बताया जा रहा है कि पृथ्वीराज झा नामक एक आदमी के निधन होने पर उनकी दो बेटियों ने ना सिर्फ उनका अंतिम संस्कार किया बल्कि 12वीं और 13वीं के दिन विधिपूर्वक महापात्र के द्वारा पिंड दान कर उनक श्राद्ध कर्म को संपन्न किया।
सुजीत झा लिखते हैं कि स्व पृथ्वीराज झा आइ अपन दुनु बेटी के देखि गौरवान्वित होइत हेताह। दुनु बेटी मुखाग्नि स ल पंचदान श्राद्ध तक विधि विधान स संपादित क रहल छन्हिं। आई द्वादश कर्म छन्हिं।
आजुक विकराल समय मे जतऽ अपन बेटा पुतहु और समाज अपन माता पाता के अंत्योष्ठी तक नै करैत छैक ओहि ठाम हिनक श्राद्ध कर्म पुत्र नै रहला के वादो और एकटा बेटी के विवाह भेला के उपरान्तो विधि विधान संग संपादित भ रहल छन्हि।
इ एकटा नब आयाम थिक। बेसक कर्मकाण्ड मे बहुत अलग अलग प्रथा छै लेकिन समय के संग ओहि मे बदलाव हो त लाश गंगा मे बहेबाक जरूरत नहि परतै।
ज्येष्ठ पुत्री सिम्पी के विवाह भ गेल छन्हिं ओ TCS मे उच्च पद पर कार्यरत छथि हुनक सासु ससुर सेहो कहलखिन्ह जे अहाँ मुखाग्नि स ल विधान के संग पंचदान श्राद्धकर्म पूर्ण करू हमरा सब के तरफ स कोनो रोक नै अछि। अहाँ अपन माता पिता के बेटी नै बेटा छियनि। विनम्र श्रद्धाँजलि।