
न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : नई दिल्ली :
देश के अगले चीफ जस्टिस होंगे एनवी रमन्ना. कल यह घोषणा भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने की है जस्टिस एनवी रमन्ना अगले महीने 24 अप्रैल को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के तौर पर शपथ लेने जा रहे हैं, लेकिन कल जब उन्होंने यह घोषणा की तो उस से कुछ ही घण्टे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की ओर से भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को की गई शिकायत को खारिज कर दिया. जिसमें उन्होंने जस्टिस एनवी रमना पर आरोप लगाया था कि वह राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए राज्य की न्यायपालिका को प्रभावित करने की प्रयास कर रहे थे
अब यह पूरा मामला क्या था आपको विस्तार से जानना चाहिए क्योंकि मामला न्याय के मंदिर के प्रधान पद से जुड़ा हुआ है, मोदी सरकार में न्यायपालिका की साख का क्षरण होते हमे सभी देख रहे हैं ओर यह मामला भी बहुत दिलचस्प है आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाइ.एस. जगन मोहन रेड्डी ने 6 अक्टूबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट के जज एन.वी. रमन और हाइकोर्ट के कई जजों पर न्यायिक कदाचार और भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया था. देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि एक मुख्यमंत्री ने औपचारिक रूप से उच्च न्यायपालिका के एक सदस्य पर राजनीतिक पक्षपात और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए.
जगन रेड्डी ने यह पत्र लिखने के बाद 6 अक्टूबर में नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की. 10 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम ने एक प्रेसकांफ्रेन्स में इस पत्र की प्रतियां बांटीं और साथ ही एक नोट पढ़कर सुनाया, जिसमें मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि जस्टिस रमन्ना ने राज्य की पिछली चंद्रबाबू नायडू सरकार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपनी बेटियों के पक्ष में किया. और उनकी दो बेटियों ने अमरावती में राज्य की राजधानी बनने की घोषणा से पहले ही बड़े पैमाने पर दलितों की ज़मीन को गैर-कानूनी ढंग से ख़रीदा. लेकिन यह बात उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजय कलेम खुल कर नही बतला सके वजह थी आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का एक ऑर्डर. असाधारण रूप से अमरावती भूमि विवाद के मामले में मीडिया रिपोर्टिंग को लेकर आंध्र हाईकोर्ट द्वारा पाबंदी लगा दी गई थी.
दरअसल 2014 में आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने प्रदेश की राजधानी को अमरावती ले जाने का निर्णय लिया और उच्च पदों पर बैठे कुछ अधिकारियों ने डिसिजन मेकिंग प्रोसेस में शामिल होने का फायदा उठाया. कोर कैपिटल एरिया कहां होगा, इसका उन्हें पता था कि राजधानी कहां बनेगी, राजधानी का मुख्य क्षेत्र कहां होगा, चंद्रबाबू नायडू की सरकार के दौरान महाधिवक्ता रहे श्रीनिवास ने अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल किया, और राजधानी को लेकर बनने वाले प्लान की पहले ही जानकारी जुटा ली. ये सब Capital Plan Authority Bill, 2014 के जरिए राजधानी का प्लान सार्वजनिक होने से ठीक पहले किया गया. उसके बाद इन गांवों की जमीन की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई. एफआई में आरोप है कि इस तरह से कुछ लोगों ने जमीन के जरिए मोटा पैसा बनाया. तत्कालीन महाधिवक्ता श्रीनिवास उनमें से एक थे.ओर इनमे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमन्ना की दो बेटियों नथलापति श्रीतनूजा और नथलापति श्रीभुवना के नाम भी थे.
इस मामले में जो एफआईआर दर्ज की गई उसमे श्रीतनूजा और श्रीभुवना को 10वें और 11वें आरोपी के रूप में शामिल किया गया. लेकिन बात सिर्फ जगनमोहन के आरोपों की ही नही है. मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चेलमेश्वर ने एक पत्र लिख कर कहा था कि जस्टिस एनवी रमन्ना और एन चंद्रबाबू नायडू के बीच अच्छे रिश्ते हैं. अपने पत्र में उन्होंने लिखा था कि अविभाजित आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के बारे में एनवी रमन्ना की रिपोर्ट और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की टिप्पणी में समानताएं थीं.
उन्होंने कहा था, “ये न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच ग़ैर-ज़रूरी नज़दीकी का सबसे बड़ा उदाहरण हैं.” वैसे जगनमोहन जिन्होंने यह आरोप लगाया वो खुद भी कोई दूध के धुले नही है जगनमोहन रेड्डी पर यह आरोप भी है कि जब उनके पिता वाई. एस. राजशेखर रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन्हें प्रभावित कर निजी कंपनियों को सस्ते में खनन के अधिकार दिलवाए और इसके बदले उनसे फ़ायदे लिए थे। सीबीआई की जाँच और उसकी रिपोर्ट के आधार पर इनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट ने जगनमोहन रेड्डी पर 5 मुकदमे कर दिए। इसके बाद वह चुनाव जीते ओर मुख्यमंत्री बने.
लेकिन यहाँ प्रश्न न्यायपालिका के सर्वोच्च पद से जुड़ी गरिमा का है. साफ दिख रहा है कि जस्टिस रमन्ना की नियुक्ति के मामले में बहुत सी बातों को छुपा लिया गया है हो सकता है कि अंदरखाने में कुछ डील हो गयी हो.