
न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
राजनीति का ऐसा आकर्षण है कि उसके लिए पुलिस-प्रशासन के बड़े ओहदेदार नौकरी तक छोड़ देते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद अगर इसका अवसर मिले तो उसे सौभाग्य या सौगात समझिए। बिहार में ऐसे कई सौभाग्यशाली हैं और फिलहाल कई बेकल भी। विधानसभा के चुनावी दंगल में दांव आजमाने के लिए वे अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे।
बिहार की राजनीति में नौकरशाहों के राजनेता बनने का सिलसिला काफी पुराना है। फिलवक्त बिहार पुलिस के डीजी पद से सेवानिवृत्त होने वाले सुनील कुमार ने जदयू का दामन थामकर चर्चा को हवा दे दी है। सुनील पुलिस भवन निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक (एमडी) रह चुके हैं। उन्हीं की हैसियत वाले अशोक गुप्ता बहुत पहले ही राजद की लालटेन लेकर विधानसभा पहुंचने का एलान कर चुके हैं। सेवानिवृत्त आइपीएस अफसर श्रीधर मंडल के अलावा बिक्री कर विभाग के सेवानिवृत्त कमिश्नर दिगंबर तिवारी की राजद से दावेदारी पक्की मानी जा रही। पुलिस के सर्वोच्च पद पर कीर्ति कायम कर चुके दो ऐसे चेहरे भी हैं, जो देर-सवेर चुनावी अखाड़े में ताल ठोकते नजर आएंगे।
थाने की चौखट से विधानसभा की देहरी तक
दिलचस्प यह कि भारतीय पुलिस सेवा के अफसरों के साथ जूनियर रैंक वाले भी खादी का रौब हासिल करते रहे हैं। उनमें नालंदा जिला में राजगीर से जदयू के विधायक रवि ज्योति और औरंगाबाद जिला में ओबरा से निर्दलीय विधायक रहे चुके सोम प्रकाश शामिल हैं। उनकी देखादेखी सैल्यूट करते-करते ऊब चुके कई ओहदेदार सलामी लेने की उम्मीद में बेताब हुए जा रहे। एसटीएफ में सब इंस्पेक्टर रहे सोम प्रकाश विधानसभा में ओबरा की नुमाइंदगी कर चुके हैं। हालांकि 2015 के चुनाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। थानेदार की नौकरी से त्यागपत्र देने वाले रवि ज्योति इस बार भी राजगीर से दांव आजमा सकते हैं। डीएसपी की जिम्मेदारी निभाने के बाद मनोहर सिंह मौजूदा समय में कटिहार जिला में मनिहारी से विधायक हैं। वे 2010 में जदयू और 2015 में कांग्रेस से विधायक चुने गए। इस तरह एक के बाद दूसरे दल के निशान पर चुनाव जीतने का रिकार्ड भी उनके नाम है।
दल के दम पर
दरअसल, सत्ता के प्रति बढ़ते आकर्षण के साथ किसी ने वर्तमान व्यवस्था से नाराजगी जताई तो किसी ने अवकाश ग्रहण करने के बाद राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा। सुर्खियों में रहने के लिए खुद की पार्टी बनाने तक का उपक्रम हो रहा है। राष्ट्रवादी चेतना पार्टी का गठन करने वाले पूर्व आइपीएस अफसर राम निरंजन राय एक उदाहरण हैं। हालांकि अभी सफलता नहीं मिली है, क्योंकि चुनावी दंगल में कभी जोर नहीं आजमाए।
नजीर बन गए
वैसे नौकरशाह या पुलिस अधिकारी, जिनमें कुछ अलग करने की चाहत होती है, वे राजनीतिक का रुख कर रहे हैं। बिहार में पूर्व आइपीएस अधिकारियों की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने समाज से सीधे जुडऩे के लिए राजनीति में कदम रखा और खाकी से खादी के सफर पर चल पड़े। उनमें दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रह चुके निखिल कुमार का नाम अव्वल है। वे पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह के पुत्र हैं। निखिल ने राजनीति में भी सफलता की नई इबारत लिखी। औरंगाबाद से सांसद बने। यही नहीं, केरल और नगालैंड के राज्यपाल भी रहे। ऐसे ही एक किरदार पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (आइजी) ललित विजय सिंह हैं। सन् 1989 में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में वे बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस की दिग्गज नेता कृष्णा शाही हरा दिया था।
चूक गए चौहान
पूर्व डीजीपी धु्रव प्रसाद ओझा (डीपी ओझा) 2004 में बेगूसराय से लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रहे। चुनावी मैदान में शिकस्त मिली। इसी तरह पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव में नालंदा से ताल ठोकी, लेकिन जनता को नहीं जंचे। शिवसेना के बैनर तले सन् 2019 में सिवान में दांव आजमा चुके पूर्व डीआइजी सुधीर कुमार भी मात खाने वालों में एक चेहरा हैं। शहाबुद्दीन के जोर वाले दौर में वे सिवान में डीएसपी रह चुके हैं।