न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : नई दिल्ली :
हमारी संस्कृति में ‘परहित’ को मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म बताया गया है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआइयू), बेंगलुरु के पूर्व छात्रों ने भारतीय संस्कृति के इस मूल्य को चरितार्थ कर दिखाया है। बीते सात दिनों में चार विशेष विमान बुक कर अब तक 720 प्रवासी श्रमिकों को मुंबई और बेंगलुरु से झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा पहुंचा चुके हैं। अगली खेप में तीन और चार्टर्ड विमानों से 540 प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्यों तक पहुंचाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। जिसके बाद दस और उड़ानों की तैयारी है, जिनके जरिये 1800 अन्य श्रमिकों को घर भेजा जाएगा।
एनएलएसआइयू एलुमिनाई एसोसिएशन के आह्वान पर बिना कोई ढिंढोरा पीटे सैकड़ों पूर्व छात्र, जो अब कुशल पेशेवर हैं, चुपचाप मदद करने में जुटे हुए हैं। मानवीयता का ऐसा अनुकरणीय उदाहरण विरले ही देखने-सुनने को मिलता है। इस मिशन में जुटीं एलुमिनाई एडवोकेट प्रियंका रॉय ने दैनिक जागरण से कहा- कोरोना त्रासदी की सर्वाधिक मार गरीबों पर पड़ी। लाखों प्रवासी श्रमिकों ने असह्य पीड़ा झेली। नेशनल लॉ स्कूल के हम सभी पूर्व छात्रों को इनकी विवशता और पीड़ा ने झकझोरा। हम दुखी होते और आपस में चर्चा करते। इसी क्रम में हमारी एक साथी सुबा मंडल, जो टाटा समूह में लीगल हेड हैं, ने कहा कि क्यों न हम इन श्रमिक परिवारों को वाहन उपलब्ध कराने का जतन करें।
प्रियंका ने बताया, हमने इस विचार को एसोसिएशन के मंच पर रखा। फिर टाटा समूह और आइआइटी मुंबई की प्रोफेसर प्रिया शर्मा और केआर शर्मा की मदद से रूपरेख बनाई गई। तय हुआ कि बसों का इंतजाम कराएंगे। लेकिन बस वालों ने किराया अधिक बताया। तब हमने तय किया किया कि इससे बेहतर तो हवाई सफर होगा। लेकिन नियमित उड़ानों पर रोक थी। तब तय हुआ कि चार्टर्ड विमानों से भेजा जाएगा। सुनियोजित रूपरेखा के तहत राज्य सरकार और स्थानीय संस्थाओं को अवगत करा आग्रह किया गया कि ऐसे जरूरतमंद परिवारों का डाटा हमें मुहैया करा दें, जो विषम परिस्थिति में फंसे हुए हैं, जिनके साथ महिलाएं और बच्चे हैं अथवा अन्य कारणों से जिन्हें प्राथमिकता दी जा सकती है। ऐसे परिवारों का डाटा, जिसमें पहचानपत्र, मूल निवासी प्रमाण पत्र, परिवार का ब्योरा, स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट और संपर्क विवरण इत्यादि थे, लेकर हमने स्थानीय स्वंयसेवी संस्थाओं के माध्यम से प्रत्येक परिवार से संपर्क किया। उनकी विवशता को चिन्हित कर और स्वास्थ्य जांच आदि के आधार पर यात्रा की प्राथमिकता तय की।
इस तरह एयर एशिया का 180 सीटर चार्टर्ड विमान इतने ही प्रवासियों को लेकर 28 मई को मुंबई से रांची (झारखंड) रवाना हुआ। इसके बाद मुंबई से रांची को दूसरी उड़ान, मुंबई से भुवनेश्वर को तीसरी उड़ान और गुरुवार को बेंगलुरु से रायपुर को चौथी उड़ान से श्रमिकों को पहुंचाया गया। प्रियंका के अनुसार, चार उड़ानों में अब तक करीब 60 लाख रुपये खर्च हुए हैं। अगली तीन उड़ानों के लिए फंड एकत्र हो चुका है और शेष के लिए लगातार मदद जुट रही है। अपनी टीम के साथियों का नाम पूछने पर प्रियंका ने कहा, मैं कुछ का ही नाम बता सकती हूं, जो सामने हैं, जबकि अनेक ने नाम उजागर न करने का आग्रह किया है। हम नहीं चाहते हैं कि हमारी इस भावना को किसी प्रचार या आडंबर के रूप में लिया जाए। साथियों ने अब अपने नेटवर्क के कॉर्पोरेट समूहों को भी इस काम में जोड़ने में सफलता पाई है, इसीलिए इसे विस्तार देते हुए अब इस मिशन को हमने एक नाम भी दे दिया है- आहन वाहन। इसकी व्यवस्था में मिलाप एनजीओ को साथ जोड़ा गया है। प्रियंका सहित उनकी इस टीम में एडवोकेट शैल त्रेहान, सोहन मुखर्जी, अर्कजा सिंह, अश्विन रामनाथन, उत्साह सोम, नंदकुमार और एडवोकेट तन्हा सलारिया अग्रणी भूमिका में हैं। प्रियंका ने बताया कि मदद करने वालों में सीनियर्स के अलावा जूनियर बैच (हाल के वर्षों में पासआउट) के साथी भी बड़ी संख्या में आगे आए हैं।
भगवान उन्हें हमेशा खुश रखें
मुंबई से पहला विशेष विमान 28 मई को रांची पहुंचा था, जबकि दूसरा 31 मई को। रांची स्थित बिरसा मुंडा एयरपोर्ट ने यह नजारा पहली बार देखा जब हवाई चप्पल वाले हवाई यात्रा कर रहे हों। इन मजदूरों की आगवानी करने भी यहां सरकार से लेकर कई खासओ-आम मौजूद थे। इनमें कई के पास घर लौटने के बाद खाने के पैसे भी नहीं थे, लेकिन घर आने की खुशी के कारण चेहरे पर चमक थी। रांची की रहने वाली प्रवासी मजदूर सुषमा ने कहा, हमें हवाई जहाज पर चढ़ाकर मुंबई से रांची पहुंचाने वाले हमारे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं। भगवान उन्हें हमेशा खुश रखें।