न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : नई दिल्ली :
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में ईएमआई भुगतान पर रोक के दौरान ब्याज लगाने को चुनौती देने वाली याचकिा का जवाब देते हुए कहा कि उसका ये फैसला रेग्युलेटरी पैकेज के तहत है, एक स्थगन, रोक की प्रकृति का है. इसे माफी या छूट के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए. आरबीआई ने कहा है कि वह ईएमआई से मोहलत की अवधि में लोन के ब्याज को माफ नहीं कर सकता है. इससे बैंकिंग सेक्टर की स्थिरता पर असर पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्रीय बैंक ने कहा है कि लोन मोरेटोरियम में ब्याज माफ करने से 2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा. यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1 फीसदी के बराबर है. आपको बता दें कि कर्ज की इन किस्तों का भुगतान 31 अगस्त के बाद किया जा सकेगा. इस दौरान किस्त नहीं चुकाने पर बैंक की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. इससे पहले आरबीआई ने मार्च अप्रैल और मई तक ईएमआई नहीं चुकाने की मोहलत दी है.
ब्याज माफ करने से क्या होगा-रिजर्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर वह कर्ज किस्त के भुगतान में राहत के हर संभव उपाय कर रहा है. लेकिन, जबर्दस्ती ब्याज माफ करवाना उसे सही निर्णय नहीं लगता है क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है. इसका खामियाजा बैंक के जमाधारकों को भी भुगतना पड़ सकता है.
आरबीआई ने कहा है कि जहां तक उसे बैंकों के नियमन के प्राप्त अधिकार की बात है तो वह बैंकों में जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने को लेकर है. इसके लिए भी यह जरूरी है कि बैंक वित्तीय तौर पर मजबूत और मुनाफे में हों.
सुप्रीम कोर्ट ने 26 मई को केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक से रोक की अवधि के दौरान ब्याज की वसूली करने के खिलाफ दायर याचिका पर जवाब देने को कहा था. यह याचिका आगरा के निवासी गजेंद्र शर्मा ने दायर की.
रिजर्व बैंक ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद रहने के दौरान पहले तीन माह और उसके बाद फिर तीन माह और कर्जदारों को उनकी बैंक किस्त के भुगतान से राहत दी है.