
न्यूज़ टुडे टीम एक्सक्लूसिव : पताही- मोतिहारी/ बिहार :
जिले के नक्सल प्रभावित पताही प्रखंड क्षेत्र के पदुमकेर पंचायत में 100 वर्षों से सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल आज भी कायम है। यहां मुहर्रम जुलूस हिदू परिवार के लोगों द्वारा पहले निकाला जाता है। उसके बाद ही मुस्लिम समुदायों को निकालने की इजाजत होती है। परंतु इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए ताजिया का निर्माण तो किया, परंतु समाज और देश हित में इसे निकालने के बजाय अपने दरवाजे पर मनाया गया। कोरोना संकट ने पर्व के उत्साह को जरूर कम किया है, पर आपसी प्रेम पूर्व की तरह ही बरकरार है। अब सामूहिक तौर पर अपील की जा रही है कि इस बीमारी के शिकार होने से बचें।
अनुमंडल पदाधिकारी कुमार रविन्द्र, पकडीदयाल डीएसपी सुनील कुमार सिंह भी क्षेत्र में लोगों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की है। बता दें कि अंग्रेजी हुकूमत 100 वर्ष से सांप्रदायिक सौहार्द को रखते हुए गांव के हिदू परिवार की बड़ी आबादी रोजा रखती है। तैमूर के इराक नहीं जाने परे उसके दरबारियों ने अपने शहंशाह को खुश करने की योजना बनाई। दरबारियों ने देश भर के बेहतरीन शिल्पकारों को बुलवाया और उन्हें कर्बला में स्थित इमाम हुसैन की कब्र के जैसे ढांचे बनाने का आदेश दिया। बांस और कपड़े की मदद से फूलों से सजाकर कब्र जैसे ढांचे तैयार किए गए और इन्हें ताजिया नाम दिया गया और इन्हें तैमूर के सामने पेश किया गया। इसलिए मुहर्रम गम का त्योहार मनाते हैं।
मोहर्रम जुलूस की पुरानी परंपरा पदुमकेर गांव स्थित स्वर्गीय बाबू जगदीश सिंह के पूर्वज से मोहर्रम जुलूस निकालने की पुरानी परंपरा रही है। इसको देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने अंग्रेजों ने गद्दी वालों के रूप में परिवार के नामों की ताजिया जुलूस निकालने के नाम से लाइसेंस निर्गत किया था। नवेन्दु कुमार सिंह, वीरेंद्र सिंह, शैलेंद्र सिंह, संतोष सिंह ने बताया कि पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा दोनों समुदायों की एकता की मिशाल है। आज भी इस के रूप में कायम थी, परंतु यह कोरोन महामारी ने इस दोनों समुदायों की चहल-पहल को खलल डाल दी।