न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★सबसे बड़ी ताकत तेली और हलवाई-कानू की है। वैश्यों में सबसे बड़ी संख्या (7 फीसदी) तेली जाति की है। इसके बाद हलवाई-कानू (5 फीसदी), लहेरी (0.2 फीसदी), कसेरा (0.2 फीसदी), महुरी (0.2) फीसदी है। जो मिलाकर 13 फीसदी होते हैं। इसमें अति पिछड़ी जाति के वोट बैंक को भी जोड़ दें तो कुल 9 फीसदी हो जाती। इसमें जायसवाल, माड़वाड़ी, सूढ़ी, वर्णवाल, पोद्दार, सोनार, केसरी, ठठेरा आदि जातियां आती हैं। यानी ये सभी मिलकर 22 फीसदी हो जाते हैं।★
इन दिनों आरजेडी की नजर इन दिनों बिहार के वैश्य वोट बैंक पर है। गोपालगंज और तारापुर उपचुनाव में मिली हार के बाद RJD ने वैश्य वोट बैंक पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। वैश्यों का 22 फीसदी वोट बैंक बिहार में है। इसमें 9 फीसदी अतिपिछड़ा वोट बैंक है। नीतीश कुमार ने वैश्यों से अगल अति पिछड़ों की राजनीति की। अति पिछड़ों के आरक्षण को मजबूत किया। बता दें कि बीजपी से बिहार विधान सभा में सर्वाधिक विधायक हैं। यह RJD के लिए राजनीतिक चुनौती होने वाली है।
दरअसल, हाल में हुए कुढ़नी उपचुनाव में बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता ने जेडीयू के उम्मीदवार मनोज कुमार कुशवाहा को हरा दिया। मनोज कुमार महागठबंधन के उम्मीदवार थे। उस उपचुनाव को आगामी लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना गया था। इसके बाद RJD की चिंता बढ़ी। चिंता का कारण इसलिए भी था क्योंकि तारापुर उपचुनाव में RJD ने वैश्य जाति से अरुण साह को उतारा। लेकिन पार्टी वहां हार गई। वहीं, गोपालगंज उपचुनाव में RJD ने मोहन गुप्ता को उतारा, लेकिन वह वहां भी हार गए। जिसके बाद RJD के अंदर काफी मंथन हुआ।
सबसे बड़ी ताकत तेली और हलवाई-कानू की
वैश्यों में सबसे बड़ी संख्या (7 फीसदी) तेली जाति की है। इसके बाद हलवाई-कानू (5 फीसदी), लहेरी (0.2 फीसदी), कसेरा (0.2 फीसदी), महुरी (0.2) फीसदी है। जो मिलाकर 13 फीसदी होते हैं। इसमें अति पिछड़ी जाति के वोट बैंक को भी जोड़ दें तो कुल 9 फीसदी हो जाती। इसमें जायसवाल, माड़वाड़ी, सूढ़ी, वर्णवाल, पोद्दार, सोनार, केसरी, ठठेरा आदि जातियां आती हैं। यानी ये सभी मिलकर 22 फीसदी हो जाते हैं।
विधान सभा में सबसे अधिक वैश्य विधायक बीजेपी से
बिहार विधान सभा में वैश्यों के प्रतिनिधित्व पर गौर करें तो विधानसभा में वैश्य विधायकों की संख्या 25 है। सबसे अधिक वैश्य विधायक बीजेपी से 16 की संख्या में हैं। राष्ट्रीय जनता दल से वैश्य विधायकों की संख्या 5 ,जेडीयू से एक, कांग्रेस से एक और माले से 2 वैश्य विधायक हैं।
बिहार विधान सभा में वैश्यों के प्रतिनिधित्व पर गौर करें तो विधानसभा में वैश्य विधायकों की संख्या 25 है।
बता दें कि RJD ने 14 वैश्यों को टिकट दिया था उसमें 5 की जीत हुई। ये आंकड़ा उपचुनावों को मिलाकर है। लोकसभा में बिहार से वैश्यों के प्रतिनिधित्व की बात करें तो बीजेपी से रमा देवी और संजय जायसवाल सांसद हैं। जेडीयू से सुनील कुमार पिंटू सांसद हैं। राज्य सभा में RJD से प्रेम गुप्ता और बीजेपी से सुशील कुमार मोदी सांसद हैं।
उपजातियों में बंटे होने की वजह से राजनीतिक ताकत कमजोर दिखती है
ज्ञात हो कि गांधी, लोहिया जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता वैश्य समुदाय से हुए। बिहार में लहटन चौधरी, बृज बिहारी, शंकर प्रसाद टेकरीवाल, मुंगेरी लाल, लक्ष्मी साहु (कर्पूरी ठाकुर के सचिव) हुए। वैश्यों में उपजातियों की संख्या काफी है, लेकिन इन उपजातियों में एकजुटता के अभाव की वजह से इनकी राजनीतिक ताकत कमजोर दिखती है, नहीं तो 22 फीसदी वोट बैंक कम नहीं है आवाज बुलंद करने के लिए। विभिन्न पार्टियों के वैश्य नेताओं को एकजुट होकर अपनी-अपनी पार्टियों में आवाज उठानी चाहिए। बीजेपी से बाकी पार्टियां को सीख लेनी चाहिए। बीजेपी बिहार में सवर्ण वोट बैंक के साथ-साथ वैश्य वोट बैंक की बदौलत ही तेज बढ़ रही है। लालू प्रसाद जैसे नेताओं ने वैश्यों की ताकत पहचानी थी। तेजस्वी यादव इसे किस तरह से आगे बढ़ाते हैं यह उनके विवेक पर है।