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न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव : केंद्र सरकार ने OBC वोट खिसकने के डर से 5 बार बढ़ाई तारीख, 2021 में होने वाली जनगणना 2024 चुनाव से पहले होना मुश्किल

न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :

डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :

★ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार एंड सेंसस ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर 30 जून 2023 तक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज करने के लिए कहा है। एक बार सीमाएं फ्रीज होने के 3 महीने बाद ही जनगणना शुरू हो सकती है। यानी अब जनगणना 2024 से पहले होना मुश्किल है। जनगणना के लिए घरों की लिस्टिंग और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को अपडेट करने का काम 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2020 के बीच होना था, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे टाल दिया गया। तब से लगातार तारीख बढ़ाई जा रही है।★

भारत में 2021 में होने वाली जनगणना की तारीख 5वीं बार बढ़ा दी गई है। ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार एंड सेंसस ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर 30 जून 2023 तक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज करने के लिए कहा है। एक बार सीमाएं फ्रीज होने के 3 महीने बाद ही जनगणना शुरू हो सकती है। यानी अब जनगणना 2024 से पहले होना मुश्किल है। जनगणना की तारीख आगे बढ़ाने के लिए सरकार क्या वजह बता रही है और क्या इसके पीछे राजनीतिक हित भी जुड़े हैं?

भारत सरकार ने जनगणना की तारीख 5वीं बार बढ़ा दी है

जनगणना के लिए घरों की लिस्टिंग और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को अपडेट करने का काम 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2020 के बीच होना था, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे टाल दिया गया। तब से लगातार तारीख बढ़ाई जा रही है।

अब ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार एंड सेंसस ने सभी राज्यों को 30 जून 2023 तक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज करने को कहा है। कानून के मुताबिक, किसी क्षेत्र की सीमाएं तय होने के 3 महीने बाद ही जनगणना शुरू हो सकती है। इसीलिए फिलहाल 30 सितंबर 2023 तक जनगणना शुरू नहीं हो पाएगी।

जनगणना से पहले प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज

हर जनगणना यानी सेंसस से पहले राज्यों को जिला, प्रखंड, गांव, शहर, कस्बा, पुलिस स्टेशन, तालुका, पंचायत आदि के नाम और क्षेत्र की जानकारी रजिस्ट्रार जनरल एंड सेंसस कमिश्नर ऑफ इंडिया (RGI) को देना होता है। जिस किसी भी जगह का नाम या जियोग्राफी बदलती है, उसकी भी जानकारी RGI को दी जाती है। इसके 3 महीने बाद ही जनगणना शुरू होती है।

जनगणना की तारीख आगे बढ़ाने के पीछे की राजनीतिक वजह

राजनीतिक एक्सपर्ट्स मानते हैं कि जनगणना में लेट होने की एक वजह जाति जनगणना की मांग भी है। बिहार, यूपी, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं।

2024 चुनाव से पहले जनगणना में जाति गणना शामिल नहीं होती है तो OBC समुदाय में केंद्र सरकार के खिलाफ स्ट्रॉन्ग मैसेज जाएगा। देश में आंदोलन शुरू हो सकता है। एक बड़ा वोट बैंक खिसक सकता है। संभव है कि इस वजह से केंद्र सरकार जनगणना टाल रही हो।

लेखक और पत्रकार दिलीप मंडल के मुताबिक 2018 में केंद्र सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए ओबीसी जनगणना करने का वादा किया था। अब सरकार का रुख बदल गया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में कहा है कि जाति गणना संभव नहीं है। जनगणना में उम्मीद के उलट कुछ जानकारी सामने आ सकती है। इसका परिणाम देश की राजनीति पर भी पड़ेगा। यही वजह है कि सरकार इसे टाल रही है।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई का कहना है कि राजनीतिक वजहों से जनगणना को टाला जा रहा है, जिसका नुकसान आम लोगों को उठाना पड़ रहा है। कोरोना के समय कई चुनाव और दूसरे बड़े कार्यक्रम हुए, लेकिन जनगणना नहीं हुई। सेंसस बोर्ड को जनता के बीच आकर बताना चाहिए कि इसे क्यों टाला जा रहा है? ऐसी संस्थाओं को सरकार के दबाव में आए बिना अपना काम सही से करना चाहिए।

भारत में इससे पहले नही टाली गई है जनगणना

भारत में जनगणना के 150 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है। 81 साल पहले 1941 में अंतिम बार सेंसस अपने तय समय से लेट हुआ था, तब दुनिया में द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। हालांकि तब भी समय पर ही सर्वे करके डेटा जुटाया गया था, लेकिन इस डेटा को व्यवस्थित करने में वक्त लग गया था।

1961 में भारत और चीन के बीच जंग हो या फिर 1971 में बांग्लादेश को अलग करने के लिए पाकिस्तान से जंग। दोनों ही मौकों पर समय से जनगणना की गई। राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि कोरोना महामारी की वजह से पहली बार जनगणना को रोका गया है।

किसी भी देश में समय पर जनगणना होना जरूरी

1881 के बाद से ही भारत 10-10 साल के अंतराल पर जनगणना कराता है। फरवरी 2011 में 10-10 साल के अंतराल पर 15वीं बार जनगणना हुई थी।

कोरोना की वजह से जनगणना में देरी सिर्फ भारत में ही नही दूसरे देशों में भी ऐसे ही हालात

हमारी रिसर्च में ऐसा सिर्फ भारत में ही देखने को मिल रहा है। अमेरिका में कोरोना पीक पर होने के बावजूद 2020 में जनगणना कराई गई। इसी तरह से यूके, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और आयरलैंड में अलग-अलग एजेंसियों ने कोरोना लहर के दौरान तय समय पर जनगणना के लिए डेटा जुटाना शुरू कर दिया था।

अब इन देशों की एजेंसियां डेटा को व्यवस्थित करके इसका एनालिसिस कर रही है। पड़ोसी देश चीन ने भी अपने यहां कोरोना महामारी के दौरान तय समय पर जनगणना कराई थी। यहां सेंसस के बाद सभी मेजर फाइंडिंग सामने आ गई हैं।

जनगणना में सभी जातियों की गिनती की मांग

इस बारे में केंद्र सरकार की ओर से गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 10 मार्च 2021 को संसद में भी कहा था- ‘पहले की तरह ही इस बार भी जनगणना कराई जाएगी। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा किसी दूसरी जाति का डेटा जुटाने की कोई योजना नहीं है।’

1881 में 25.38 करोड़ से बढ़कर 2023 में देश की जनसंख्या

1881 में पहली बार देश में जब जनगणना हुई थी तो उस वक्त जनसंख्या 25.38 करोड़ थी। अभी 2023 में जनसंख्या 141 करोड़ होने का अनुमान है। देश में अंतिम जनगणना 2011 में हुई थी, तब जनसंख्या 121 करोड़ से ज्यादा थी। 2001 से 2011 के बीच भारत की आबादी 18 फीसदी के आसपास बढ़ी थी। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2023 में भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो जाएगी। 2050 तक चीन की आबादी 131 करोड़ तो भारत की आबादी 166 करोड़ होने का अनुमान है।

सेंसस ऑपरेशन के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर ए.डब्लू. महात्मे के मुताबिक समय पर जनगणना होना बहुत जरूरी है। इसकी 4 वजहें हैं :

1. 1881 के बाद हर 10 साल पर जनगणना होने की वजह से इन डेटा का तुलनात्मक अध्यन करना आसान होता है। समय पर जनगणना नहीं होने की एक बड़ी समस्या ये है कि डेटा गैप हो जाता है, जिससे एक खास समय का डेटा नहीं होता है।

2. जनगणना में लेट होने की वजह से करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को खाद्य सुरक्षा काननू के तहत फ्री में आनाज नहीं मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर वर्ष 2013 में 80 करोड़ लोग फ्री में राशन लेने के योग्य थे, जबकि जनसंख्या में अनुमानित इजाफा के साथ 2020 में यह आंकड़ा 92.2 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।

3. अगर समय पर जनगणना कराई जाती है तो बीते साल का इवैल्यूएशन, वर्तमान का सटीक वर्णन और भविष्य का अनुमान लगाना संभव होता है।

4. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक किसी देश के आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिए तय समय पर जनगणना कराना जरूरी है। इसकी एक वजह यह है कि तय समय पर सेंसस होने की वजह से पंचायत और तालुका स्तर पर डेटा सरकार के पास पहुंचता है। इस डेटा के जरिए सरकार विकास की योजनाओं को आमलोगों तक पहुंचाने का काम करती है।

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