न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★सबसे खौफनाक मंजर रविवार 15 मार्च 2009 को देखा था, जब उपेंद्र कुशवाहा सरकारी आवास पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारी संख्या में पुलिस बल भेजकर उपेंद्र कुशवाहा की गैर मौजूदगी में उनकी वृद्ध माता जी, धर्मपत्नी समेत घर के तमाम सदस्यों को राजनीतिक सुचिता अथवा मर्यादा का खयाल किए बगैर जबरन बाहर निकालकर सरकारी आवास खाली करवाया था।★
क्या जदयू में आरसीपी सिंह के बाद उपेंद्र कुशवाहा की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। जिस तरह से कल नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा के बिहार में डिप्टी सीएम बनने के सपने को पल भर में चूर कर दिया, उसके बाद अब इसकी चर्चा शुरू हो गई है। नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि उनको जो नुकसान पहुंचाता है, उससे बदला जरुर लेते हैं। चिराग पासवान इसके बड़े उदाहरण हैं, जिनकी पार्टी को दो फाड़ होने की स्थिति आ गई। अब इसमें उपेंद्र कुशवाहा का नाम भी शामिल हो सकता है।
पहले पार्टी खत्म की और राजनीति खत्म करने की तैयारी
चिराग पासवान के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने उन नेताओं में शामिल रहे, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में जदयू को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। उनकी पार्टी रालोसपा ने बसपा के साथ गठबंधन कर बिहार में भाग्य आजमाया। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा कोई सीट नहीं जीत सके, लेकिन उनकी पार्टी ने जदयू के वोट बैंक में सेंध जरुर लगा दी। जिसके कारण जदयू को लगभग 20 सीट का नुकसान हुआ। चुनाव खत्म होने के बाद जैसे ही नीतीश कुमार सत्ता में लौटे, उन्होंने सबसे पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को ही टारगेट किया। दो साल पहले पहले विधानसभा चुनाव के बाद इसी जनवरी के महीने में नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का जदयू में विलय कर रालोसपा का विलय अपनी पार्टी में कल लिया।
हालांकि इसके बाद उन्होंने तत्काल उपेंद्र कुशवाहा को विधान परिषद में भेज दिया और पार्टी के संसदीय बोर्ड का प्रमुख बना दिया। लेकिन केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुके उपेंद्र कुशवाहा को कैबिनेट में जगह नहीं मिली।
महागठबंधन की सरकार में शिक्षा मंत्री बनने की थी चर्चा
पिछले साल जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी, तो उपेंद्र कुशवाहा को शिक्षा मंत्री बनाने की चर्चा थी। लेकिन नीतीश कुमार ने उन्हें जगह नहीं दी। जिसके कारण उपेंद्र कुशवाहा इतने नाराज रहे कि वह शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए। अपनी पार्टी का विलय कराने के कारण उपेंद्र कुशवाहा को मजबूरन इसे बर्दाश्त करना पड़ा।
नीतीश कुमार पहले भी ले चुके बदला
उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार का पिछली दो साल छोड़ दिए जाएं तो एक दशक से भी ज्यादा समय दोनों के बीच दुश्मनी वाल रिश्ता रहा है। सबसे खौफनाक मंजर रविवार 15 मार्च 2009 को देखा था, जब उपेंद्र कुशवाहा सरकारी आवास पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारी संख्या में पुलिस बल भेजकर उपेंद्र कुशवाहा की गैर मौजूदगी में उनकी वृद्ध माता जी, धर्मपत्नी समेत घर के तमाम सदस्यों को राजनीतिक सुचिता अथवा मर्यादा का खयाल किए बगैर जबरन बाहर निकालकर सरकारी आवास खाली करवाया था।
इसके बाद दोनों की अदावत 2010 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में दिखा। उपेंद्र कुशवाहा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल होकर नीतीश कुमार को बड़ा नुकसान पहुंचाया। एनडीए को 32 सीटें मिली। जिसके बाद उपेंद्र कुशवाहा का कद बढ़ गया। बाद में जब नीतीश कुमार ने फिर से एनडीए के साथ सरकार बनाई तो उसी दौरान उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए और राजद के साथ मिलकर नीतीश कुमार के साथ अपनी दुश्मनी जारी रखी।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार इन चोटों को बर्दाश्त कर चुके हैं। जिसका बदला अब वो उपेंद्र कुशवाहा से धीरे-धीरे निकाल रहे हैं। वह सिर्फ जदयू के सदस्य बन कर रह गए हैं।