
न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★एक दशक बाद उपेन्द्र कुशवाहा को फिर से नई पार्टी बनाने को मजबूर होना पड़ा. दशक पहले कुशवाहा ने जेडीयू से इस्तीफा देकर और राज्यसभा सांसदी को त्यागकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया था. एक बार फिर वही स्थिति आ गई. इस बार जेडीयू की सदस्यता और विप सीट को छोड़ राष्ट्रीय लोक जनता दल का गठन किया है।.★
हो गया राजनैतिक पटाक्षेप. उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू से इस्तीफा दे ही दिया. लगे हाथ विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफे की घोषणा कर दी. साथ ही नए राजनीतिक दल का भी ऐलान कर दिया. एक दशक बाद उपेन्द्र कुशवाहा को फिर से नई पार्टी बनाने को मजबूर होना पड़ा. दशक पहले कुशवाहा ने जेडीयू से इस्तीफा देकर और राज्यसभा सांसदी को त्यागकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया था. एक बार फिर वही स्थिति आ गई. इस बार जेडीयू की सदस्यता और विप सीट को छोड़ राष्ट्रीय लोक जनता दल का गठन किया है.
18 साल में ये तीसरी बार है, जब उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश का साथ छोड़ा है. इससे पहले उन्होंने 2005 और 2013 में नीतीश का साथ छोड़ा था. कुशवाहा ने नीतीश से अलग होने के बाद 2013 में नई पार्टी बनाई थी. ये दूसरी बार है जब उन्होंने नई पार्टी का ऐलान किया.
मीडिया से बातचीत में कुशवाहा ने कहा- नीतीश के साथ शुरुआत अच्छी थी, लेकिन अंत बुरा. जमीर बेचकर हम अमीर नहीं बन सकते. नीतीश जी जिस रास्ते पर चल रहे हैं, वो पार्टी के लिए सही नहीं है. वे पड़ोस के घर में अपना वारिस ढूंढ रहे हैं. कुशवाहा का इशारा अगले विधानसभा में CM पद के चेहरे को लेकर था.
बता दें कि पिछले साल 13 दिसंबर को महागठबंधन के विधायकों की मीटिंग में नीतीश कुमार ने कहा था कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. मेरा लक्ष्य 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराना है. मैं CM या PM पद का उम्मीदवार नहीं बनना चाहता.
दो साल में ही आउट हो गए कुशवाहा
उपेन्द्र कुशवाहा मार्च 2021 में जेडीयू में शामिल हुए थे. इसी के साथ अपनी पार्टी रालोसपा का जेडीयू में विलय कर दिया था. विलय की घोषणा करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि यह देश और राज्य के हित में है. उन्होंने कहा था कि विलय वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति की मांग थी. इसके पहले वे 2013 में जेडीयू से अलग हुए थे और अलग पार्टी रालोसपा बनाई थी. साल 2014 में कुशवाहा एनडीए में शामिल हो गए थे, जबकि नीतीश कुमार आरजेडी के साथ चले गए थे. 2014 में उपेंद्र कुशवाहा को तीन लोकसभा सीटें बिहार में मिली थीं और सभी पर जीत हुई थी. कुशवाहा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री भी बनाए गए. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा की पार्टी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन महज़ तीन सीटों पर ही खाता खोल पाई थी इसके बाद साल 2018 में कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए थे और केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
2000 में जंदाहा से चुनाव जीते थे कुशवाहा, नेता प्रतिपक्ष भी बने थे
साल 2000 के विधानसभा चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा ने जंदाहा सीट से ही चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. चुनाव जीतने के बाद कुशवाहा, नीतीश कुमार के करीब आ गए. इसी का नतीजा था कि साल 2004 में जब सुशील मोदी लोकसभा चुनाव जीतकर केन्द्र में चले गए तो नीतीश के समर्थन से कुशवाहा बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिए गए. इसके बाद इन्हें बिहार के भावी सीएम की कतार में भी गिना जाने लगा. 2005 में हुए विधानसभा के पहले चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा जंदाहा सीट से चुनाव हार गए. उस चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और जोड़-तोड़ करने के बाद भी कोई पार्टी सरकार नहीं बना पायी. इसके बाद अक्टूबर 2005 में ही फिर से चुनाव हुए, लेकिन इस बार दलसिंहपुर सीट से उपेन्द्र कुशवाहा चुनाव हार गये. हार की वजह से नीतीश सरकार में इन्हें मंत्री नहीं बनाया जा सका.
2005 में विस चुनाव हार गए थे कुशवाहा
2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में जदयू-भाजपा की सरकार बनी. उपेन्द्र कुशवाहा को इसमें जगह नहीं मिली. माना जाता है कि तभी से ही दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव की शुरुआत हो गई थी. इसके बाद कुशवाहा ने नीतीश का साथ छोड़कर एनसीपी की सदस्यता ग्रहण कर ली. एनसीपी ने उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया लेकिन महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हुई हमलों की घटनाओं के बाद कुशवाहा ने एनसीपी भी छोड़ दी. साल 2009 में कुशवाहा की फिर से जदयू में एंट्री हुई और पार्टी ने उन्हें 2010 में राज्यसभा भी भेज दिया, लेकिन उस दौरान भी पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी करने के चलते उन्हें फिर से जदयू छोड़नी पड़ी. साल 2013 में उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू को छोड़कर जोरदार तरीके से पटना के गांधी मैदान से नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के गठन का ऐलान किया था.
नीतीश ने पार्टी को गिरवी रख दिया
कुशवाहा ने कहा- JDU के कार्यकर्ता परेशान हैं. मुख्यमंत्री जी ने शुरुआत में अच्छा काम किया, लेकिन आखिर में उन्होंने जो किया वो अच्छा नहीं हुआ।. मैंने जब पार्टी में सवाल उठाया तो मुझे उन्होंने कह दिया पार्टी छोड़कर चले जाइए. नीतीश जी के पास है क्या. उनके पास अब कुछ नहीं बचा है. उन्होंने पार्टी को गिरवी रख दिया. मैं उनसे क्या हिस्सा मांगू. उनके हाथ में जीरो है.
नीतीश जी पहले कोई भी फैसला खुद लेते थे. कार्यकर्ताओं और नेताओं से बात करते थे. उनके खुद के फैसले सही होते थे. आज की तारीख में वो कोई फैसला खुद नहीं लेते हैं. मुख्यमंत्री जी अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर रहे हैं. वो डरे हुए लोगों की सलाह पर चल रहे हैं. नीतीश जी गलत रास्ते पर चल रहे हैं.
ललन सिंह बोले- वो अति महत्वाकांक्षी, अब जहां रहें स्थिर रहें
उधर उपेंद्र कुशवाहा के बाद JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनको जवाब दिया. उन्होंने कहा कि सुना है वो नई पार्टी बना रहे हैं. उन्हें हमारी ओर से शुभकामनाएं हैं. वो इसके पहले भी JDU को कई बार छोड़कर जा चुके हैं. उनकी कोई वैल्यू नहीं थी, लेकिन JDU ने उन्हें किसी लायक बनाया. वो जहां भी जाएं स्थिर रहें. उपेंद्र कुशवाहा अति महत्वाकांक्षी हैं. कुछ दिनों बाद देख लीजिएगा उनका क्या हश्र होता है.
उन्होंने कहा कि पिछले दिसंबर से वो क्या कर रहे थे. कहां-कहां गए. दिल्ली से पटना. पटना से दिल्ली लगे रहे. वो जा रहे थे तो जाएं, इसलिए हम कह रहे थे. निशाना उनका दिल्ली पर था और बता रहे थे कि JDU कमजोर हो रही है. उनके कुनबे के कई साथी हमसे मिलते रहे. उन लोगों ने ही बताया कि ये अति महत्वाकांक्षी हैं. हम इनके साथ कहीं जाने वाले नहीं हैं.
तेजस्वी को उत्तराधिकारी बनाने के सवाल पर ललन सिंह ने कहा कि 2025 की बात अभी मत कीजिए. जदयू अभी जिंदा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. 2025 की बात 2025 में करेंगे. अभी 2024 की बात करेंगे.