न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★कहते हैं कि जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार उस समय भी सबसे पहले आरजेडी पर तल्ख हुए थे जब पहली बार महागठबंधन टूटा था। इस बार भी नीरज ने इशारों में ही सही तेजस्वी यादव को अशिक्षित कह दिया है। सियासी जानकार मान रहे हैं कि शिक्षा मंत्री का ‘तेजस्वी बिहार’ कहना महागठबंधन के सियासी संबंधों में दरार का बीच वाला पड़ाव है। नीरज कुमार ने अपने आधिकारिक ट्विटर एकाउंट से लिखा कि बढ़ता बिहार, नीतीश कुमार। ट्विटर की नहीं काम की सरकार, शिक्षित कुमार, शिक्षित बिहार।★
बुनियादी संसाधन, उचित पाठन, शिक्षित बिहार, तेजस्वी बिहार। विवादों में घिरे बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सिंह ने सोमवार को अपने ट्विटर एकाउंट पर उपरोक्त लाइनों को लिखा। इस ट्वीट के बाद सियासी गलियारे में चर्चाओं का बाजार गरम हो गया। कहा जाने लगा कि शिक्षा मंत्री तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बड़ा नेता बता रहे हैं। इसके चंद सेकेंड बाद जेडीयू के बेबाक नेता और प्रवक्ता नीरज कुमार ने जवाब दिया। नीरज कुमार ने अपने आधिकारिक ट्विटर एकाउंट से लिखा कि बढ़ता बिहार, नीतीश कुमार। ट्विटर की नहीं काम की सरकार, शिक्षित कुमार, शिक्षित बिहार। हम आगे आपको महागठबंधन में बिखराव के कारण बने कई बयानों और लोगों की चर्चा करेंगे। सबसे पहले इस ट्वीट के मायने समझ लेते हैं। कहते हैं कि जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार उस समय भी सबसे पहले आरजेडी पर तल्ख हुए थे जब पहली बार महागठबंधन टूटा था। इस बार भी नीरज ने इशारों में ही सही तेजस्वी यादव को अशिक्षित कह दिया है। सियासी जानकार मान रहे हैं कि शिक्षा मंत्री का ‘तेजस्वी बिहार’ कहना महागठबंधन के सियासी संबंधों में दरार का बीच वाला पड़ाव है।
सियासी नाव का ‘मांझी’ कौन ?
अब सबसे बड़ा सवाल है कि महागठबंधन वाली सियासी नाव के वे कौन से खेवनहार हैं, जो नाव में छेद करने में जुटे हैं। महागठबंधन की अच्छी भली नाव अचानक डगमगाने कैसे लगी? जानकार मानते हैं कि महागठबंधन के अंदर सियासी शीतयुद्ध की पटकथा सुधाकर सिंह के बयान ने लिखी। सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार को शिखंडी और भिखमंगा कह दिया। यही वो बयान था जिससे महागठबंधन में दरार की शुरुआत हुई। उसके बाद इस बयान के बाद महागठबंधन के सहयोगी जीतन राम मांझी ने आग में घी डालने का काम किया। मांझी ने पूरे गठबंधन को ही चैलेंज कर दिया। जीतन राम मांझी ने सबसे पहले ट्वीट कर कहा कि ‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अभद्र टिप्पणी करके सुधाकर सिंह ने साबित कर दिया है कि भले ही वह राजद में हों, पर उनकी आत्मा आज भी अपने पुराने दल भाजपा के साथ ही है। ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल की जवाबदेही बनती है कि अविलंब सुधाकर सिंह पर कारवाई करें, यही गठबंधन धर्म का पालन होगा।’ उसके तुरंत बाद मांझी ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में यहां तक कह दिया कि गठबंधन ऐसे नहीं चलेगा। तेजस्वी यादव को सुधाकर सिंह पर कार्रवाई करनी होगी और गठबंधन चलाने के लिए एक कमेटी का गठन करना भी जरूरी है।
उपेंद्र कुशवाहा हुए मुखर
जीतन राम मांझी का बयान जैसी ही मीडिया की सुर्खी बनी। अचानक महागठबंधन के अंदर बयान देने की बाढ़ सी आ गई। हालांकि, मांझी से पहले सुधाकर के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया देने का काम जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने कर दिया था। उपेंद्र कुशवाहा ने तो बकायदा तेजस्वी के नाम सोशल मीडिया पर पत्र ही जारी कर दिया। उपेंद्र कुशवाहा ने लिखा- तेजस्वी यादव जी, जरा गौर से देखिए-सुनिए अपने एक माननीय विधायक के बयान को और उन्हें बताईए कि राजनीति में भाषाई मर्यादा की बड़ी अहमियत होती है। वे उस शख्सियत को शिखंडी कह रहें हैं जिन्होंने बिहार को उस खौफनाक मंजर से मुक्ति दिलाने की मर्दानगी दिखाई थी, वह भी तब जब उसके खिलाफ कुछ भी बोलने के पहले लोग दाएं-बाएं झांक लेते थे। ऐसे बयानों से प्रदेश की लाखों-करोड़ों जनता एवं वर्तमान जद (यू) और तत्कालीन समता पार्टी के उन हजारों कार्यकर्ताओं की भावना को चोट पहुंचती है जिन्होंने उस दौर में Nitish Kumar जी का साथ-सहयोग दिया, कुर्बानी दी। सुधाकर जी को बताईए, कम से कम बिहार को उस खौफनाक मंजर से बाहर निकालने जैसे मर्दानगी भरे कार्यों के लिए तो नीतीश कुमार जी को बिहार का इतिहास निश्चित ही याद करेगा।
जेडीयू नेताओं ने लांघी लक्ष्मण रेखा
उपेंद्र कुशवाहा ने आगे सवाल करते हुए कहा कि अब आप ही बताइए, अबतक जनता के आशिर्वाद से राज्य में सबसे अधिक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का रिकॉर्ड कायम करने वाले इतने बड़े नेता को कोई ‘नाईट गॉर्ड’ कहे, यह बिहार की समस्त जनता का अपमान नहीं तो और क्या है ? ऐसे बयानों पर जितनी जल्दी रोक लगे उतना श्रेयस्कर होगा। गठबंधन के लिए और शायद आपके लिए भी। सियासी जानकार मानते हैं कि इस प्रतिक्रिया में उपेंद्र कुशवाहा ने ‘संबंधों’ की सारी सीमा पार कर दी। उपेंद्र कुशवाहा ने एक तरह से लालू राज पर अटैक किया। बिहार के पूर्व शासनकाल पर टिप्प्णी की। अंत वाली लाइन पर उपेंद्र कुशवाहा तेजस्वी और आरजेडी को धमकाते हुए नजर आए। सियासी जानकार मानते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा को इस बात को सार्वजनिक तौर पर नहीं लिखना चाहिए था। उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान को राजद नेताओं ने अपने नेता का अपमान समझा। उसके बाद दोनों तरफ से खुलकर बयानबाजी होने लगी। जानकारों ने बताया कि जेडीयू का एक गुट तेजस्वी को देखना नहीं चाहता है। ऊपर से उसे नीतीश कुमार से बहुत कमतर करके आंका जाता है। जिसकी वजह से आरजेडी के नेता नाराज रहते हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने जो अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, उससे महागठबंधन में तल्खी और बढ़ गई। आरजेडी नेता भी प्रतिक्रिया देने लगे।
बयानवीर बन गये महागठबंधन नेता
अभी उपेंद्र और जीतन राम मांझी के बयान हवा में तैर ही रहे थे कि अचानक जेडीयू के एक नेता ने लक्ष्मण रेखा लांघ दी। जेडीयू के एमएलसी रामेश्वर महतो ने सुधाकर सिंह को चेतावनी जारी करते हुए कहा कि संभल जाएं। नीतीश कुमार को लेकर किसी तरह का बयान वे लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम लोग अपने नेता के मना करने के बाद चुप-चाप हैं। इसका मतलब ये नहीं कि हमारे नेता पर कोई कुछ भी बोल दे। हमलोग वक्त आएगा तो जीभ खींचने से भी पीछे नहीं हटेंगे। जानकारों की मानें, तो जेडीयू नेताओं के ये बयान बिना ऊपर के इशारे के नहीं आ रहे थे। इसमें जेडीयू के वरीय नेताओं की सहमति थी। हालांकि, इस दौरान तेजस्वी ने बात को संभालने की चेष्टा की। तेजस्वी यादव ने कहा कि सुधाकर सिंह ने साफ तौर पर जो बोला वो आप सब जानते हैं। लेकिन जो भी महागठबंधन के नेतृत्व और निर्णयों पर सवाल उठाएंगे वो बर्दाश्त नहीं होगा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू जी के संज्ञान में पूरा मामला है, ऐसे बयान देने वाले लोग बीजेपी की नीतियों को समर्थन देते हैं। महागठबंधन के बारे में कोई बयान देगा तो वो राष्ट्रीय अध्यक्ष और सिर्फ मैं होउंगा। तेजस्वी ने इस मामले पर लालू यादव से सलाह लेने की भी बात कही। पूरा वाकया कुछ दिनों में ठंडा पड़ता दिखा। जानकार मानते हैं किये ठंडा नहीं हुआ था। सुधाकर के बयान ने महागठबंधन में सियासी शीतयुद्ध की नींव रख दी थी।
नीतीश भी नाराज
नीतीश पर तल्ख टिप्पणी का मामला अभी राजनीतिक गलियारों में गूंज ही रहा था कि शिक्षा मंत्री ने ‘राजनीतिक रामायण’ का आगाज कर दिया। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने कह दिया कि तीन किताबें- राम चरित मानस, मनु स्मृति और बंच ऑफ थॉट्स – समाज में नफरत फैलाती हैं। उसके बाद राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह चंद्रशेखर के समर्थन में उतर आये और मंडल-कमंडल के भूत को जिंदा कर दिया। जेडीयू कुढ़नी उपचुनाव के बाद अति-पिछड़ा जैसे वोटों के खिसकने के बाद मंथन के दौर से गुजर रही है। जेडीयू नेतृत्व को लगा कि चंद्रशेखर रामचरितमानस पर बयान देकर बीजेपी की मदद कर रहे हैं। एक बार फिर महागठबंधन के अंदर भूचाल आ गया। लगे हाथों इस मुद्दे पर बाकी नेताओं की बयानबाजी शुरू हो गई। अंत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर सफाई दी और कहा कि इन सब मामलों में कोई विवाद नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई भी धर्म मानने वाला हो, उसमें किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जिसको जो मन करे वही पूजा करे, वही पालन करे। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सब फालतू चीजें हैं। धर्म के मामले में किसी को किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हिंदू मुस्लिम, सिख, इसाई कोई भी धर्म हो, किसी को भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह सही बात नहीं है। जिन्होंने इस तरह की बातें कहीं है उनको उपमुख्यमंत्री ने भी कह ही दिया है। जिसको जैसे मन करता है वो वैसे पूजा करता है।
महागठबंधन में बवाल
महागठबंधन के अंदर मचे भूचाल का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां तक कह दिया कि मैंन अपनी नाराजगी से लोगों को अवगत करा दिया है। हालांकि, नीतीश कुमार जदयू संसदीय बोर्ड के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा, जिन्होंने हाल ही में यह कहा था कि राजद मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज किए जाने से भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने को बल मिलेगा, से भी नाराज दिखे। नीतीश ने कहा कि हमारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आपको बता देंगे। ऐसी कोई बात नहीं है। हमारी पार्टी में इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है। कौन क्या बोल रहा है, हमसे मिलेंगे तो हम उनसे पूछ लेंगे। आपको बता दें कि जेडीयू के अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कुशवाहा की व्यंग्यात्मक टिप्पणी को खारिज कर दिया था। जानकार मानते हैं कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। स्थिति दिनों -दिन बदतर होती जा रही है। इस स्थिति में ये सियासी संबंध और गठबंधन कितने दिनों तक टिका रहेगा। इसका अंदाजा लगाना मुस्किल है। जानकारों के मुताबिक महागठबंधन में गांठ पड़ गई है। इसके पीछे कई नेताओं की भूमिका है, जो चाहते हैं कि महागठबंधन सही तरीके से नहीं चले। वहीं, कुछ नेता ये भी चाहते हैं कि राजद बड़ी पार्टी है और आरजेडी को हर मुद्दे पर जेडीयू पर हावी रहना चाहिए। ऐसी मानसिकता की वजह से महागठबंधन से देर-सवेर टूट की खबर आ जाए इसमें कोई संदेह नहीं।