न्यूज़ टुडे फ़िल्म अपडेट : मोतिहारी- बिहार/ मुम्बई- महाराष्ट्र :
सिनेमा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पुरस्कृत एवं दर्जनों अवार्ड से सम्मानित फ़िल्म लेखक, अभिनेता व निर्देशक डा. राजेश अस्थाना मुद्दों पर आधारित सामाजिक सरोकारों से जुड़ी फिल्में बनाने की वजह से अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। वर्ष 1985 में पहलीबार फ़िल्म “गोरखनाथ बाबा तोहे खिचड़ी चढ़इबो” से पहलीबार कैमरा फेश करनेवाले डा. अस्थाना दो दर्ज़न से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है। 23 टेलीफ़िल्में, 2 सीरियल, 8 डाक्यूमेंट्री एवं 6 फीचर फिल्म के साथ एक वेब सीरीज बनानेवाले डा. अस्थाना ने 150 नाटकों के मंचन के साथ साथ काफ़ी उत्पादों का मॉडलिंग भी किया है। मोतिहारी में दो फिल्मों भव्य फीचर फिल्म व वेब सीरीज “चम्पारण सत्याग्रह” एवं “बियाह होखे त अईसन” के सेट पर अपने वयस्त समय निकालकर कुछ बातें की। उन्होंने बताया कि इन दोनों फिल्मों को बनाना हमारा सपना है। डा. अस्थाना ने बताया कि कला की बारीकियों को सीखने की जगह मंच ही होता है।
क्या मैं पंडित राजकुमार शुक्ल जैसा दिखता हूं?
पिछले 15 वर्षों में काफी झंझावत को झेलने के पश्चात शुरू हुई “चम्पारण सत्याग्रह” में खुद को पंडित राजकुमार शुक्ल के किरदार में स्क्रीन पर दिखाना, मेरे लिए बड़ा सवाल था। मैं कहीं से भी उनकी तरह नहीं दिखता हूं। मेरे व्यक्तित्व में उनके जैसी कोई समानता नहीं है। मुझे इस बात की चिंता थी कि क्या मैं पंडित राजकुमार शुक्ल की तरह दिख पाऊंगा? लेकिन फिर मेरे टीम ने कहा कि कहा कि नेचुरल परफॉरमेंस जो आप देते हैं वह आपको पूर्ण पंडित राजकुमार शुक्ल बना देगा। जब मैंने उनका यकीन देखा तो ठान लिया कि इस भूमिका के लिए दस कदम आगे बढ़कर काम करूंगा।
दहेज की बलिबेदी पर भेंट चढ़ी बेटी का पिता बनाना भी मेरे लिए काफी चैलेंज
फ़िल्म “बियाह होखे त अईसन” में शादी के पाँचवें दिन दहेज की बलिबेदी पर भेंट चढ़ी बेटी का पिता बनाना भी मेरे लिए काफी चैलेंजिंग था वह भी तब जब तीन माह पूर्व ही अपनी सगी बेटी की शादी बिहार के बजाए एक हज़ार किलोमीटर दूर यूपी के हापुड़ में किया था। फिर सामुहिक विवाह के दृश्य फिल्माने के दौरान जब मैं बेटी की याद में रोने लगा तो एकबारगी 50 हज़ार दर्शकों की भीड़ में एकबारगी सन्नाटा छा गया।
एक अच्छी स्क्रिप्ट किसी भी प्रोजेक्ट को खास बनाता है
बतौर अभिनेता निर्देशक मुझे ये लगता है कि एक अच्छी स्क्रिप्ट किसी भी प्रोजेक्ट को खास बनाता है। एक स्क्रिप्ट आपको बता देती है कि आपको क्या करना है और आपको किरदार के बारे में विजन देता है। इसके बाद एक्टर अपना योगदान उस किरदार को और भी मजबूत बनाने में अपना प्रभाव डालता है।
कंटेंट की अब नहीं है कमी
पहले सिनेमा में कंटेंट की कमी थी। यह कमी कुछ सालों पहले तक थी लेकिन अब एेसा नहीं है। चूंकि अब अच्छे कंटेंट पर फिल्में बन रही हैं जिन्हें सराहना भी मिल रही है। वैसे भी हमारा देश कल्चरली काफ़ी रिच है तो कंटेंट की कमी नहीं होना चाहिए। अब वेब सीरिज के जरिए भी अच्छा कंटेंट सबके सामने आ रहा है।
रीजनल सिनेमा में प्रमोशन की कमी
बात करें बॉलीवुड की या फिर रीजनल सिनेमा की तो दोनों अपनी-अपनी जगह अच्छा कर रहे हैं। फर्क सिर्फ प्रमोशन का है कि रीजनल सिनेमा में बॉलीवुड के मुकाबले कम प्रमोशन किया जाता है।
भोजपुरी फिल्मों में आई अश्लीलता
बेशक भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता आई है। इसके लिए 90 प्रतिशत कुकुरमुत्ते की तरह उग आए रिकार्डिंग स्टुडियो है। नेट से ट्रैक चुराकर उसपर अश्लील या द्विअर्थी गाने के बोल भरकर यूट्यूब पर लोड कर देते हैं। यूट्यूब चैनल पर सरकार का नियंत्रण नही रहने से बिना सुर ताल के गा- गा कर यूट्यूबर स्टार बनकर कॉलर टाइट किए रहते हैं सब। बाकी बचे 10 प्रतिशत स्थापित निर्माता- निर्देशक और स्टार कलाकार लोग हैं, जिन्हें अपनी झोली भरने के अलावा दूसरा कोई काम नही है। भले ही भोजपुरिया समाज गर्त में ही क्यों न चली जाए। मेरी फिल्मों में कहीं से भी अश्लीलता नही होती है।
मेरे सपनों की फ़िल्म “चम्पारण सत्याग्रह” में पंडित राजकुमार शुक्ल एवं फ़िल्म बियाह होखे त अईसन पिता का किरदार मुझे अमर बना देगा। मैं अपनी फिल्मों के अलावा बाहर की फिल्में भी करना शुरू कर दिया है जिनमें देवता, दहेज के आग, केहू से प्यार हो जाला, ई हमार प्यार मोहब्बत जिंदाबाद आदि प्रमुख है।