न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
2014 से लेकर अब तक 19 दल एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं। इसमें सबसे नया नाम राजस्थान के नेता हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का है। हनुमान बेनीवाल ने नए कृषि कानूनों को लेकर एनडीए का साथ छोड़ा है। शरद पवार बोले-ऐसा ही रहा तो एनडीए को जल्द चाटनी पड़ेगी धूल, शिवसेना बोली- अकाली दल के निकले के बाद एनडीए में बचा ही क्या है, मौजूदा एनडीए के सबसे बड़े सहयोगी नीतीश की जदयू पर साफ नहीं है स्थिति
नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध के बीच भाजपा अगली बार में फिर से सत्ता में वापसी कर पाएगा। यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि मौजूदा एनडीए की जो सूरत है वह 2024 के चुनाव परिणाम के आईने में ऐसी दिखेगी कि जिससे भाजपा फिर से सत्ता के शिखर पर चमक उठे। कोरोना संकट के बाद कृषि कानूनों को लेकर एनडीए अकाली दल के रूप में अपना सबसे पुराना सहयोगी गंवा चुका है।
मौजूदा हालात को देखें तो पीएम मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए से जिस तरह से एक के बाद एक सहयोगी दल साथ छोड़ रहे हैं उससे तो भाजपा के 2024 का सपने पर ग्रहण लग सकता है। 2014 से लेकर अब तक 19 दल एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं। इसमें सबसे नया नाम राजस्थान के नेता हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का है। हनुमान बेनीवाल ने नए कृषि कानूनों को लेकर एनडीए का साथ छोड़ा है।
दक्षिण का मजबूत सहयोगी छूटा
साल 2018 में एनडीए की बड़ी सहयोगी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने भी एनडीए को अलविदा कह दिया। इससे भाजपा का दक्षिण में एक मजबूत सहयोगी कम हो गया। एक के बाद एक दलों के एनडीए छोड़ने पर शरद पवार ने हाल ही में कहा था कि यदि ऐसा चलता रहा तो जल्द ही एनडीए को धूल चाटनी पड़ सकती है।
‘अब एनडीए में बचा ही क्या है?’
इससे पहले एनडीए के सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल ने भी किसानों के समर्थन में इस धड़े से अपना नाता तोड़ लिया था। पार्टी के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक शिवसेना भी महाराष्ट्र में सीएम पद पर मतभेद के बाद एनडीए से अपनी राहें अलग कर ली थी। जब अकाली दल ने एनडीए छोड़ा तो शिवसेना ने उसे एनडीए का आखिरी पिलर बताया था। पार्टी का कहना था कि शिवसेना और अकाली दल के निकलने के बाद से एनडीए में बचा ही क्या है।
बिहार में जेडीयू पर स्थिति साफ नहीं
एनडीए के सबसे बड़े सहयोगी जेडीयू से भी भाजपा के संबंध बहुत अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। अरुणाचल में जिस तरह से जेडीयू के 7 विधायक भाजपा में शामिल हुए उससे स्थितियां पहले से बिगड़ी ही हैं। बिहार में भले ही दोनों दल मिलकर चुनाव लड़े हों लेकिन एनडीए के एक और सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी ने दोनों दलों के बीच मनभेद जरूर पैदा कर दिए हैं।
लोजपा का भविष्य स्पष्ट नहीं
एनडीए का हिस्सा होकर भी बिहार में लोजपा ने जिस तरह से जेडीयू को हरवाने का काम किया इससे जेडीयू भाजपा से ज्यादा खुश नहीं है। वहीं, बिहार में चुनाव के बाद चिराग पासवान का एनडीए में क्या भविष्य होगा इस पर साफ रूप से अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। राम विलास पासवान की सीट पर सुशील मोदी को राज्य सभा भेज भाजपा ने चिराग को भी संदेश दे ही दिया है।