न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★नीतीश कुमार जिस तरीके से गृह विभाग को लेकर सीएम का पद तक छोड़ने की धमकी अमित शाह को दे दिया था। उसी तरीके से सुशील मोदी को लेकर भी नीतीश सख्त हुए रहते तो बिहार में एक मजबूत और स्थिर सरकार बन सकती थी। सुशील मोदी को लेकर नीतीश का जो रवैया रहा है जानकार मानते हैं कि नीतीश दोस्त के दोस्त नहीं है ये एक बार फिर से साबित हो गया । दूसरी बात नीतीश सरकार में तब तक ही है जब तक इनके बाहर निकलने का कोई बेहतर विकल्प नहीं मिल जाता है।★
नीतीश कुमार जिस दौर से गुजर रहे हैं ये कोई अचरज की बात नहीं है। सभी सेलिब्रिटी इस दौर से गुजरते हैं और नीतीश कुमार की तरह ही फिर से वापसी शानदार तरीके से हो इसकी कोशिश भी करते हैं। हालांकि फिर से शानदार वापसी का इतिहास बेहतर नहीं है लेकिन कोशिश करने के दौरान सेलिब्रिटी की लोकप्रियता और कम हो जाती है इसके ढेर सारे उदाहरण हैं।इतना ही नहीं ऐसे सेलिब्रिटी जो अपने पुराने फर्म में वापसी के लिए जिस तरीके से समझौता करते हैं ऐसे में वो अपने खास समर्थकों का भी भरोसा खो देते हैं।
देखिए आगे आगे होता है क्या लेकिन इतना तो तय है इस बार नीतीश के लिए सीएम के पद पर बने रहना ही इनके लिए रोजाना नये नये तरीके की समस्या पैदा करेगी। क्योंकि इस बार मीडिया इनको बकसने के मूड में नहीं दिख रही है। वजह जो भी हो वही एक बार फिर यह चर्चा आम है कि नीतीश कुमार जिस तरीके से गृह विभाग को लेकर सीएम का पद तक छोड़ने की धमकी अमित शाह को दे दिया था। उसी तरीके से सुशील मोदी को लेकर भी नीतीश सख्त हुए रहते तो बिहार में एक मजबूत और स्थिर सरकार बन सकती थी।
सुशील मोदी को लेकर नीतीश का जो रवैया रहा है जानकार मानते हैं कि नीतीश दोस्त के दोस्त नहीं है ये एक बार फिर से साबित हो गया । दूसरी बात नीतीश सरकार में तब तक ही है जब तक इनके बाहर निकलने का कोई बेहतर विकल्प नहीं मिल जाता है।
नीतीश उसी दौर से गुजर रहे हैं एनडीए जिन जिलों में सबसे बेहतर किया है उन्हीं में है एक दरभंगा और दूसरा समस्तीपुर है छठ के दौरान इसकी वजह जानने के लिए विभिन्न जाति और वर्ग से जुड़े सैकड़ों वोटर से मिले और वजह जाननी चाही कि ऐसा क्या हुआ कि रातोंरात चीजें बदल गयी क्यों कि मतगणना के दिन भी एनडीए के समर्थक भी नहीं मानते थे कि दरभंगा में 9–1 हो जायेगा एनडीए बहुत अच्छा करेगा तो 5–5 हो सकता है यही स्थिति समस्तीपुर को लेकर भी था हमारे मित्र हैं डॉ. जितेंद्र उपाध्याय चुनाव से एक दिन पहले भी उनसे बात हुई थी नीतीश कुमार का नाम सुनने को तैयार नहीं थे उनसे मैंने पूछा ऐसा क्या हुआ जो पूरा गांव आपका पलट गया जी सही कह रहे हैं 15 वर्ष से रूप लाल यादव मेरा सारा काम देखता है उसका पूरा परिवार मेरे यहां ही रहता है ।
चुनाव के एक दिन पहले गांव पहुंचे तो गांव का पूरा युवा नीतीश को सबक सिखाने के लिए कमर कसे हुए था शाम में गांव के बड़े बुजुर्ग चुनाव को लेकर बैठक बुलाये युवा सब टाइट था इस बार नीतीश को आने नहीं देना है ठीक है हम लोग भी तुम्हारे साथ हैं लेकिन इस समस्या का भी समाधान बता दो जब से लालू के आने कि खबर चल रही है सोने लाल काम पर आना बंद कर दिया है भैंस का दूध निकालने का काम बंद है तीन दिन से गाय को खाने के लिए चारा नहीं दिया गया है यह सिर्फ मेरे यहां नहीं है सबके यहां यही स्थिति है 9 वर्ष से लेकर 90 वर्ष तक का यादव अभी से ही ताव दिखाने लगा है अभी ये हाल है सरकार बन गया तो खेती सब बंद करके रोसड़ा लौटना पड़ेगा सोच लो तुम लोग गांव के अति पिछड़ा भी इसी ताक में था कि मालिक बौआ सबके मना ले ।
जैसे ही बात जीविका और सुरक्षा पर आ गयी, धीरे धीरे युवा शांत होने लगा। अंत में तय हुआ कि गांव के सारे युवक जिसको जहां वोट करना है करके घर आ जायेगा कोई भी मतदान केन्द्र पर नहीं रहेगा और ना ही किसी के लिए वोट मांगेंगे जैसे ही यह तय हुआ गांव के बुजुर्ग अपना खेल शुरू कर दिया और देखते देखते सारा वोट नीतीश में शिफ्ट कर गया।
ऐसा एक ही गांव में नहीं हुआ तीसरे फेज में जहां कहीं भी चुनाव हुआ वहां इसी तरीके से रातोंरात चीजें बदल गयी। क्यों कि तीसरे फेज में जहां कहीं चुनाव हो रहा था खास करके मिथिलांचल और सीमांचल के उन इलाकों में यादव का गुंडाराज एक बड़ा फैक्टर था और इसी फैक्टर को याद दिलाने के लिए नीतीश और पीएम मोदी ने दूसरे और तीसरे फेज के चुनाव प्रचार के दौरान जंगलराज और अपहरण उद्योग की याद दिलाते हुए भाषणों में जम कर बोले और इसका व्यापक असर पड़ा क्यों कि ये वही इलाका है जहां लालू राज में आम लोग यादव के आतंक से परेशान रहते थे।
वोट देकर सरकार नीतीश का जरूर बना दिया लेकिन नीतीश को लेकर गुस्सा शांत नहीं हुआ है यू कहे तो कई ऐसे लोग मिले जो नीतीश के कामकाज से खासे प्रभावित थे वो आज नीतीश के नाम से नफरत और घृणा करते हैं ये गुस्सा सिर्फ युवा में ही नहीं है अति पिछड़ा और महिला वोटर भी है । ये गुस्सा नीतीश और इस सरकार के सेहत के लिए सही नहीं है क्यों कि सरकार पहले दिन से ही अलोकप्रिय है ऐसे में नीतीश कुमार की वापसी उतनी ही कठिन है जितना कठिन धोनी और सचिन के लिए था।