
न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
एनडीए के घटकों की घेराघेरी से बिहार के गवर्नर को हो सकती है चिंता, एआईएमआईएम के साथ हम और वीआईपी पर राजद के डोरे के बाद राजभवन पर निगाहें घूमेंगी, लोजपा के इकलौते राजकुमार और चकाई के सुमित होंगे भाजपा के खास, बसपा एमएलए महागठबंधन के करीब, बिहार में चुनाव पूर्व गठबंधनों के परफॉर्मेंस से 2005 की तरह एक बार फिर लाट साहब, यानी गवर्नर की भूमिका बड़ी हो सकती है।
बिहार में चुनाव पूर्व गठबंधनों के परफॉर्मेंस से 2005 की तरह एक बार फिर लाट साहब, यानी गवर्नर की भूमिका बड़ी हो सकती है। चुनाव पूर्व गठबंधन में एनडीए सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़े से 3 सीट आगे 125 पर है, लेकिन नीतीश कुमार की ओर से नई सरकार के गठन में हो रही देरी से राजभवन की ओर भी ध्यान जा रहा है। असद्दुदीन ओबैसी की पार्टी एआईएमआईएम के 5 विधायकों के साथ एनडीए के दोनों छोटे घटकों हम और वीआईपी पर महागठबंधन अब खुलकर डोरे डाल रहा है। जहां एनडीए की ओर से तोड़फोड़ का प्रयास होने की आशंका जताते हुए कांग्रेस ने अपने विधायकों को घेरकर रखा था, वहीं अब महागठबंधन के सबसे बड़े दल और विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी राजद ही एनडीए के घटकों की घेराघेरी से बिहार के गवर्नर को चिंता में डाल रहा है। घेराघेरी कामयाब रही तो बहुमत का आंकड़ा फंसेगा और राज्यपाल फागू चौहान की भूमिका सबसे अहम हो जाएगी।
6 अन्य पर महागठबंधन की नजर, दो एनडीए के करीब
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पिछले कैबिनेट का इस्तीफा सौंपकर नई सरकार का दावा पेश करना है, लेकिन परिणाम हाथ में आने के 36 घंटे से ज्यादा बीतने के बाद भी एनडीए फ्रंट पर नहीं आ रहा है। ऐसे में सीमांचल में एआईएमआईएम के 5 एमएलए और चैनपुर से बसपा के एमएलए मो. जमां खान को तो महागठबंधन अपने साथ मान ही रहा है, अपने पुराने साथियों को भी वापस आने का न्यौता खुलकर दे रहा है। दूसरी तरफ, लोजपा के राजकुमार सिंह अप्रत्याशित रूप से बेगूसराय के मटिहानी से जीते और चकाई से पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के बेटे सुमित ने निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज कर बैठे हैं कि एनडीए उन्हें जोड़ ले। एनडीए फंसी तो वह लोजपा के राजकुमार और निर्दलीय सुमित को अपनी तरफ खींच सकती है। सिर्फ एनडीए इन दोनों को खींचती है तो कोई परेशानी नहीं, क्योंकि उसके पास पहले से 125 एमएलए हैं, लेकिन अगर एआईएमआईएम और बसपा के अलावा महागठबंधन किसी को घेर पाने में सफल हुआ तो गेंद राजभवन के पाले में चली जाएगी। राजभवन को निर्वाचन आयोग की ओर से जीते विधायकों की सूची मिल भी गई है। इसलिए, अब सभी को सिर्फ नीतीश की पहल का ही इंतजार है।
बूटा सिंह को बिहार 15 साल में नहीं भूला, अब फागू की बारी
चुनाव पूर्व गठबंधन की जीत के बावजूद अगर घेराघेरी का खेल चला तो राज्यपाल फागू चौहान को तय करना होगा कि वह पहले किसे न्यौता देंगे। चाणक्या स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं कि चुनाव पूर्व गठबंधन में ज्यादा सीटें लाने वाली पार्टी को सरकार गठन के लिए बुलाने की परंपरा रही है, लेकिन राज्यपाल को भी यह देखना होगा कि इस गठबंधन के नेता के रूप में उनके सामने आने वाले राजनेता के पास सभी जीते विधायकों का समर्थन है या नहीं। किसी भी तरह का गठबंधन राजनीतिक दलों के बीच होता है और निर्वाचन आयोग गठबंधन नहीं बल्कि पार्टी विधायक के रूप में उसे चिह्नित करता है। इस सदी में फरवरी 2005 में एक बार ऐसा हुआ था कि किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और लोजपा अपना मुख्यमंत्री बनाने को अड़ी थी। इस बीच एनडीए सरकार बनाने की कोशिश में लगी तो तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने 22 मई की आधी रात विधानसभा भंग कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस फैसले को असंवैधानिक बताया था, हालांकि उस साल बिहार को दोबारा चुनाव में उतरना ही पड़ा था।
बूटा सिंह कांग्रेसी थे, फागू 6 बार रह चुके हैं भाजपा विधायक
बिहार के सर्वाधिक विवादित राज्यपाल सरदार बूटा सिंह कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार थे। वर्तमान राज्यपाल फागू चौहान छह बार भाजपा विधायक रह चुके हैं। फागू चौहान उत्तर प्रदेश में भाजपा के पिछड़ा वर्ग से एक प्रमुख चेहरा रहे हैं।