न्यूज़ टुडे टीम ब्रेकिंग अपडेट : नई दिल्ली :
चेक बाउंस को अपराध के दायरे से बाहर हटाने के वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव का बैंकों ने विरोध किया है। बैंकों ने वित्त मंत्रालय से अपील की है कि अभी नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट ऐक्ट के सेक्शन 138 को बने रहने दिया जाए, जिसके तहत चेक बाउंस होने को अपराध माना जाता है।
1881 के इस ऐक्ट के तहत यदि चेक बाउंस होता है तो खाताधारक दो साल तक की सजा हो सकती है या फिर चेक की रकम से दोगुने का जुर्माना भरना पड़ सकता है या फिर जुर्माना और सजा दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के जरिए बैंकों ने मंत्रालय से कहा है कि इस नियम के तहत उन्हें कर्ज की वसूली करने में मदद मिलती है।
बैकों ने कहा कि यदि कोई जानबूझकर कर्ज नहीं देना चाहता है तो फिर चेक बाउंस की प्रक्रिया के जरिए उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में मदद मिलती है। चेक बाउंस की प्रक्रिया में फंसने के डर से ही विलफुल डिफॉल्टर कर्ज भरते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों ने कहा कि विलफुल डिफॉल्टर्स के मामलों से निपटने के लिए इस नियम का बने रहना जरूरी है। इसके अलावा नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों ने भी वित्त मंत्रालय के इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
बैंकिंग सेक्टर के जानकारों का कहना है कि यदि चेक बाउंस को अपराध के दायरे से हटा दिए जाएगा तो फिर लोग लोन के कॉन्ट्रैक्ट का पालन नहीं करेंगे। इससे कर्ज वसूली में मुश्किलें बढ़ जाएंगी। यही नहीं कारोबारी समुदाय भी ऐसे प्रस्ताव को ठीक नहीं मान रहा। कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने कहा है कि चेक बाउंस को अपराध माना जाना चाहिए क्योंकि यदि ऐसा न हुआ तो बिजनेस की बकाया रकम या फिर प्राइवेट लोन्स की वसूली करना मुश्किल हो जाएगा।
दरअसल वित्त मंत्रालय ने 8 जून को ऐसा प्रस्ताव दिया था, जिसमें कुल 19 ऐक्ट्स के 38 प्रावधानों को खत्म किए जाने की बात थी। ये सभी कानून आर्थिक अपराधों से जुड़े हुए हैं। इसी के तहत सरकार ने चेक बाउंस को अपराध के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव रखा था।