न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
मंत्री मदन सहनी अभी भी सीएम नीतीश कुमार की ओर से पहल का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन, नीतीश कुमार अभी पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं। सहनी की हर गतिविधि पर नजर रखते हुए भी सीएम की ओर से कोई पहल नहीं की गई है। उधर, इस्तीफे का ऐलान करने के 40 घंटे बाद भी सहनी का लिखित इस्तीफा नहीं पहुंचा है। सियासी जानकारों का भी मानना है कि ऐन वक्त पर सहनी का मन बदल सकता है और इसका सीधा असर उनके इस्तीफे वाली घोषणा पर होगा।
वहीं, न्यूज़ टुडे टीम से बातचीत में मंत्री मदन सहनी ने प्रेशर पॉलिटिक्स पर कहा कि आज तक कभी भी प्रेशर वाला काम नहीं किया हूं। काम नहीं होगा, तो निरर्थक मंत्री पद पर बोझा बनकर नहीं रह सकता हूं। वहीं, इस्तीफे वाले सवाल पर सीधा कहा कि आज सब-कुछ क्लियर हो जाएगा। वे मुजफ्फरपुर में एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद पटना के लिए आज रवाना होंगे।
कैबिनेट बैठक में भी शामिल नहीं हुए
अधिकारियों की तानाशाही के खिलाफ इस्तीफा देने का ऐलान करने चुके मंत्री मदन सहनी ने शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तबादले पर मंत्री के हंगामा के बावजूद ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़ी फाइल अब भी प्रधान सचिव अतुल कुमार की टेबल पर रूकी पड़ी है। उधर, जदयू के कई नेताओं ने मंत्री को मनाने की कोशिशें की। दरभंगा में मौजूद मंत्री से जेडीयू के दो मंत्रियों ने भी संपर्क किया और उन्हें पटना आने को कहा।
हालांकि सहनी जो बोल रहे हैं। वो उनके लिए उतना भी आसान नहीं है । मंत्री पद छोड़ने की मुश्किलें और नीतीश कुमार के खिलाफ खुली बगावत करने के नतीजे वो भी जानते हैं । मामला प्रेशर पॉलिटिक्स का ही है । मंत्री मदन सहनी इस्तीफे की धमकी देकर सीडीपीओ औऱ डीपीओ के तबादले की वो लिस्ट जो उन्होंने फाइनल की है , उसे मंजूर कराना चाहते हैं।
इसीलिए सहनी हुए हैं बगावती
मदन सहनी भले ही जिद पर अडे हों। लेकिन प्रधान सचिव ने तबादले की फाइल पर जो टिप्पणी की है उसके बाद उसे मंजूरी मिलना बेहद मुश्किल है । कहा ये जा रहा है कि प्रधान सचिव ने तबादलों में गडबड़ी की रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजी है । ऐसे में अब आखिरी फैसला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेना है कि वो अपने मंत्री की चाहत पूरी करेंगे या प्रधान सचिव की सुनेंगे । सहनी के लिए मुश्किल ये है कि प्रधान सचिव अतुल कुमार ने इन तबादलों में जो गड़बड़ी बताई है वो तकनीकी रूप से पुष्ट भी हो रही हैं।
जून का इंतजार सभी मंत्रियों और बड़े अधिकारियों को रहता है। इसमें थोक में तबादले होते हैं। जिसमें लंबे रेट होते हैं। मनचाही पोस्टिंग हो या तबादला रुकवाना हो, सभी के लिए रकम तय होती है। अब तक लगभग 2300 तबादले हो चुके हैं। जिसकी चल गई उसकी चांदी और जिसकी नहीं चली उसको आया माल लौटाने की दिक्कत। इस बार कुछ की खूब चली, जबकि जो हल्के पड़े, वे निपट गए। अमूमन काम न करवा पाने वाले दिल मसोस कर रह जाते हैं, लेकिन इस बार मंत्री मदन सहनी ऐसे उदाहरण हैं जो पूरी व्यवस्था पर फट पड़े। उनकी बात का समर्थन करने के लिए बाढ़ से भाजपा विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू और बिस्फी विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल भी उतर पड़े हैं। दोनों ने ही तबादलों में मोटी रकम उगाहने के खेल पर मोहर लगाई है। ज्ञानू तो यहां तक कह बैठे कि अगर मंत्रियों के यहां इस समय छापे पड़ें तो करोड़ों मिलेंगे। सरकार के सहयोगी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी ने भी मदन सहनी के आरोपों को सही ठहराया है। हालांकि लेन-देन के इस कारोबार में कुछ विभाग ऐसे भी रहे जिनमें पैसा-पैरवी नहीं चली। घपला देख शिक्षा विभाग में पटना के बेसिक शिक्षा अधिकारियों के तबादले की सूची निरस्त कर दी गई।
इधर भाजपा कोटे के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन के साथ भी खेल हो गया। उद्योग विहीन बिहार में जब महत्वहीन उद्योग विभाग उन्हें मिला तो वे उसे खड़ा करने की ठान बैठे। देशभर में अपने संबंधों के आधार पर तमाम उद्योगपतियों से संपर्क कर बिहार में लाने की कवायद करने लगे। इथेनाल उत्पादन का उनका पासा सही पड़ा और तमाम लोगों ने रुचि दिखाई। जब कवायद पूरी हो गई तो उन्हें लगा कि इसकी घोषणा की जाए। मंत्री जी ने शुक्रवार का दिन तय किया। लेकिन जब वो गुरुवार को मुंबई से पटना चलने को तैयार हुए, उसी समय बिहार में राज्य निवेश प्रोत्साहन परिषद की बैठक हो गई और उसमें 12,744 करोड़ रुपये के 99 प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई, जिसमें अकेले 59 प्रस्ताव इथेनाल के हैं। इसके अतिरिक्त, तीन दिनों में नए मिले 87 प्रस्तावों की जानकारी भी सार्वजनिक कर दी गई। अब शाहनवाज हुसैन के पास बताने के लिए कुछ भी नहीं बचा। इसको लेकर भी तरह-तरह की चर्चा है। कुछ इसे शाहनवाज की तेजी पर ब्रेक के रूप में देख रहे हैं तो कुछ कह रहे हैं कि ये तो होना ही था।