न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) व नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन (एनईजीवीएसी) के अध्यक्ष डॉ.वीके पॉल ने गुरुवार को देश में चल रहे कोविड-19 टीकाकरण अभियान से जुड़े सात मिथकों को खारिज करते हुए वास्तविकता से रू-ब-रू कराया। नीति आयोग ने एक बयान में कहा कि ये मिथक बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश किए जाने, अर्ध सत्य और खुलेआम बोले जाने वाले झूठ के कारण फैल रहे हैं। आइए जानते हैं कि टीकाकरण अभियान को लेकर फैलाए जा रहे मिथकों की हकीकत क्या है.
मिथक-1 : केंद्र दूसरे देशों से वैक्सीन की खरीद के लिए समुचित प्रयास नहीं कर रहा है
हकीकत : इसे खारिज करते हुए डॉ. पॉल ने कहा कि केंद्र सरकार वर्ष 2020 के मध्य से ही सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं के साथ लगातार संपर्क में है। इस बीच फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन तथा मॉडर्ना के साथ कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं। सरकार ने उन निर्माताओं को भारत में टीकों की आपूर्ति तथा उनके निर्माण के लिए सभी प्रकार की मदद का प्रस्ताव दिया है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि इन कंपनियों के टीके आपूíत के लिए मुफ्त में उपलब्ध हैं। हमें यह समझाना होगा कि वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की आपूर्ति सीमित है। ऐसे में कंपनियों की भी अपनी प्राथमिकताएं, योजनाएं और मजबूरियां हैं। उन्हें उस देश को प्राथमिकता देनी होती है, जहां वैक्सीन का निर्माण हो रहा है। जैसा कि हमारे अपने वैक्सीन निर्माताओं ने देश के लिए बेहिचक किया है। फाइजर ने जैसे ही वैक्सीन की उपलब्धता का संकेत दिया, केंद्र सरकार और कंपनी वैक्सीन के जल्द से जल्द आयात की तैयारियों में जुट गईं। भारत सरकार के प्रयासों से स्पुतनिक वैक्सीन के परीक्षणों में तेजी आई और समय पर उसे हरी झंडी भी मिल गई। रूस वैक्सीन की दो खेप भेजने के साथ-साथ तकनीक का हस्तांतरण भी कर चुका है। बहुत जल्द हमारी कंपनियां वैक्सीन का निर्माण शुरू कर देंगी।
मिथक-2 : केंद्र ने वैश्विक स्तर पर उपलब्ध टीकों को मंजूरी नहीं दी है
हकीकत : केंद्र सरकार ने अप्रैल में ही देश में उन वैक्सीन के प्रवेश और इस्तेमाल की प्रक्रिया को आसान बना दिया है, जिन्हें अमेरिकी एजेंसी एफडीए, ईएमए, ब्रिटेन की एमएचआरए और जापान की पीएमडीए और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की आपातकालीन उपयोग सूची में शामिल किया जा चुका है। इन टीकों को पूर्व की तरह ब्रिजिंग परीक्षणों से गुजरने की जरूरत नहीं होगी। अन्य प्रविधानों में भी संशोधन किए गए हैं। फिलहाल, किसी विदेशी वैक्सीन निर्माता का कोई आवेदन औषधि नियंत्रक के पास लंबित नहीं है।
मिथक-3: केंद्र टीकों के घरेलू उत्पादन में तेजी लाने के लिए उचित प्रयास नहीं कर रहा है
हकीकत : डॉ. पॉल का कहना है कि केंद्र सरकार वर्ष 2020 की शुरुआत से ही अधिक से अधिक कंपनियों को वैक्सीन उत्पादन में सक्षम बनाने के लिए सूत्रधार की भूमिका निभा रही है। सिर्फ एक भारतीय कंपनी (भारत बायोटेक) के पास आइपी (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) है। केंद्र सरकार ने सुनिश्चित किया है कि भारत बायोटेक अपनी उत्पादन क्षमता में इजाफा तो करेगी ही, साथ-साथ तीन अन्य कंपनियां/संयंत्र भी कोवैक्सीन का उत्पादन शुरू करेंगी। इस प्रकार अब एक की जगह चार इकाइयों में कोवैक्सीन का उत्पादन होगा। भारत बायोटेक कोवैक्सीन का उत्पादन अक्टूबर तक एक करोड़ प्रति माह से बढ़ाकर 10 करोड़ प्रति माह करने जा रही है। इसके अलावा तीनों सार्वजनिक उपक्रमों के लिए दिसंबर तक चार करोड़ खुराक उत्पादन लक्ष्य तय किया गया है। सरकार के प्रोत्साहन से सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्ड का उत्पादन 6.5 करोड़ से बढ़ाकर 11 करोड़ खुराक प्रति माह कर रही है। भारत सरकार रूस के साथ साझेदारी में यह भी सुनिश्चित कर रही है कि स्पुतनिक वैक्सीन का निर्माण डॉ. रेड्डी के समन्वय के साथ छह कंपनियों द्वारा किया जाए। केंद्र सरकार जायडस कैडिला, बायोई के साथ-साथ जेनोवा के स्वदेशी टीकों के लिए कोविड सुरक्षा योजना के तहत वित्तीय मदद के साथ-साथ राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में तकनीकी सहायता भी उपलब्ध करा रही है। भारत बायोटेक की एक खुराक वाली इंट्रानेजल (नाक से दी जाने वाली) वैक्सीन के विकास का काम भी सरकार की वित्तीय मदद के साथ बेहतर रूप से आगे बढ़ रहा है। यह दुनिया के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकती है। वर्ष 2021 के अंत तक हमारे वैक्सीन उद्योग द्वारा 200 करोड़ से अधिक खुराक के उत्पादन का अनुमान ऐसे ही प्रयासों, समर्थन व साझेदारी का परिणाम है। पारंपरिक के साथ-साथ अत्याधुनिक डीएनए और एमआरएनए प्लेटफार्मों में किए जा रहे इन प्रयासों के संबंध में न जान कितने देश इतनी बड़ी क्षमता के साथ निर्माण का सिर्फ सपना ही देख सकते हैं। भारत सरकार और वैक्सीन निर्माताओं ने बिना रुके इस मिशन में टीम इंडिया के रूप में काम किया है।
मिथक-4 : केंद्र को अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू करनी चाहिए
हकीकत : नीति आयोग सदस्य डॉ. पॉल के अनुसार, अनिवार्य लाइसेंसिंग बहुत आकर्षक विकल्प नहीं है। यह अधिक मायने रखने वाला फॉर्मूला भी नहीं है। हालांकि, सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की व्यवस्था और जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की जरूरत है। तकनीक का हस्तांतरण एक कुंजी है और यह उस कंपनी के अधिकार में होती है, जिसने उसका अनुसंधान और विकास किया है। वास्तव में हम अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ चुके हैं और कोवैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और तीन अन्य संस्थाओं के बीच सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। स्पुतनिक के लिए भी ऐसा ही किया जा रहा है। जरा सोचिए, मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी दूसरी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी। इसके बावजूद एक भी कंपनी अब तक मॉडर्ना की वैक्सीन नहीं बना सकी है। इससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग बेहद छोटी समस्या है। अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता तो विकसित देशों में भी उसकी खुराक की इतनी कमी क्यों होती?
मिथक-5: केंद्र ने राज्यों पर छोड़ दी है अपनी जिम्मेदारी
हकीकत: डॉ. पॉल कहते हैं कि केंद्र सरकार सारे बड़े काम कर रही है। इनमें वैक्सीन निर्माताओं को फंडिंग से लेकर उन्हें भारत में वैक्सीन आपूíत के लिए उत्पादन में तेजी लाने की शीघ्र मंजूरी देने जैसे काम शामिल हैं। केंद्र द्वारा खरीदा गया टीका लोगों को मुफ्त में लगाने के लिए राज्यों को दिया जाता है। यह सब राज्यों की जानकारी में है। भारत सरकार ने केवल राज्यों को उनके अनुरोध के बाद खुद टीकों की खरीद का प्रयास करने के लिए सक्षम बनाया है। राज्यों को देश की उत्पादन क्षमता और विदेश से सीधे वैक्सीन खरीद में आने वाली कठिनाइयों के बारे में अच्छी तरह पता है। भारत सरकार ने जनवरी से अप्रैल तक संपूर्ण टीकाकरण कार्यक्रम का संचालन किया और मई की स्थिति की तुलना में वह काफी बेहतर रहा। लेकिन, जो राज्य इन तीन महीनों में स्वास्थ्य कíमयों और अग्रिम पंक्ति के काíमकों के टीककरण में अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सके वे टीकाकरण की प्रक्रिया का विस्तार और विकेंद्रीककरण चाहते थे। स्वास्थ्य राज्य का विषय है और उदारीकृत टीका नीति राज्यों द्वारा उन्हें अधिक अधिकार देने के लिए किए जा रहे लगातार अनुरोधों का ही परिणाम थी। सच्चाई यह है कि उनकी वैश्विक निविदाओं का कोई परिणाम नहीं निकला। यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि दुनियाभर में टीके की कमी है और उसे कम समय में खरीदना आसान नहीं है। यही बात हम राज्यों को पहले दिन से बता रहे हैं।
मिथक-6: राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन नहीं दे रहा है केंद्र
हकीकत : एनईजीवीएसी अध्यक्ष डॉ. पॉल के अनुसार, केंद्र राज्यों को तय दिशा-निर्देशों के अनुसार पारदर्शी तरीके से पर्याप्त वैक्सीन आवंटित कर रहा है। सच्चाई यह है कि राज्यों को वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में पहले से ही सूचित किया जा रहा है। जल्द ही वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है। इसके बाद अधिक आपूíत संभव हो सकेगी। गैर-सरकारी माध्यम में राज्यों को 25 फीसद और निजी अस्पतालों को 25 फीसद खुराक मिल रही है। हालांकि, इन 25 फीसद खुराक को पाने में ही लोगों को मुश्किलों और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जो बहुत कुछ बयां करता है। टीके की आपूíत से संबंधी तथ्यों की पूरी जानकारी के बावजूद हमारे कुछ नेताओं का प्रतिदिन टीवी पर दिखाई देने वाला व्यवहार लोगों में दहशत पैदा करता है और यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। यह समय राजनीति करने का नहीं है। हम सभी को इस लड़ाई में एकजुट होने की जरूरत है।
मिथक-7: केंद्र बच्चों के टीकाकरण के लिए कोई कदम नहीं उठा रहा है
हकीकत : डॉ. पॉल कहते हैं कि अब तक दुनिया का कोई भी देश बच्चों को वैक्सीन नहीं दे रहा है। यही नहीं, डब्ल्यूएचओ ने भी बच्चों के टीकाकरण की कोई सिफारिश नहीं की है। बच्चों में टीकों की सुरक्षा के बारे में अध्ययन किए गए हैं और वे उत्साहजनक रहे हैं। भारत में भी जल्द ही बच्चों पर वैक्सीन का परीक्षण शुरू होने जा रहा है। हालांकि, बच्चों का टीकाकरण वाट्सएप ग्रुपों में फैलाई जा रही दहशत के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ राजनेता इस मुद्दे पर राजनीति करना चाहते हैं। परीक्षणों के आधार पर पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध होने के बाद ही हमारे विज्ञानियों द्वारा इस विषय में निर्णय लिया जाएगा।