न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
”जम्मू-कश्मीर की तरह पश्चिम बंगाल का तीन हिस्सों में विभाजन करने की योजना पर काम चल रहा है। दक्षिण हिस्से को पश्चिम बंगाल कहा जाएगा। मौजूदा पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग के गोरखा इलाके को, माने सिलिगुड़ी कॉरीडोर और दार्जिलिंग को अलग राज्य बनाया जाएगा और मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तरी दिनाजपुर- दक्षिणी दिनाजपुर को मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा?”
ये पंक्तियां एक दैनिक अखबार में डॉ. भारत अग्रवाल ने अपने नियमित स्तंभ ‘पॉवर गैलरी’ में लिखी हैं। अपने इस कॉलम में वह सत्ता की गलियारों से जुड़ी वे बातें लिखते हैं, जिसकी सुगबुगाहट या फुसफुसाहट पर्दे के पीछे होती है। यह एक तरह से गॉसिप का कॉलम है। पर गॉसिप के कॉलम में भी पश्चिम बंगाल के विभाजन की बात लिखना अहम हो जाता है। इसके बावजूद कि उन्होंने अपनी बात के अंत में प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है।
डॉ. अग्रवाल की पंक्तियों पर चर्चा सोशल मीडिया पर भी हो रही है। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने लिखा- यदि समस्या कश्मीर जैसी तो उपचार भी उसी ढंग का !
किशोर एक दैनिक अखबार समूह में काम भी कर चुके हैं। उन्होंने फेसबुक पर लिखा- खबरों के मूल स्रोत तक डाक्टर साहब (भारत अग्रवाल) की पहुंच लाजवाब है। अखबारी दिनों से ही डा.अग्रवाल मेरे परिचित हैं। वे पेशे से चिकित्सक हैं। उनकी राजनीतिक प्रतिभा को भी मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। माना जा सकता है कि उनकी खबर सही ही होगी।
उन्होंने पोस्ट में आगे लिखा, वैसे भी इस देश के हाथों से फिसलते जा रहे पश्चिम बंगाल के लिए एकमात्र उपाय वही है जो केंद्र सरकार करने जा रही है। देखना है कि केंद्र सरकार सफल होती है या नहीं। क्योंकि संवैधानिक अधिकार यदि संसद के पास है तो सड़कों को लोगों से पाट देने की कूबत ममता बनर्जी के पास भी है। अब देखना है कि देश बचता है या ममता की गद्दी ? कश्मीर जैसी समस्या जहां है,उपचार भी वहां कश्मीर जैसा ही तो करना पड़ेगा ! इस गहराती समस्या को अगली पीढ़ियों के लिए तो नहीं छोड़ा जा सकता। कश्मीर का अनुभव कड़वा जा रहा है ! आजादी के बाद से ही दशकों तक ‘कश्मीर’ को बिगड़ने दिया गया था।
सिंह मानवेन्द्र ने किशोर के पोस्ट पर जब कमेंट किया कि बगैर विधानसभा के प्रस्ताव के ये असंभव है दीदी ये प्रस्ताव कभी नहीं भेजेंगी तो किशोर ने इस पर जवाब दिया- एक जानकार नेता जयपाल रेड्डी ने 2013 में कहा था कि किसी राज्य के विभाजन के लिए उस राज्य विधान सभा से विभाजन के पक्ष में प्रस्ताव पास कराने की कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है। संभवतः सुप्रीम कोर्ट का भी यही निर्णय है।
पत्रकार ओम प्रकाश अश्क टिप्पणी करते हैं- देखना है कि केंद्र सरकार सफल होती है या नहीं। क्योंकि संवैधानिक अधिकार यदि संसद के पास है तो सड़कों को लोगों से पाट देने की कूबत ममता बनर्जी के पास भी है।
2019 में 31 अक्तूबर को केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया था। इससे पहले संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधनियम पारित कराया गया था।