न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★बिहार में इस समय कई नेताओं को खरमास बीतने और मकरसंक्रांति के आने का बेसब्री से इंतजार है। दही-चूड़े के भोज के साथ कई राजनीतिक समीकरण बदलने के आसार दिख रहे हैं। खासकर वो नेता जो इस वक्त किसी पार्टी का हिस्सा नहीं उन्हें खरमास खत्म होने का इंतजार है। बिहार की राजनीति में नेता किस करवट पलट जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता। राजद विधायक सुधाकर सिंह की टिप्पणी के जवाब में जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की प्रतिक्रिया को सामान्य बयान की तरह नहीं लिया जा सकता। उसके गहरे अर्थ हैं।★
बिहार की राजनीति के लिए संक्रांति पर चूड़ा-दही भोज खास रहेगा। पाला बदलने को बेताब कई नेताओं को खरमास खत्म होने और शुभ मुहूर्त के आने का बेसब्री से इंतजार है। इस बीच सत्तारूढ़ दल की ओर से एक ही दिन दो भोज के आयोजन की घोषणा को लेकर कई मायने निकाले जा रहे हैं। पहला भोज राजद सुप्रीमो लालू यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर होगा। वहीं, दूसरा चूड़ा-दही का न्यौता जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा दे रहे हैं। ऐसे में पुरानी नाव छोड़ चुके नेताओं के दिन काटे नहीं कट रहे हैं।
दल बदलने की परंपरा दोहराने की तैयारी
बिहार में खरमास खत्म होने के बाद दल बदलने की परंपरा भी रही है। इसी को दोहराने की तैयारी चल रही है। वर्तमान में घोषित तौर पर दो नेताओं को शुभ मुहूर्त का बेसब्री से इंतजार है। दोनों नेता के दिन काटे नहीं कट रहे हैं। दोनों दलों के नेता अपने-अपने दल के लिए मीडिया मैनेजर के रूप में शुमार रहे हैं। अब दोनों नया ठौर तलाश रहे हैं। इस बीच चर्चा है कि कई सांसद भी भविष्य की राजनीति अंधकार मय देखकर नया ठिकाना तलाशने में जुट गए हैं। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने पार्टी छोड़ दी है। इसी तरह लोजपा प्रमुख व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने श्रवण को पार्टी से निकाल दिया है। दोनों के दोनों वर्तमान में किसी भी दल में नहीं है।
चूड़ा-दही के बाद की रही है परंपरा
बिहार में वर्ष 2018 के चूड़ा-दही भोज के बाद कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने पाला बदल लिया था, तब जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की ओर से भोज का आयोजन हुआ था। डेढ़ महीने बाद अशोक चौधरी जदयू में शामिल हो गए थे। अब चर्चा है कि कई दलों के संगठन से जुड़े प्रदेश पदाधिकारी भी प्रदेश नेतृत्व से असंतुष्ट होकर दल और दिल बदलने की तैयारी कर रहे हैं।
JDU से दूर और BJP के करीब होते दिख रहे उपेंद्र कुशवाहा, दही-चूड़ा की दावत से मिल सकता है अगले कदम का संकेत
बिहार में बारह मास राजनीति होती है। राजद के चर्चित विधायक सुधाकर सिंह की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अशोभनीय टिप्पणी के जवाब में जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की प्रतिक्रिया को सामान्य बयान की तरह नहीं लिया जा सकता। उसके गहरे अर्थ हैं, जो बिहार में महागठबंधन की राजनीति में बड़े उथल-पुथल के संकेत दे रहे हैं, क्योंकि इसी की ओट में उन्होंने लालू-राबड़ी राज को कठघरे में खड़ा किया है।
कुशवाहा 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा की दावत देने वाले हैं। सबको इसकी प्रतीक्षा है। जदयू के सभी सांसदों-विधायकों को आमंत्रित तो किया है, बड़े नेताओं की मौजूदगी बहुत हद तक साफ कर देगी कि कुशवाहा अपने दल में कितने सुकून से हैं। प्रतीक्षा इसलिए भी है कि वे यह दावत जदयू नहीं, बल्कि अपने संगठन महात्मा फुले समता परिषद की ओर से देने वाले हैं।
अपने राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए कुशवाहा के संकेत
अपने राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए कुशवाहा संकेत देने में कोताही नहीं कर रहे। उन्होंने अपने पुराने दल राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के पिछले वर्ष जदयू में विलय के बाद भी अपने संगठन महात्मा फुले समता परिषद को बचाकर रखा है, ताकि विपरीत स्थिति में काम आए। पिछले एक महीने के उनके बयानों का अगर विश्लेषण किया जाए तो वह हर कदम पर जदयू को आईना दिखाते नजर आते हैं।
सुधाकर सिंह पर कार्रवाई की मांग के बहाने लालू-राबड़ी राज की चर्चा
ताजा बयान सुधाकर सिंह पर कार्रवाई की मांग के बहाने लालू-राबड़ी राज की चर्चा से जुड़ा है। अपनी ही सरकार के विरुद्ध बयान देकर चर्चा में आए सुधाकर पर भड़के कुशवाहा ने राजद के साथ जदयू की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। सुधाकर पर कार्रवाई की मांग और लालू राज की याद दिलाते हुए कुशवाहा ने तेजस्वी यादव को भी आईना दिखाया है। उन्होंने कहा कि नीतीश ने कैसे उस खौफनाक मंजर से बिहार को बाहर निकाला है, इसपर भी विचार करना चाहिए।
कुढ़नी विधानसभा के उपचुनाव में जदयू प्रत्याशी की हार पर कुशवाहा ने अपने ही दल की कार्यशैली पर सवाल उठाए
इसके पहले कुढ़नी विधानसभा के उपचुनाव में जदयू प्रत्याशी की हार पर कुशवाहा ने अपने ही दल की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। राजद के साथ जदयू के गठबंधन के बारे में कहा था कि ऊपर से दोनों एक हो गए, लेकिन कार्यकर्ताओं की मनोदशा को नहीं समझा गया। कुशवाहा ने एक और बड़ा बयान तब दिया जब राजद-जदयू के विलय की खबरें आने लगीं। उन्होंने इसे जदयू के लिए आत्मघाती बताकर नीतीश कुमार को सचेत किया। हालांकि नीतीश ने अगले दिन साफ कर दिया कि दोनों दलों के विलय जैसी कोई बात नहीं है।
भाजपा की जरूरत बन सकते हैं कुशवाहा
कुशवाहा का अगला कदम भाजपा से भी जुड़ा हो सकता है। नीतीश कुमार की सरकार से भाजपा के बाहर होने के बाद एनडीए को बिहार में नए सहयोगियों की जरूरत है। इसी सिलसिले में चिराग पासवान को भाजपा ने एक अंतराल के बाद दोबारा अपनाया है। जदयू से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह भी भाजपा की लाइन पर ही चलते दिख रहे हैं। इसके अलावा भी भाजपा को कुछ अन्य सहयोगियों की तलाश है। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा की गतिविधियों पर नजर है। बिहार में कोईरी वोटरों की संख्या को देखते हुए कुशवाहा भाजपा की जरूरत बन सकते हैं।