न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
देश के एडिशनल डिप्टी सीएजी राकेश मोहन ने पटना में कहा है कि बिहार वित्तीय संकट की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार उपलब्ध फंड और कमाई का हिसाब किए बिना भारी खर्च का बजट पेश कर देती है। ऊपर से कई विभाग आवंटित फंड का चौथाई हिस्सा खर्च नहीं कर पाते।
सरकारी खर्चों का हिसाब-किताब देखने वाली संस्था नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी ने कहा है कि बिहार वित्तीय संकट की ओर बढ़ रहा है क्योंकि राज्य सरकार ऐसा बजट बनाती है जो यथार्थ से दूर है। बड़ा बजट और कम खर्च… जो खर्च हो उसका भी हिसाब देने में आनाकानी… यानी गड़बड़ी की संभावना। यही चिंता है सरकारी खजाने के पाई-पाई का हिसाब रखने वाले महालेखाकार की जिसे समय पर सरकारी खर्चे का ठीक-ठीक हिसाब नहीं मिल रहा है। जो राशि बाकी है वह छोटी-मोटी नहीं पूरी 55,405 करोड़ है। अपर उप नियंत्रक- महालेखापरीक्षक राकेश मोहन के मुताबिक यह रकम वित्तीय वर्ष 2016 से 2019 के बीच की है। इसमें आधे से अधिक सिर्फ तीन सरकारी विभागों ने खर्च किया है और उसका हिसाब नहीं दिया है।
आपदा प्रबंधन से 14864 करोड़, पंचायती राज से 13073 करोड़ और ग्रामीण विकास से 6579 करोड़ रुपए का उपयोगिता प्रमाण पत्र मिलना बाकी है। इतना ही नहीं , 5770 करोड़ कच्चे (एसी) बिल पर सरकारी विभागों ने खर्च कर दिया लेकिन उसका पक्का (डीसी) बिल ही नहीं दिया। बकौल राकेश मोहन नगर एवं आवास और पंचायती राज विभाग तो ऑडिट में सहयोग ही नहीं कर रहे हैं। दोनों विभाग कोई रिकॉर्ड ही नहीं दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि सीएजी अपने संवैधानिक दायित्व के तहत विभागों का ऑडिट करता है। अगर कोई विभाग इसमें सहयोग नहीं करता है तो यह गंभीर मामला बनता है। वह राज्य सरकार के अधिकारियों से मिलने के बाद पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे।
नियमों का उल्लंघन : सरकार को राजस्व की कमी और पीडी खाते में पड़े हैं 4377 करोड़
बिहार जैसे राज्यों में खुद के राजस्व की कमी रहती है। लेकिन राज्य के 175 पीडी खाते (पसर्नल डिपोजिट खाते) 4377 करोड़ हैं। चार साल से 9 पीडी खाते में करीब 66 करोड़ रुपए, पड़े हुए हैं। इस राशि को राज्य के समेकित निधि में जमा किया जाना चाहिए। पीएल खातों में भी 35 करोड से अधिक राशि पड़ी हुई है। बैंक की तरह ही राज्य के कोषागारों में विभागों का खाता होता है। इसमें स्कीम मदों की राशि ही रखी जाती है। लेकिन आमतौर पर विभाग वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन जो राशि खर्च नहीं कर पाता है, उसे भी इसी खाते में पार्क कर देता है। जबकि नियमानुसार उस राशि को समेकित निधि में जमा किया जाना चाहिए।
वास्तविकता से दूर : बजट 2.09 लाख करोड़ का, 23% राशि खर्च ही नहीं कर पाई सरकार
राकेश मोहन ने बिहार के बजट निर्माण की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया। कहा कि बजट बनाने की प्रक्रिया तर्कसंगत नहीं है क्योंकि, बजट अनुमान और वास्तविक खर्च में भारी अंतर है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में राज्य का बजट 2.09 लाख करोड़ था, जबकि खर्च 1.60 लाख करोड़ ही हुआ यानी कुल बजट का 23 फीसदी खर्च नहीं हो सका। बिहार धीरे-धीरे वित्तीय सरप्लस से घाटे की ओर बढ़ रहा है। वर्ष 2018-19 में 6897 करोड़ सरप्लस था लेकिन 2019-20 में 2000 करोड़ घाटे का अनुमान है। कोरोना महामारी से वर्ष 2020-21 में स्थिति और खराब हो सकती है।