न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद लोजपा नेताओं के सीएम नीतीश कुमार के लिए अब वैसे बयान नहीं आ रहे जैसे चुनाव के दौरान आ रहे थे. लोक जनशक्ति पार्टी ने साफ कर दिया है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्यसभा सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी.
अब चर्चा इस बात की हो रही है कि लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान के इस फैसले के क्या मायने हैं और आने वाली बिहार की राजनीति पर इसका क्या असर पड़ेगा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें पहले लोजपा के उन दो ट्वीट की भाषा को समझना चाहिए जिसमें एलजेपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारने का ऐलान किया है.
लोजपा ने ट्वीट में लिखा, ‘लोक जनशक्ति पार्टी व दलित सेना के संस्थापक आदरणीय राम विलास पासवान जी के निधन के बाद से रिक्त पड़ी राज्यसभा की सीट पर चुनाव है. राज्यसभा की यह सीट संस्थापक के लिए थी जब पार्टी के संस्थापक ही नहीं रहे तो यह सीट बीजेपी किसको देती है यह उनका निर्णय है.
लोजपा ने अगले ट्वीट में लिखा, ‘राष्ट्रीय जनता दल के कई साथियों ने अपना समर्थन इस सीट पर लोजपा प्रत्याशी के लिए करने की बात की है. उनके समर्थन के लिए पार्टी आभार व्यक्त करती है. इस राज्य सभा सीट पर लोजपा का कोई भी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ना चाहता है.’
भविष्य के क्या हैं सियासी संकेत?
लोजपा के इस फैसले पर राजनीतिक जानकार कहते हैं कि दरअसल चिराग पासवान ने बहुत ही बुद्धिमतापूर्वक काम किया है और एक साथ सियासत के तीन निशाने साध लिए हैं. मेरा यह मानना है कि चिराग ने यह फैसला कर अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया है और पीएम मोदी के हनुमान अब भी बने रहने के संकेत दिए हैं, जेडीयू की नाराजगी को भी भाव दिया है और राजद के साथ अपने रिश्तों के लिए स्पेस बनाकर कर रखा है.
भाजपा के पाले में चिराग ने डाली गेंद
चिराग ने यह फैसला कर अपने लिए जहां केंद्रीय एनडीए में बने रहने का रास्ता साफ कर दिया है वहीं, पीएम मोदी और भाजपा के लिए अपनी लॉयल्टी का सबूत भी दे दिया है. इसके साथ ही यह भी साफ कर दिया है कि अब गेंद भाजपा के पाले में है कि वह लोजपा के साथ आने वाले समय में क्या सलूक करती है. अगर लोजपा अपना उम्मीदवार खड़ा करती तो यह परसेप्शन बन जाता कि उन्होंने स्वयं अलग होने का फैसला किया. ऐसे में बीजेपी अपनी जिम्मेदारी से बच जाती और चिराग को राजनीतिक नुकसान होता.
तेजस्वी की रणनीति को भांप गए चिराग
एलजेपी की तरफ से रीना पासवान ( दिवंगत राम विलास पासवान की पत्नी व चिराग पासवान की मां) को उम्मीदवार बनाया जाता तो इसका राजनीतिक लाभ चिराग से ज्यादा तेजस्वी यादव को मिलता. यहां बीजेपी दलित विरोधी अगर घोषित होती और तेजस्वी हितैषी. ऐसे में चिराग ने अपने फिलहाल अपने राजनीतिक भविष्य को जिस पाले में सेफ देखा उसके अनुकूल फैसला लिया है क्योंकि अगर उम्मीदवार उतारते भी तो लोजपा की हार तय थी, लेकिन तेजस्वी के लिए बिग बूस्ट जरूर होता.
राजद के साथ रिश्तों को भी नहीं नकारा
वहीं, लोजपा प्रमुख का ताजा फैसला बीजेपी से प्रेम और जेडीयू से तल्खी के बीच एक संतुलन की सियासत के लिहाज से भी बेहतर है. विधान सभा चुनाव परिणाम के बाद लोजपा नेताओं के सीएम नीतीश कुमार के लिए अब वैसे बयान नहीं आ रहे जैसे चुनाव के दौरान आ रहे थे. ऐसे में संभवत: फिलहाल लोजपा के लिए जदयू की नाराजगी को भी एड्रेस करने की कोशिश की गई है. साथ ही राजद से अपने रिश्तों को नहीं बिगाड़ने के संकेत देकर भविष्य की राजनीति के लिए संभावनाएं छोड़ दी हैं.
अब क्या हैं सियासी संभावनाएं
दूसरी ओर चिराग ने अपने कई वक्तव्यों में यह साफ कर दिया है कि वे संघर्ष के रास्ते पर चलेंगे. वैसे भी बिहार की राजनीति के लिहाज से फिलहाल बहुत अधिक हलचल नहीं होने वाली है ऐसे में चिराग पासवान आगामी एक दो वर्ष तक अपनी आगामी राजनीति को तैयार करने पर बल देंगे. वहीं, आने वाले समय में यह भी देखने को मिल सकता है कि चिराग पासवान को पीएम मोदी और भाजपा के लिए अपनी लॉयल्टी का इनाम केंद्रीय सरकार में शामिल कराकर मिले.