
न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
जैसे-जैसे जमीन पर यह संदेश फैलने लगा कि अगर राजद की सरकार आई तो शराबबंदी खत्म कर दी जाएगी. इससे महिलाओं की चेतना जगी और दूसरे फेज में महिलाओं ने इसे अपने जीवन पर बुरे प्रभाव के तौर पर देखना शुरू कर दिया.अब पांच साल बाद उस समय की सरकार में शामिल राजद और कांग्रेस इस कानून पर सवाल उठाया. वहीं, तेजस्वी यादव और वाम दलों ने भी इससे इनकार नहीं किया. ऐसे में महिलाओं ने इसे अपने खिलाफ माना और तीसरे फेज में बिहार की सत्ता की बाजी ही पलट दी.
याद कीजिए, जब अप्रैल 2016 से बिहार में शराबबंदी लागू किया गया तो यह बेहद क्रांतिकारी कदम माना गया. सीएम नीतीश कुमार ने इसे सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव का आधार बताया और इसे बड़े पैमाने पर पूरे बिहार में सख्ती से लागू किया गया. हालांकि, तत्काल ही इससे 4000 करोड़ रुपये की राजस्व हानि हुई और राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति और कमजोर हुई. बाद के दौर में इस नुकसान की पूर्ति अन्य स्रोतों से की गई, पर एक तथ्य यह भी है कि शराबबंदी के बावजूद तस्करों के माध्यम से शराब (शराब प्रेमी इसे अंगूर की बेटी भी कहते हैं) हर जगह उपलब्ध हो जाती है. जाहिर है यह प्रशासनिक खामियों की वजह है, लेकिन शराबबंदी के फेल्योर को ही आगे कर लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने सीएम नीतीश कुमार की नाकामी कहा और उनको लगातार टारगेट किया. आरोप यह कि नयी पीढ़ी के लोग शराब तस्करी में लग गए हैं. यही वजह रही कि शराबबंदी चुनावी विमर्श में भी आया और कांग्रेस ने 21 अक्टूबर को जारी अपने बदलाव पत्र में इसे शामिल करते हुए इसकी समीक्षा की बात कही. जाहिर है चाहे-अनचाहे शराबबंदी एक मुद्दा बन गया और आखिरकार यह चुनाव परिणामों में भी नजर आया.
दरअसल, 21 अक्टूबर को कांग्रेस का बदलाव पत्र आने के तुरंत बाद 28 अक्टूबर को मतदान था. इस चरण में 71 सीटों पर मतदान हुए. इस फेज में मत प्रतिशत पर नजर डालें तो शराबबंदी की समीक्षा का मुद्दा उतना नहीं गरमाया और महिलाओं के मुकाबले पुरुषों ने अधिक वोट डाले. पहले पेज में 56.83 पुरुषों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया तो महज 54.41% महिलाओं ने अपने वोटिंग राइट्स का इस्तेमाल किया. यानी यहां महिलाएं करीब ढाई प्रतिशत के अंतर से पीछे रहीं. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि जैसे-जैसे जमीन पर यह संदेश फैलने लगा कि अगर राजद की सरकार आई तो शराबबंदी खत्म कर दी जाएगी. इससे महिलाओं की चेतना जगी और दूसरे फेज में महिलाओं ने इसे अपने जीवन पर बुरे प्रभाव के तौर पर देखना शुरू कर दिया. यही वजह रही कि दूसरे चरण में पुरुष मतदाताओं ने 52.92% तो महिला वोटरों ने 58.80% मत डाले. जाहिर है महिलाओं को यह अहसास होने लगा था कि अगर राजद-कांग्रेस की सरकार आई तो उनके जीवन की खुशहाली छिन जाएगी.
सबसे बड़ा अंतर तो तीसरे चरण में दिखा जिसने पूरा का पूरा चुनावी पासा ही पलट दिया. इस फेज में जहां 54.8% पुरुषों ने वोट डाले तो महिला वोटरों ने 65.54% मतदान किया. जाहिर है करीब 11 प्रतिशत के इस अंतर ने आखिरी फेज की 78 सीटों पर गहरा असर डाला. तीनों चरणों का औसत निकाले तो पुरुषों ने 54.6% और महिलाओं ने 59.7% मतदान किया यानी 5.1% का बड़ा अंतर रहा, जिसने संभावित चुनाव परिणाम ही बदल डाला. दरअसल, 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस साथ थे. चुनावी सभाओं में तीनों दलों की ओर से शराबबंदी का वादा किया था. सरकार बनने के बाद अप्रैल 2016 में राज्य में शराबबंदी का कानून बना और लागू हुआ. उस समय इन तीनों दलों की सरकार थी तब किसी ने इसका विरोध नहीं किया. अब पांच साल बाद उस समय की सरकार में शामिल राजद और कांग्रेस इस कानून पर सवाल उठाया. वहीं, तेजस्वी यादव और वाम दलों ने भी इससे इनकार नहीं किया. ऐसे में महिलाओं ने इसे अपने खिलाफ माना और तीसरे फेज में बिहार की सत्ता की बाजी ही पलट दी.