न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
सिनेमा विधा मौलिक रूप से चाक्षुष कला का विस्तार है। भारत के राजारवि वर्मा से लेकर स्पेन के पाब्लो पिकासो तक के चित्रों से प्रेरणा लेकर फिल्मकारों ने दृश्य गढ़ें हैं। फिल्मों के पोस्टर तो पूरी तरह चाक्षुष कला के ही प्रतिरूप हैं। इसी मौलिक कारण की वजह से पहले के समय में फिल्मों के पोस्टर पेंटरों द्वारा बनाए जाते थे। असल में चाक्षुष कला सिनेमा विधा की आंखें हैं।
उक्त बातें पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय पांडेय ने कहीं। वे पाटलिपुत्र सिने सोसायटी के आॅनलाइन कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। विषय था : ‘चाक्षुष कला और सिनेमा।’
डॉ. पांडेय ने स्टेनली क्युब्रिक, ज्यां गोदार, यसूजिरो ओज़ू, अकिरा कुरुसावा, अल्फ्रेड हिचकॉक जैसे फिल्मकारों का उदाहरण देकर बताया कि विश्व के महान फिल्मकारों ने पेंटिंग, मूर्तिकला, फोटोग्राफी व स्थापत्यकला से प्रेरणा लेकर अपने फिल्मों के दृश्यों के कंपोजिशन तैयार किए। सत्यजीत रे तो अपनी फिल्मों के हर शॉट को पहले कागज पर स्केच बनाकर उसे स्वरूप दे दिया करते थे, फिर उसको कैमरे के माध्यम से फिल्माते थे। यह फाइन आर्ट्स का सिनेमा में शानदार उपयोग का उदाहरण है।
डॉ. पांडेय ने रंगों के सिनेमाई महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1993 में रंग तकनीक के बावजूद स्टीवन स्पील्बर्ग ने अपनी फिल्म ‘शिंडलर्स लिस्ट’ को ब्लैक एंड व्हाइट में बनाया और लाल रंग को एक खास तरीके से उपयोग किया। इसी प्रकार दक्षिण भारत के फिल्मकार प्रियदर्शन ने फिल्म ‘कांजीवरम’ को सेपिया रंग में फिल्माया। जापानी फिल्मकार यसूजिरो ओज़ू अपनी फिल्मों के दृश्य में लाल रंग वाली एक वस्तु को एक खास प्ररिप्रेक्ष्य में उपयोग करते थे। रंगों के इन विशेष इस्तेमाल से फिल्मकार एक विशेष संदेश देना चाहते हैं। फिल्म में रंगों के खास इस्तेमाल की प्रेरणा चित्रकला से आयी है। दूसरे शब्दों में कहें तो पेंटिंग ने फिल्मों में रंग भर दिया है।
स्थापत्यकला के बारे में डॉ. पांडेय ने बताया कि स्थापत्यकला का व्यापक इस्तेमाल फिल्मों में सेट डिजाइन करने के लिए किया जा रहा है। के. आसिफ से लेकर संजय लीला भंसाली तक ने स्थापत्यकला का भव्य उपयोग किया है। यहां तक की फिल्म बाहुबली में वीएफएक्स की मदद से सेटों की भव्यता को स्वरूप प्रदान किया गया। इससे यह भी पता चलता है कि समय के साथ फिल्म निर्माण की तकनीक जरुर बद रही है। लेकिन, व्यूजुअल आर्ट अपने मौलिक रूप में आज भी सिनेमा को सहारा दे रहा है।