न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
सूर्योपासना का पर्व छठ को लेकर पूरा बिहार भक्तिमय हो गया है। धर्म की दीवार भी लोक आस्था के इस महापर्व छठ में टूट जाती है। बीरचंद पटेल स्थित मिलर हाई स्कूल के सामने छठ महापर्व को लेकर मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की आस्था देखते बन रही है। जिस मिट्टी के चूल्हे पर व्रती महिलाएं छठ का प्रसाद तैयार करती हैं, उसे पटना में कोई और नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय की महिलाओं का परिवार ही तैयार कर रहा है। राजधानी में सामाजिक व धार्मिक सद्भाव की यह मिसाल वर्षों से शहरवासियों को देखने को मिल रही है। चूल्हे तैयार करने व उसकी बिक्री करने के दौरान ये महिलाएं शुद्धता व स्वच्छता का खास ख्याल रखती हैं। इसके अलावा दौरा, डांगर, सूप, हाथी कोसी व छठ से जुड़े अन्य सामग्रियों से सड़कें पटी हुई हैं।
पूर्णिया, साहेबगंज और मधुपुर से मंगाया जाता है दौरा
बिशुनपुर, पकड़ी के रहने वाले ओमप्रकाश पंडित बीरचंद पटेल में छठ व्रतियों के लिए दौरा, सूप की बिक्री कर रहे हैं। वे बताते हैं, छोटे व्यवसायी दानापुर, चितकोहरा और चैनीटांड से छठ से जुड़े ऐसी सामग्रियां मंगाते हैं। जबकि, इन जगहों पर पूर्णिया, साहेबगंज और मधुपुर से बड़ी संख्या में ये सामग्रियां मंगाई जाती है। छह सूप के साइज का दौरा 200 रुपए में मिल रहा है। जोड़ा में सूप 120 रुपए में और सूपी 35 रुपए में बिक रहा है। इसके अलावा रंगीन हाथी कोसी की कीमत 200 और सादा कोसी की कीमत 100 रुपए है।
मांसाहार का सेवन नहीं, शुद्धता का ध्यान
बीरचंद पटेल में पिछले 15 साल से मिट्टी के चूल्हे तैयार कर रहीं मजो खातून बताती हैं, यहां 20 परिवार की महिलाएं मिट्टी के चूल्हे तैयार कर रही हैं। कुल मिलाकर हजार से अधिक चूल्हे यहां से बिक जाते हैं। जोड़ा में बड़ा चूल्हा 350 रुपए में बिक रहा है। जबकि, जोड़ा में छोटा चूल्हा 250 रुपए में बिक रहा है। वे आगे कहती हैं, मिट्टी के चूल्हे तैयार व बिक्री करते समय इस व्यवसाय में उनके समुदाय की लगीं सभी महिलाएं न खाना खाती हैं और न ही पानी का सेवन करती हैं। मांसाहारी खाना तो वे सभी भूल ही जाती हैं।
पुनपुन और परसा से मंगाई जाती है मिट्टी
दारोगा राय पथ, हड़ताली मोड़ व बीरचंद पटेल जैसे इलाकों में पिछले 15 वर्षों से छठ व्रतियों के लिए मिट्टी के चूल्हे तैयार कर रहीं मुस्तरी खातून कहती हैं, यह पर्व हमारे लिए भी महान है। दुर्गापूजा के बाद से ही हमारे समुदाय की अन्य महिलाएं छठ व्रतियों के लिए मिट्टी के चूल्हे तैयार करना शुरू कर देती हैं। चूल्हे बनाने के लिए पुनपुन व परसा से मिट्टी, भूसा और बालू मंगाए जाते हैं। वे आगे कहती हैं, कार्तिक छठ में एक महिला 50-60 चूल्हा बेच लेती हैं। एक चूल्हे को अंतिम रूप देने में उन्हें दो से तीन दिन लगते हैं।