न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
बिहार विधानसभा के चुनावी जंग को जीतने जदयू और भाजपा समेत सभी दलों ने आधुनिक और खर्चीला इंतजाम किया है। जिनके सहारे गरीबों के बीच चुनाव प्रचार किया जाएगा।
बाढ़ और कोरोना से त्रस्त एवं आर्थिक रूप से जर्जर जनता को चिढ़ाने के लिए ये शानदार आलीशान वाहन उनके बीच से गुजरेंगे और अपने वायदों का टेप बजाएंगे।यानी आलीशान सवारी के साथ-साथ नई तकनीक से जनता से वोट लेने की दोबारा तैयारी पूरी हो गई है।
पटना में दीघा के पास बने नए पुल के नीचे गंगा की गोद मे स्थित खाली जगह पर ऐसी सैकड़ो गाड़ियों का जमावड़ा देखा जा सकता है। इन गाड़ियों को आगामी विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड के प्रचार के लिए तैयार किया जा रहा है। सभी गाड़ियों को एलइडी जैसी सुविधाओं के साथ लैस किया जा रहा है। गाड़ियों को तैयार करने का ठीका किसी खास एजेंसी को दिया गया है। इनमें नब्बे प्रतिशत गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन नम्बर एच आर 67 है अर्थात इन्हें पानीपत से लाया गया है।
यहां मेला सा लगा है। जो लोग गाड़ियों को तैयार कर रहे हैं, उनकी सुख सुविधा के इंतेजाम के साथ बड़े स्क्रीन पर सिनेमा देखने और गाने सुनने की व्यवस्था की गई है।
इसे देखने मात्र से अहसास होता है कि आधुनिकता के साथ प्रजातांत्रिक चुनाव कितने बदल गए हैं। पुराने समय मे राजनीतिक पार्टियां लोगो से गाड़ियां मांगती थी या भाड़े पर लेती थी, लेकिन आज चंदा से उनकी अमीरी काफी बढ़ गयी है।
एक ऐसे देश मे जहां महामारी संकट के बाद लोगो की नौकरियां जा रही हैं, किसान मजदूर बेहाल हैं, आर्थिक संस्थान अपने को दिवालियेपन से बचाने के लिए जूझ रहे है । राजनीतिक पार्टियों की जश्र पार्टी जारी है। धड़ल्ले से एजेंसियां हायर की जा रही है।
इस काम के लिए आईआईटी से प्रशिक्षित पेशेवर मुंह मांगी कीमत पर हायर किये जाते हैं। जिनको ये शोध करना होता है कि कैसे मतदाताओं को पास लाया जा सके। ऐसा करते करते प्रशान्त किशोर खुद भी राजनेता बन चुके हैं और जदयू के उपाध्यक्ष का पद भी पूर्व में संभाल चुके हैं।
बहरहाल, चुनाव अब जनतांत्रिक और आत्मिक से ऊपर उठ चुके हैं। पुराने सामाजिक जातीय समीकरण तो आज भी कायम है , लेकिन चुनावों की तैयारी कॉरपोरेट स्टाइल में लैपटॉप पर की जाती है। इस बात को खंगाला जाता है कि कौन से मुद्दों पर जोर देना है और विपक्ष की कौन सी रग पर चोट देना है। पैसा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पानी की तरह बहाया जाता है।
ये सुसज्जित गाड़ियां किसी लड़ाकू राफेल से कम नही है, जो तैयार हो के विपक्ष की किलेबंदी को भेदने के लिए सड़क पर उतरेंगी। पैसे के कारोबार की हालत ये है कि भूत में जिस उम्मीदवार को टिकट मिलता था उसे पार्टी फंड से चुनाव लड़ने के लिए पैसे मिलते थे।
आजकल उम्मीदवार करोड़ों रूपये पार्टी को देकर टिकट खरीद लेते हैं। इसे कहते हैं समय के साथ बदलाव।