न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : नई दिल्ली :
भारत ने नेपाल और चीन से सटी सीमा पर सड़क पहुंचाने के साथ ही ढांचागत सुविधाओं का विकास भले ही तेज कर दिया हो, लेकिन संचार सुविधाओं की स्थिति में काफी सुधार की गुंजाइश है। इस मामले में नेपाल बेहतर स्थिति में है, आलम यह है कि भारत के सीमावर्ती गांवों में बीएसएनएल के सिग्नल कमजोर होने के कारण लोग नेपाल के सिम का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। यह स्थिति उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश के महाराज गंज तक बनी हुई है।
उत्तराखंड में नेपाल सीमा पर बीएसएनएल के टावर हैं। यहां पर टावर पहाड़ के ऊंचे स्थल पर लगे हैं, लेकिन सामने नेपाल होने के कारण इनकी क्षमता बहुत कम रखी गई है। भारतीय गांव घाटियों में हैं, जहां तक सिग्नल पहुंचते ही नहीं हैं, ऐसे में लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए गांव से दूर किसी ऊंचे स्थान की तलाश करनी पड़ती है। वहीं, नेपाल की सरकारी संचार एजेंसी स्काई इंसेट के टावर के सिग्नल शक्तिशाली हैं। भारत में ये 40 किलोमीटर का दायरा कवर कर रहे हैं। यही वजह है पंचेश्वर से लेकर कालापानी तक सीमा पर स्थित गांवों और कस्बों के ज्यादातर लोग नेपाल के सिम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन सिम की अवैध रूप से खरीद-फरोख्त होती है। वहीं, महाराजगंज में भी करीब आठ किलोमीटर के भारतीय इलाके में नेपाली नेटवर्क काम करता है। सीमा पर नेपाल की सरकारी संचार एजेंसी के अलावा वहां की दो निजी कंपनियों ‘नमस्ते’ और ‘एनसेल’ ने भी टावर लगाए हैं। इन टावर की रेंज भी भारत में 15-16 किलोमीटर तक है।
सीमा पर नेपाली सिम की कालाबाजारी
नेपाल की तीनों संचार कंपनियों के सिम भारत में अवैध रूप से मिलते हैं। नेपाल में संचार कंपनियों को सिम का टारगेट दिया जाता है और सीमावर्ती क्षेत्रों में मांग होने के कारण इन्हें आसानी से यहां ग्राहक मिल जाते हैं। सामान्यतया नेपाल के सिम भारत में डेढ़ सौ रुपये में मिलते हैं।
छह रुपये का रिचार्ज कराओ, 12 घंटे में सौ मिनट पाओ
उत्तराखंड में नेपाली सिम में सुबह पांच बजे छह भारतीय रु पये का रिचार्ज करने पर सायं पांच बजे तक सौ मिनट बात कर सकते हैं। इंटरनेट के लिए 20 रु पये से अधिक के कूपन होते हैं। वहीं, महाराज इलाके में नेपाली नेटवर्क से नेपाली नंबर पर बात करने के लिए 10 सेकेंड के महज 83 पैसे और भारतीय नंबर पर आइएसडी कॉल के भी महज 3.72 नेपाली रुपये प्रति मिनट लगते हैं। जबकि भारतीय नेटवर्क से नेपाली नंबर पर बात करने के लिए प्रति मिनट 11 से 13 भारतीय रुपये देने पड़ते हैं। ऐसे में सोनौली, खनुआ, नौतनवा, बरगदवा, ठूठीबारी, झुलनीपुर, बहुआर, परसामलिक आदि इलाकों में नेपाली टेलीकॉम कंपनी के सिमकार्ड खूब इस्तेमाल होते हैं।
प्रशासन ने घोषित किया शैडो एरिया
सीमा पर सक्रिय भारत विरोधी तत्व भी नेपाली मोबाइल कंपनियों का ही प्रयोग करते हैं। इससे उनकी गतिविधियों की जानकारी प्रशासन व सुरक्षा एजेंसियों को समय रहते नहीं मिल पाती। नेटवर्क की समस्या के चलते उत्तर प्रदेश प्रशासन ने सोनौली, निचलौल व ठूठीबारी के कई इलाकों को शैडो एरिया घोषित कर रखा है। चुनाव के समय इन बूथों की वेबकास्टिंग तक नहीं हो पाती, जिसके चलते इन केंद्रों को वायरलेस से जोड़ना पड़ता है।
अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट से भाजपा सांसद अजय टम्टा ने बताया कि ‘सीमा पर संचार सेवा को मजबूत करने के लिए टावर लगाने के प्रस्ताव हैं। इसके लिए सर्वे भी किया जा चुका है। सर्वे पूरा होते ही टावर लगाने का कार्य शुरू हो जाएगा।’
सेवानिवृत कर्नल एमएस बल्दिया ने कहा कि ‘भारतीय सीमा पर चीन और नेपाल जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं, उसको देखते हुए सरकार को सीमा क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना होगा। नेपाल-चीन सीमा पर भारतीय संचार सुविधा बहुत ही लचर है। मजबूरन भारतीयों को भी नेपाल के सिम का इस्तेमाल करना पड़ रहा है, इंटरनेट भी उन्हीं सिमों से चलाया जा रहा है। यह आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से भी खतरा है।’
महराजगंज के डीएम डॉ उज्जवल कुमार ने बताया कि नेपाली नेटवर्क की पहुंच भारतीय क्षेत्र में न हो, इसके लिए दूरसंचार विभाग के अधिकारियों से बात कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। आवश्यकतानुसार नेपाल के अधिकारियों से भी इस विषय में बात की जाएगी।