
न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★मुगल-ए-आजम फिल्म को बनाने में उन्हें 14 साल के लगे थे। इसमें उन्होंने पैसे को पानी की तरह से बहाया था कि सभी सीन रियल लगे। इस फिल्म के सिर्फ एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख का खर्चा आया और 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद ने ये गाना चुना था। एक वक्त ऐसा भी आया था कि उनके इसी पागलपन की वजह से उन्हें निर्देशन से हाथ भी धोना पड़ा था लेकिन मनमोहन देसाई के कहने पर उन्हें इसे डायरेक्ट करने का अवसर मिल गया था। फिल्म मुगल-ए-आजम में पहली बार भारतीय सेना के हाथी, घोड़ों और सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था। ऐसा करने के लिए के.आसिफ ने तत्कालीन रक्षामंत्री कृष्णा मेनन से बाकायदा इजाजत ली थी और इस सीन की शूटिंग पर कृष्णा मेनन खुद मौजूद थे।★
हिंदी सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर के.आसिफ की आज 52 वीं पुण्यतिथि है। वो एक मात्र ऐसे डायरेक्टर थे, जिन्होंने अपने करियर में 2 फिल्में डायरेक्ट की थीं। हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्म में से एक मुगल-ए-आजम भी इन्हीं की देन है।
मुगल-ए-आजम फिल्म को बनाने में उन्हें 14 साल के लगे थे। इसमें उन्होंने पैसे को पानी की तरह से बहाया था कि सभी सीन रियल लगे। इस फिल्म के सिर्फ एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख का खर्चा आया और 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद ने ये गाना चुना था।
एक वक्त ऐसा भी आया था कि उनके इसी पागलपन की वजह से उन्हें निर्देशन से हाथ भी धोना पड़ा था लेकिन मनमोहन देसाई के कहने पर उन्हें इसे डायरेक्ट करने का अवसर मिल गया था। फिल्म मुगल-ए-आजम में पहली बार भारतीय सेना के हाथी, घोड़ों और सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था। ऐसा करने के लिए के.आसिफ ने तत्कालीन रक्षामंत्री कृष्णा मेनन से बाकायदा इजाजत ली थी और इस सीन की शूटिंग पर कृष्णा मेनन खुद मौजूद थे।
के.आसिफ ने चार शादियां की थी। उनकी इस हरकत से पहली पत्नी सितारा देवी बहुत नाराज हुई थीं। आखिरकार उन्होंने घर छोड़ दिया और जाते-जाते के.आसिफ को श्राप दिया- तुम बेमौत मरोगे, मैं तुम्हारा मरा मुंह भी नहीं देखूंगी। जब सालों बाद 9 मार्च 1971 को संजीव कुमार के घर अचानक के. आसिफ की मौत हो गई तो सितारा ने कसम तोड़ दी और पत्नी होने के नाते सारी रस्में अदा कीं। आज उनकी 52वीं डेथ एनिवर्सरी पर पढ़िए के.आसिफ की जिंदगी से जुड़े कुछ अनछुए पहलू…
के.आसिफ का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ था। उनके पिता फैजल करीम और मां बीबी गुलाम फातिमा थीं।
1946 में शुरू हुई फिल्म मुगल-ए-आजम की शूटिंग
किस्सा शुरू करते हैं फिल्म मुगल-ए-आजम से। इस फिल्म मेकिंग तब शुरू हुई थी, जब देश में अग्रेजों का शासनकाल था। उर्दू नाटककार इम्तियाज अली ताज ने 1922 में सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी के बारे में एक नाटक लिखा था। इसी से प्रेरित होकर के.आसिफ और प्रोड्यूसर शिराज अली हकीम ने फिल्म मुगल-ए-आजम बनाने के बारे में सोचा। इसके बाद 1946 में बाॅम्बे टाकीज में फिल्म का निमार्ण शुरू हुआ।
भारत-पाकिस्तान विभाजन की वजह से शूटिंग अनिश्चितकाल के लिए रोक दी गई
फिल्म में अकबर के रोल के लिए चंद्र मोहन, सलीम के रोल के लिए डीके सप्रू और अनारकली के रोल के लिए नरगिस को कास्ट किया गया था। हालांकि, 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन, राजनीतिक तनाव और सांप्रदायिक दंगों की वजह से फिल्म की शूटिंगअनिश्चितकाल के लिए रोक दी गई थी।
फिल्म मुगल-अ-आजम को बनने में 14 साल लगे थे
विभाजन के बाद प्रोड्यूसर शिराज अली पाकिस्तान चले गए थे, जिसके बाद फाइनेंसर के तौर पर के.आसिफ के पास कोई नहीं था। बाद में शापूरजी मिस्त्री फिल्म के फाइनेंसर बने।
नए स्टार कास्ट के साथ शूटिंग दोबारा शुरू हुई
1949 में एक्टर चंद्र मोहन का हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया था। साथ ही कई लोगों ने फिल्म में काम करना छोड़ दिया। इसके बाद नए स्टार कास्ट के साथ फिल्म मेकिंग की दोबारा शुरुआत हुई।
नए स्टार में पहले सलीम के रोल के लिए के.आसिफ ने दिलीप कुमार को रिजेक्ट कर दिया था लेकिन बाद में कास्ट कर लिया था। अनारकली के रोल के लिए पहले नूतन को अप्रोच किया गया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। जिसके बाद मधुबाला को अनारकली के रोल में एंट्री मिली।
बेल्जियम से शीश महल के लिए शीशे मंगवाए
के.आसिफ फिल्म से जुड़ी हर चीज को बेहद बारीकी से करते थे। मुगल-ए-आजम का सेट बनवाने में दो साल लग गए थे। भारत में रंगीन शीशा उतना अच्छा नहीं मिलता था, इसलिए के.आसिफ ने बेल्जियम से शीशा मंगवाया था।
एक बार फाइंनेसर शापूरजी मिस्त्री ईदी पर चांदी की प्लेट पर कुछ सोने के सिक्के और एक लाख रुपए लेकर के.आसिफ के घर गए थे। आसिफ ने सिर्फ टोकन के तौर पर एक सिक्का उठा लिया और कहा- बाकी बचे पैसों से आप बेल्जियम से शीशा मंगवा दीजिए। के.आसिफ को फिल्म के शीश महल का आइडिया जयपुर के आमेर किले के शीश महल से मिला था।
एक गाने का शूट करने का खर्च 10 लाख
इस फिल्म का गाना ‘प्यार किया तो डरना क्या’ भी आज के फेमस गानों में से एक है। इस गाने का फिल्माने में करीब 10 लाख का खर्च आया था। 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद साहब ने ये गाना चुना था। इस गाने को लता मंगेशकर ने स्टूडियो के बाथरूम में जाकर गाया था, क्योंकि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें वो धुन या गूंज नहीं मिल पा रही थी जो उन्हें उस गाने के लिए चाहिए थी।
म्यूजिक के लिए आसिफ ने नौशाद के सामने रख दिया नोटों से भरा बैग
के.आसिफ फिल्म मुगल-ए-आजम के लिए यादगार म्यूजिक चाहते थे। इसके लिए वो एक बार नोटों से भरा बैग लेकर नौशाद साहब से घर चले गए थे। उनकी ये हरकत नौशद साहब को पसंद नहीं आई और उन्होंने पैसों से भरा सूटकेस फेंक दिया, सारे नोट कमरे में बिखर गए।
तभी उनका नौकर कमरे में आ गया। इतने सारे पैसों देख कर वो नौशद साहब की बीबी को जाकर बता दिया। फिर उनकी बीबी भी कमरे में आईं और पूछा कि माजरा क्या है। इसके बाद वो और नौकर दोनों पैसे उठाने लगे।
के.आसिफ ने उनसे मांफी मांगते हुए कहा- जिद मत करिए नौशाद साहब, पैसे रख लीजिए और आप ही मेरे साथ काम करेंगे। इस पर नौशाद साहब भी मुस्कुरा कर बोले- आप अपने पैसे वापस लीजिए, हम लोग साथ काम करेंगे।
इस फिल्म के एक गाने के लिए 300 से 400 रुपए लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने लिए थे। वहीं गुलाम अली खां ने एक गाने के लिए 25,000 रुपए लिए थे।
डेडिकेशन ऐसा कि नंगे पांव चलने लगे थे गर्म रेत पर
फिल्म के एक सीन की शूटिंग राजस्थान में हो रही थी, जहां की रेत पर पृथ्वीराज कपूर को नंगे पांव चलना था। इस सीन को पूरा करने में पृथ्वीराज कपूर के पांव पर छाले पड़ गए थे। जब ये बात के.आसिफ को पता चली तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और नंगे पैर रेत पर कैमरे के पीछे चलने लगे। उनके इस डेडिकेशन पर वहां मौजूद सब लोग हैरान थे।
सिनेमा में पहली बार भारतीय सेना के जानवरों और सैनिकों का इस्तेमाल
फिल्म मुगल-ए-आजम में पहली बार भारतीय सेना के हाथी, घोड़ों और सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था। युद्ध के सीन को फिल्माने के लिए जयपुर रेजिमेंट के सैनिकों को शामिल किया गया था। ऐसा करने के लिए के.आसिफ ने तत्कालीन रक्षामंत्री कृष्णा मेनन से बाकायदा इजाजात ली थी और इस सीन की शूटिंग पर कृष्णा मेनन खुद मौजूद थे।
सोहराब मोदी ने दिलाई थी के.आसिफ को फिल्म मुगल-ए-आजम
के.आसिफ फिल्म मुगल-ए-आजम को एक बेहतरीन फिल्म बनना चाहते थे। इस वजह से समय और पैसे, दोनों की कमी हो गई थी। इस बात से तंग आकर फिल्म के निर्माता शापूरजी पालनजी मिस्त्री दूसरा डायरेक्टर चाहते थे। कुछ समय उन्होंने सोहराब मोदी को फिल्म के लिए चुना। कई मीटिंग के बात ये तय हो गया कि फिल्म को सोहराब मोदी डायरेक्टर करेंगे। एक दिन सोहराब मोदी मुगल-ए-आजम का सेट देखने गए। लौटते समय उनकी गाड़ी खराब हो गई तो शापूरजी ने अपने ड्राइवर को उन्हें घर छोड़ने के लिए कहा।
शापूर जी का ड्राइवर रास्ते में सोहराब मोदी से कहने लगा- साहब, आसिफ मियां भी अजीब आदमी है। यहां शूटिंग पर अनारकली के लिए हीरे-मोती की जिद करता है, लेकिन खुद उसके पास केवल दो जोड़ी कुर्ता-पाजामा है। यहां दिन में हीरे-पन्नों की बात करता है, जम्हूरियत की बात करता है, लेकिन खुद एक छोटे से घर में रहता है। सोता भी चटाई पर है। इतना ही नहीं जब सैलरी आती है तो दोस्तों और स्टूडियो के मजदूरों में बांट देता है। साहब, ये के आसिफ बड़ा भला आदमी है।
गाड़ी में ड्राइवर की बात का सोहराब ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसकी बात उनके दिल पर लग गई। उन्होंने घर पहुंच कर शापूरजी को फोन लगाया और कहा- मैं इस फिल्म को डायरेक्ट नहीं करूंगा। मेरी एक सलाह है कि अगर आप इस फिल्म का भला चाहते हैं तो के. आसिफ के अलावा फिल्म का निर्देशन किसी और को मत दिजिए। इस तरह के. आसिफ फिल्म के डायरेक्टर बने।
मामा की पत्नी से रचाई शादी
के. आसिफ सितारा देवी के पहले पति नाजिर के भांजे थे। मामा का हाथ बटाने के लिए वो हमेशा प्रोडक्शन जाया करते थे। वहीं उनकी मुलाकात हम-उम्र सितारा देवी से हुई थी। सितारा को स्टूडियो में काम करने के पैसे नहीं मिलते थे, जिससे वो नजीर से नाराज रहती थीं। वहीं के. आसिफ भी अपने मामा नजीर से परेशान रहते थे। इसी वजह से दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए।
दूसरी तरफ नजीर भी रोज-रोज के. आसिफ के स्टूडियो पहुंचने और पत्नी से बात करने पर नाराज थे। उन्होंने के. आसिफ के लिए दादर में दर्जी की दुकान खुलवा दी, जिससे वो सितारा से दूर चले जाएं, लेकिन इसके बाद भी सितारा और के. आसिफ नजदीक आ गए। बाद में सितारा देवी ने नजीर से तलाक लेकर उनके भांजे के. आसिफ से 1944 में कोर्ट मैरिज कर ली।
दो साल बाद ही के. आसिफ ने कर ली दूसरी शादी
सितारा से शादी के 2 साल बाद ही के. आसिफ ने लाहौर जाकर दूसरी शादी कर ली। उनकी इस हरकत से सितारा बहुत दुखी हुईं थीं। वो कहती थीं- के. आसिफ बेहद शरीफ, जहीन और तरक्की-पसंद इंसान थे और मेरा ख्याल भी रखते थे, लेकिन मुझसे उनकी रंगीनमिजाजी बर्दाश्त नहीं होती थी।
सितारा देवी की दोस्त ही बन गईं उनकी सौतन
40 के दशक में सितारा की दोस्त निगार से तीसरी शादी की। फिल्म मुगल-ए-आजम में सितारा के कहने पर ही निगार को मधुबाला के साथ गाने ‘तेरी महफिल में किस्मत आजमाने’ में काम मिला था। के.आसिफ के निगार से तीसरी शादी की हरकत से भी सितारा को बहुत ठेस पहुंची थी, इसके बावजूद उन्होंने के.आसिफ से रिश्ता नहीं तोड़ा। उनके कोई बच्चे नहीं थे, लेकिन वो निगार के बच्चों को खूब प्यार करती थीं।
उनकी बेटी जंयतीमाला ने फेमिना को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि सितारा देवी ने कभी पति के धोखे का असर निगार से अपनी दोस्ती पर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने अपने गुस्से और दर्द को समेटा और अपनी तड़प नृत्य के जरिए जाहिर की।
दिलीप कुमार की बहन से के.आसिफ ने की चौथी शादी
के.आसिफ ने चौथी शादी दिलीप कुमार की बहन अख्तर आसिफ से की थी। दिलीप कुमार अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे लेकिन आसिफ से शादी करने के बाद उन्होंने अपनी बहन से रिश्ता तोड़ लिया था। गुस्सा ऐसा कि दिलीप साहब मुगल-ए-आजम के प्रीमियर तक में नहीं पहुंचे।
सितारा देवी भी पति के इस हरकत से बहुत नाराज थीं। आखिरकार उन्होंने घर छोड़ दिया और जाते-जाते के.आसिफ को श्राप दिया- तुम बेमौत मरोगे, मैं तुम्हारा मरा मुंह भी नहीं देखूंगी। जब सालों बाद 9 मार्च 1971 को संजीव कुमार के घर अचानक के. आसिफ की मौत हो गई तो सितारा ने कसम तोड़ दी और पत्नी होने के नाते सारी रस्में अदा कीं।