न्यूज़ टुडे एक्सक्लूसिव :
डा. राजेश अस्थाना, एडिटर इन चीफ, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
एक तो इतने झंझवातों के साथ JDU सत्ता में पहुंचा, उसके बाद उसके ही दल के नेता परेशान करने में लगे हैं। 2020 विधान सभा चुनाव से पहले JDU बड़े भाई की भूमिका में रहता था। लेकिन चुनाव के बाद JDU के वो हालात नहीं रहे। JDU बिहार में तीसरे नंबर का दल बन कर रह गया है।
JDU सुप्रीमो नीतीश कुमार भले CM बन गए, लेकिन उन्हें इस बात दर्द अक्सर सालता रहा है कि वो तीसरे नंबर की पार्टी के मुखिया हैं। अभी CM नीतीश कुमार को ये दुख था ही, तबतक उनके पार्टी के नेता ही उनसे बिदकने लगे हैं। सरकार के साथ साथ पार्टी पर भी आरोप लगा रहे हैं। लेकिन नीतीश कुमार अब इन नेताओं को खोना नहीं चाहते हैं। उन्हें किसी भी हालत में अपने दल में बनाए रखना चाहते हैं। इससे लगने लगा है कि क्या नीतीश कुमार पहले की तरह मजबूत नहीं रहे हैं। वे अब कमजोर पड़ते जा रहे हैं।
पिछले 16 सालों में नीतीश कुमार की ऐसी स्थिति नहीं रही थी। नीतीश कुमार अपने दम पर बिहार की सरकार को चलाते रहे। जिधर चाहा, उधर घुमाते रहे।
तो…अब क्या हुआ?
गुरुवार को बिहार सरकार के मंत्री मदन सहनी ने इस्तीफा देने की पेशकश कर दी। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार में अफसरशाही हावी है। वो ऐसी व्यवस्था में काम करना नहीं चाहते हैं। इस आरोप के बाद JDU के साथ-साथ नीतीश कुमार भी आहत हो गए। आनन फानन में मदन सहनी को मनाने की कवायद शुरु कर दी गई।
सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार के निर्देश पर कुछ नेता मदन सहनी को मनाने में जुट गए। हालांकि मदन सहनी ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है और ना ही ये स्प्ष्ट किया है कि वो मान गए हैं। इस्तीफा वाला बयान देकर मदन सहनी अपने क्षेत्र चले गए।
तीन दिन पहले JDU के पूर्व विधायक मंजीत सिंह ने तेजस्वी यादव से मिलकर राजनीतिक पारा चढ़ा दिया था। मंजीत ने 3 जुलाई को RJD में शामिल होने की घोषणा भी कर दी थी। बात CM नीतीश कुमार तक पहुंची तो उन्होंने मंत्री लेसी सिंह और पूर्व मंत्री जयकुमार सिंह को गोपालगंज भेजा। मंजीत को मनाकर लेसी सिंह अपने साथ लेकर पटना आई और CM से मुलाकात कराया। मंजीत सिंह मान गए।
JDU, नीतीश को कमजोर मानने को तैयार नहीं लेकिन परिस्थितियां बदली तो हैं
इस पूरे मसले पर JDU की तरफ से कोई भी नेता बोलने को तैयार नहीं है। लेकिन बिहार में नीतीश कुमार कमजोर पड़े हैं, इसको मानने को भी तैयार नहीं है। उनका कहना है कि बिहार में एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो हर गठबंधन के लिए CM के चेहरे के तौर पर हैं। भले संख्याबल में थोड़ी कमी है, लेकिन मनोबल में कोई कमी नहीं है। नीतीश कुमार ही बिहार के एकमात्र मजबूत नेता हैं।
उधर, RJD सुप्रीमो लालू यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा है – गिरते- पड़ते, रेंगते-लेटते, धन बल-प्रशासनिक छल के बलबूते जैसे-तैसे थर्ड डिविज़न प्राप्त 40 सीट वाला जब नैतिकता, लोक मर्यादा और जनादेश को ताक पर रखकर मुख्यमंत्री बनता है, तब ऐसा होना स्वाभाविक है।
हालांकि पहले ऐसी घटनाओं से नीतीश कुमार पर कोई असर नहीं पड़ता था। बिहार में जब तक ये बड़े भाई की भूमिका में रहे, तबतक इक्का- दुक्का नेता इधर उधर होते रहे। नीतीश कुमार अपनी सरकार चलाने में मशगुल रहे। अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।
अब नीतीश कुमार की पार्टी 43 सीटों पर सिमट चुकी है। तीन दलों के रहमो-करम पर वो CM बने हैं। एक-एक विधायक जुटाकर 45 विधायकों की संख्या जुटाई है। अब नीतीश कुमार नहीं चाहते हैं कि उनके दल के नेता छिटकें।
ताकत बढ़ाने के लिए तोड़ने की कवायद
गौरतलब है कि इससे पहले कद्दावर नेता वृषण पटेल, उदय नारायण चौधरी, श्याम रजक, रमई राम के जाने से भी नीतीश कुमार को कोई फर्क नहीं पड़ा था। लेकिन अब के हालात ऐसे हैं कि इन्हें अपनी ताकत बढाने के लिए दूसरे दलों को तोड़ने की कवायद करनी पड़ रही है। कई नेता दबी जुबान में ही आरोप लगाते हैं कि CM नीतीश कुमार ने अपने नेताओं से संवाद खत्म कर लिए हैं। कोई भी बात करनी हो तो बीच में कई नेता और अधिकारी आ जाते हैं। ऐसे में असंतुष्ट नेताओं की एक फेहरिस्त खड़ी हो गई है।