
न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : नई दिल्ली :
कल सात दिसंबर को सरकार कृषि बिलों को लेकर आक्रामक हो गई। शाम तक कुछ संगठन भी पकड़ लाई जिनके हवाले से दावा किया जाने लगा कि वे सरकार के साथ हैं। किसी आंदोलन को फोड़ने का यह पुराना तरीक़ा है।
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद विपक्ष पर हमला करने लगे जिससे लग रहा है कि इस आंदोलन का भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा। अब तर्कों दलीलों की आँधियाँ चलेंगी, किसान के सवाल धूल बन कर उड़ जाएँगे। कोई यह तो बताए कि तीनों नए क़ानून से पहले भंडारण के लिए अडानी ग्रुप से करार किस क़ानून के तहत किया गया? जून 2019 की एक ख़बर है। FCI बिहार और पंजाब में भंडारण के लिए अडानी ग्रुप से एक करार करती है।
जिसके तहत बड़े बड़े साइलोस बनाए जाने थे। इस बात की जानकारी सामने आनी चाहिए कि भंडारण के लिए पहले प्राइवेट पार्टी को प्रवेश दिया जाता है और फिर एक साल बाद क़ानून बदल कर प्राइवेट कंपनियों को स्टॉक लिमिट से छूट दी जाती है। ऐसा क्यों किया गया? क्या इसलिए कि पहले अडानी ग्रुप को किरायेदार बना कर लाओ और फिर मकान ही दे दो! जून 2019 में इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार बिहार के कटिहार में अडानी ग्रुप अनाज रखने के लिए जो साइलोस बनाएगा उसे FCI तीस साल तक किराया देगी। ये सारी जानकारी उपलब्ध है। सरकार ही बता सकती है कि FCI ने अडानी ग्रुप को साइलोस बनाने के लिए अपनी ज़मीन दी है या प्राइवेट कंपनी ने अपनी ज़मीन ख़रीद कर साइलोस बनाए हैं ?