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रिंकू गिरी, स्थानीय संवाददाता, न्यूज़ टुडे मीडिया समूह :
★महात्मा गांधी समेकित अनुसंधान केंद्र, पिपराकोठी में मखाने की बीज का नर्सरी तैयार किया गया है। इसके लिए केवीके किसानों को प्रशिक्षित कर जागरूक करने की प्रक्रिया आरंभ किया है। जल्द ही पूर्वी चंपारण के किसानों को मखाना उत्पादन की जानकारी दी जाएगी। बिहार के अन्य क्षेत्रों में मखाने की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सरकार मखाना की खेती के लिए दे रही 75 फीसदी सब्सिडी, किसानों में खुशी का माहौल है।★
देश भर में प्राख्यात बिहार के दरभंगा एवं मधुबनी का मखाना अब चम्पारण में दस्तक देने से किसानों की तकदीर संवारने वाली है। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र पिपराकोठी इच्छुक किसानों को मखाने की खेती के लिए नई प्रजाति के बीज व तकनीक उपलब्ध कराने की तैयारी कर रही है।
महात्मा गांधी समेकित अनुसंधान केंद्र पिपराकोठी में मखाने की बीज का नर्सरी तैयार किया गया है। इसके लिए केवीके किसानों को प्रशिक्षित कर जागरूक करने की प्रक्रिया आरंभ किया है। जल्द ही पूर्वी चंपारण के किसानों को मखाना उत्पादन की जानकारी दी जाएगी। बिहार के अन्य क्षेत्रों में मखाने की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
सरकार ने छह जिलों में इसके खेती के लिए 75 फीसद सब्सिडी दे रही हैं। बंजर, बेकार व जलभराव की वजह से बेकार पड़ी भूमि किसानों के लिए सोना उगलेगा। वहीं छोटे-छोटे तालाब अब सालोभर मखाने की फसलों से गुलजार रहेगी। पूर्वी चंपारण में धनौती नदी में मखाना की खेती की जाती है। लगभग तीन किमी में मखाना की खेती यहां हो रही है। पूर्व प्रमुख व किसान ललन सहनी नदी में कई वर्ष से मखाना की खेती कर रहे हैं।
राज्य को मिला जीआई टैग
राज्य को बिहार का मखाना के लिए जीआई टैग मिलने के बाद किसानों को आमदनी की संभावनाएं बढ़ी है। कोरोना काल में मखाना लोगों का इम्युनिटी बढ़ाने में काफी मददगार साबित किया। इसी के बढ़ते मांग को लेकर लगातार इस पर चर्चाएं हो रही थी। अब अंत में सरकार की ओर से जीआई टैग मिल चुका है। जीआई टैग पाने वाला मखाना राज्य का पांचवां कृषि उत्पाद होगा, इससे पहले बिहार के शाही लीची, जर्दालु आम, मगही पान और कतरनी चावल को टैग मिल चुका है।
यह है जीआई टैग
डॉ. एस मंडल ने बताया कि किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडिकेटर कहते हैं। जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है। उस क्षेत्र के किसानों के उत्पाद की मांग राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ जाने से आमदनी में वृद्धि की संभावना हो जाती है।