न्यूज़ टुडे टीम ब्रेकिंग अपडेट : सहरसा- पटना/ बिहार :
सहरसा के बनमा इटहरी प्रखंड में स्थित स्वास्थ्य केंद्र को आखिर हम क्यों शटर वाला अस्पताल कह रहे हैं? दरअसल, तकरीबन 12 साल पहले इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की शुरुआत हुई, मगर 12 वर्षों से यह अस्पताल इस इलाके की 5 दुकानों में ही चल रहा है. बहुतों बार मरीजों को ऑपरेशन के बाद आसपास के लोगों के घर बिठाना पड़ता है.
आमतौर पर एक अस्पताल साल के 365 दिन और 24 घंटे मरीजों के इलाज के लिए खुला रहता है, लेकिन अगर यह कहा जाए कि बिहार में एक ऐसा शटर वाला अस्पताल है जो दिन में केवल 12 घंटे के लिए खुलता है और बाकी वक्त के लिए उसका शटरडाउन रहता है तो क्या आपको यकीन होगा? यह बात मगर 100 फ़ीसदी सच है.
में केवल 12 घंटे के लिए खुलता है और बाकी वक्त के लिए उसका शटरडाउन रहता है तो क्या आपको यकीन होगा? यह बात मगर 100 फ़ीसदी सच है.
बिहार के सहरसा जिले के बनमा इटहरी प्रखंड में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र प्रदेश का शायद इकलौता ऐसा अस्पताल है जिसका शटर केवल 12 घंटों के लिए ही खुलता है.
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को क्यों कहा जा रहा है शटर वाला अस्पताल ?
सहरसा के बनमा इटहरी प्रखंड में स्थित स्वास्थ्य केंद्र को आखिर हम क्यों शटर वाला अस्पताल कह रहे हैं ? दरअसल, तकरीबन 12 साल पहले इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की शुरुआत हुई, मगर बेहद चौंकाने वाली बात यह है कि 12 वर्षों से यह अस्पताल इस इलाके की 5 दुकानों में चल रहा है.
सुनने में यह बात बिल्कुल अटपटी सी लग सकती है मगर 100 फ़ीसदी सच है. इस अस्पताल का अपना कोई भवन नहीं है और यह पिछले 12 सालों से इस इलाके में स्थित बाजार समिति की 5 दुकानों में यह चल रहा है. यही कारण है कि इस अस्पताल को हम शटर वाला अस्पताल कह रहे हैं क्योंकि किसी भी दुकान की तरह इस अस्पताल का शटर सुबह 8 बजे शटर डाउन हो जाता है.
दुकान में कैसे चलता है अस्पताल ?
बनमा इटहरी प्रखंड का ये अस्पताल पांच दुकानों में चलता है. एक दुकान में आने वाले मरीजों का पंजीकरण होता है, दूसरी दुकान में डॉक्टर का कमरा और ऑपरेशन थिएटर है, तीसरी दुकान ओपीडी के रूप में काम करती है, चौथी दुकान में मरीजों को दवाइयां दी जाती हैं और पांचवीं दुकान कोविड-19 की वैक्सीन के भंडारण के रूप में काम आ रहा है.
रविवार को न्यूज़ टुडे की टीम इस अस्पताल की जमीनी हकीकत जानने के लिए बनमा इटहरी पहुंची और जिस हालत में इस अस्पताल को पाया वह ना केवल शर्मनाक है बल्कि बिहार की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था को नंगा करता है.
डॉक्टर और नर्स ने खोल दी अस्पताल की पोल पट्टी
बनमा इटहरी बाजार की पांच दुकानों में अस्पताल का संचालन होना कई सवाल खड़े करता है. आजतक की टीम ने इस अस्पताल के डॉक्टर और नर्स से जब बातचीत की तो उन लोगों ने इस अस्पताल की सारी असलियत सामने रख दी.
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाले डॉ लक्ष्मण सिंह ने कहा “अस्पताल के इस हिस्से में हम लोग ओपीडी चला लेते हैं. इसी जगह पर फिजिशियन भी बैठते हैं और हम अपना काम भी करते हैं. क्या करें. किसी तरीके से हम लोग काम चला रहे हैं. परिवार नियोजन का जो भी ऑपरेशन होता है वह हम इसी जगह करते हैं. डॉक्टर की टेबल को बाहर निकाल देते हैं और इस जगह पर बेंच लगा दिया जाता है. इसके बाद शटर को आधा गिरा दिया जाता है और पर्दा लगाकर ऑपरेशन किया जाता है. ऑपरेशन हो जाने के बाद अनिल मोदी नाम के एक के व्यक्ति हैं उनके निजी आवास पर मरीज को रखा जाता है. हम क्या कर सकते हैं. जिलाधिकारी और सिविल सर्जन कई दफा यहां पर आए हैं और आश्वासन देते हैं कि दूसरी जगह पर अस्पताल बनाएंगे मगर अब तक कुछ नहीं हुआ है.
इस अस्पताल में 5 डॉक्टर, 10 नर्स समेत तकरीबन दो दर्जन स्वास्थ्य कर्मी काम करते हैं. सब स्वास्थ्य कर्मी एक साथ आ जाते हैं तो यहां बैठ भी नहीं पाते हैं और अस्पताल के बाहर मैदान में मीटिंग करनी पड़ती है. अस्पताल सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक ही चलता है क्योंकि यहां पर शौचालय और पानी के पीने की व्यवस्था भी नहीं है. अगर रात 8 बजे के बाद कोई मरीज आता है तो वह दूसरे अस्पताल जाता है”.
अस्पताल में काम करने वाली नर्स जोइस किरकेट्टा ने कहा, “हम महिलाएं हैं मगर इस अस्पताल में ना तो पानी के पीने की व्यवस्था है ना ही शौचालय की. किसी के घर में जाकर हम शौचालय का इस्तेमाल कर लिया करते हैं. इस स्वास्थ्य केंद्र में 10 महिला स्वास्थ्य कर्मी काम करती हैं. इस तरीके की व्यवस्था 2008 से ही है. हम लोगों ने डीएम और सिविल सर्जन से भी शिकायत की, मगर सब लोगों ने केवल आश्वासन दिया और हुआ कुछ भी नहीं”.
क्या कहते हैं स्थानीय निवासी ?
इस इलाके के स्थानीय लोगों का भी कहना है कि पिछले तकरीबन 13 सालों से इन पांच दुकानों में ही अस्पताल का संचालन हो रहा है.