
न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : रुपौली- पूर्णिया/ बिहार :
कोरोना ने तो रिश्तों के मायने ही बदल दिए हैं, जहाँ मानवता बार बार शर्मसार हो रही है. एक ओर कोरोना से पिता की हुई मौत पर जज बेटे ने शव लेने से इन्कार करते हुए कहा कि अंतिम सांस्कार हम नहीं करेंगे, आप ही कर दीजिए. तो दूसरी ओर पिता की मौत के बाद श्मशान घाट पर ही प्रॉपर्टी के लिए आपस में भिड़ गए बेटे और जमकर लात-घूंसे चले. फिर श्मशान घाट वाले किसी तरह झगड़ा छुड़ाया. वहीं, एक और मामले में बेटी ने निभाया बेटे का धर्म, पिता को दी मुखाग्नि, शिक्षक पिता के शव को चार बेटियों ने ही दिया कंधा, पुरोहित ने कर्मकांड का हवाला दिया, लेकिन बेटियों की जिद जीती पूर्णिया जिले के रुपौली प्रखंड के बहदुरा गांव में बेटियों ने समाज में नई व्यवस्था कायम की है। शिक्षक पिता की मौत के बाद खुद ही मुखाग्नि दी और चार कंधे भी बेटियों के ही थे। समाज ने रोका, लेकिन बेटियों ने कहा कि बेटी और बेटा में कोई फर्क नहीं। पिता की अंतिम इच्छा भी यही थी। इसके बाद समाज ने बेटियों का साथ दिया।
बहदुरा गांव के 52 वर्षीय शिक्षक राघवेंद्र कुमार सिंह का शुक्रवार की देर रात पूर्णिया के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। परिजनों ने बताया कि राघवेंद्र सिंह को गत शुक्रवार की देर रात अचानक शुगर लेवल 700 के पार हो गया, जिस कारण वह बेहोश हो गए। आननफानन में एक निजी अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया।
आखिर मानना पड़ा समाज को
राघवेंद्र कुमार सिंह को संतान में चार पुत्रियां हैं। पिता की मौत पर मृतक राघवेंद्र बाबू की दूसरी बेटी श्रेया ने अपनी मां सहित तीनों बहनों को ढांढस बंधाया। पिता की अर्थी सजकर तैयार हुई तो चारों बेटियां कंधा देती हुई श्मशान तक पहुंची। वहां उपस्थित लोगों से श्रेया ने हाथ जोड़ कर कहा कि मेरे डैडी मुझे बेटा ही कहकर बुलाते थे। मेरे डैडी मुझसे कहा करते थे कि बेटा मेरी चिता को मुखग्नि तुम ही देना, जिससे समाज में एक संवाद जाए कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता है, इसलिए मैं अपने डैडी की चिता को मुखग्नि दूंगी। समाज के लोग पहले तो रूढ़िवादी मानसिकता का परिचय देते हुए श्रेया को ऐसा करने से मना करने लगे, लेकिन श्रेया की जिद्द के आगे समाज के लोगों को भी हामी भरनी पड़ी।
पारिवारिक पुरोहित ने कर्मकांडों का हवाला देते हुए श्रेया की बात खारिज करने का प्रयास किया, लेकिन श्रेया पुरोहित से भी हाथ जोड़ कर एक ही सवाल करती रही कि पंडित जी मुझे बेटा -बेटी में अंतर बता दीजिए, मैं आपकी बातों को मान लूंगी। पंडित जी के पास श्रेया के सवालों का कोई जवाब नहीं था। अंत में थक-हार कर पंडित जी ने भी श्रेया और उसके चचेरे भाई दोनों को मिलकर चिता को मुखग्नि देने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी।