न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय की एक रिपोर्टर से बातचीत का ऑडीयो- विडीयो वायरल हो रहा है. डीजीपी पांडेय बहुत बातें बोलने के साथ रिपोर्टर को गाली भी दे रहे हैं, जिसको सही नहीं कहा जा सकता है. इतने ऊँचे पद पर बैठे किसी अधिकारी-नेता के मुंह से ऐसी बातें सुनना अच्छा नहीं लगता है. और अब तो आम जनमानस में अधिकारी-नेताओं के बारे में ऐसी धारणा बना चुकी है कि जब भी ऐसी कोई बात सामने आती है तो लोग उनपर टूट पड़ते हैं. बात वायरल होती है और सिस्टम से निराश लोग भड़ास निकालने लगते हैं.
लेकिन बहुत बातें इतनी ब्लैक एंड वाइट नहीं होती. हम यहां डीजीपी के अतीत की कहानियों और भविष्य की योजनाओं (जो बातें आम हैं) को थोड़े समय के लिए साइड कर देते हैं. तो मुख्य मुद्दा यह है कि एक रिपोर्टर ने सुबह 3-4 बजे उन्हें अवैध बालू खनन की जानकारी देने को कॉल किया. और बाक़ायदा उनसे हुई बातचीत को रेकर्ड किया गया. मुख्य समस्या यही से शुरू होती है.
हर काम करने का कुछ क़ायदा होता है. रिपोर्टिंग में भी. (वैसे पत्रकारिता में अब कोई नियम क़ायदा रहा नहीं, फिर भी…) अब वर्तमान स्थिति को देखें, तो अवैध बालू खनन रोज़ का काम है. इसलिए उसकी रिपोर्टिंग के लिए बाक़ायदा प्लान बनाकर गए होंगे. फिर घटना के वक्त लोकल थाना को या ज़िम्मेदार अधिकारी को सूचना देनी चाहिए थी. अगर किसी वजह से उस वक्त वो न सुनें या सूचना पर कार्रवाई न करें तो बाद में इसी हिसाब से स्टोरी चलाइए. बाद में भी किसी नेता-अधिकारी की प्रतिक्रिया लेकर खबर चलायी जा सकती थी.
अब इस मामले में रिपोर्टर ने (शायद) घटनास्थल से ही सीधे डीजीपी को कॉल किया और उस कॉल को बाक़ायदा रेकर्ड भी किया. याद रखिए, कॉल रिकॉर्डिंग अब किसी भी मोबाइल का सामान्य फ़ंक्शन नहीं है. आइफ़ोन और ऐंड्रॉड 9 के ऊपर के मोबाइल में कॉल रिकॉर्डिंग बहुत लफड़े वाला काम है. मतलब कि कुछ सोचकर ही कॉल रेकर्ड किया गया होगा. वायरल ऑडीओ में बातचीत की शुरुआत या अंत नहीं है. बीच से एडिट कर खबर में लगाया गया है. अब हमें नहीं पता कि आख़िर दोनों की बातचीत इस मोड़ तक कैसे पहुंची. तो ये जो कुछ भी हुआ, उसको अनुचित और अमर्यादित कहते हैं. हालांकि न्यूज़ टुडे टीम इस वायरल ऑडियो की पुष्टि नही करता है।
अवैध बालू खनन बहुत गम्भीर मुद्दा है. रात में नदी किनारे खड़े होकर विडीयो रेकर्ड कर चला देना बहुत आसान काम है. मुश्किल काम है इस सरकार के बड़े नेताओं से सवाल पूछना कि जिस कम्पनी को ‘बालू माफिया’ कहा गया और एक राजनीतिक पार्टी को फ़ंडिंग करने का ढोल पीटा गया, उसी कम्पनी को फिर बालू खनन का लाइसेंस कैसे मिल गया?