न्यूज़ टुडे टीम अपडेट : पटना/ बिहार :
पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस, के तत्वाधान में ऑनलाइन माध्यम से एक व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान श्रृंखला में मुख्य अतिथि झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ० एस० एन० पाठक थे।
तकनीकी जानकारी का प्रसार से न्यायालय कार्य से संबंधित कर्मियों को मिला फायदा
कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस, पटना के तत्वाधान में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला 7 में “नोबेल कोरोना वायरस प्रकोप में भारतीय न्यायपालिका की कार्यविधि” विचार किया गया। इस व्याख्यान पर न्यायमूर्ति डॉ० एस० एन० पाठक ने कहा कि इस महामारी ने भारतीय न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ और सशक्त बनाने का हमें मौका दिया है। उन्होंने कहा कि तकनीकी जानकारी का प्रसार न्यायालय से संबंधित अन्य कार्य बल जैसे अधिवक्ता गण, उनके लिपिक, स्टेनोग्राफर, टाइपिस्ट, के बीच कर उनमें तकनीकी ज्ञान के विश्वास को बढ़ाने पर बल दिया।
ई-फाइलिंग व्यवस्था को सुलभ एवं सस्ता बनाने पर दिया गया बल
उन्होंने न्याय व्यवस्था एवं न्यायिक प्रक्रिया के अमूल्य परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि अब संप्रभु कार्य से अलग हटकर सेवा दायक संस्था के रूप में समाज में अपनी महत्ता स्थापित करना आवश्यक हो गया है। ई-फाइलिंग व्यवस्था को सुलभ एवं सस्ता बनाने पर बल दिया। जिससे आम जनता भी आसानी से समझ सके और इस व्यवस्था को सहर्ष स्वीकार करें।
सभी जिला एवं अनुमंडल स्तर के न्यायालयों का भी किया जाए डिजिटलाइजेशन
उन्होंने कोविड-19 पैनडेमिक को एक अवसर के रूप में स्वीकार कर सभी नागरिकों को नए तकनीक को सभी क्षेत्रों में लागू कर नये भारत की स्थापना की महत्व पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही उन्होने सभी जिला एवं अनुमंडल स्तर के न्यायालयों को भी डिजिटलाइजेशन कर अमूल्य परिवर्तन कर न्यायिक व्यवस्था को सुलभ तकनीक आधारित बनाने की बात की जिससे न्यायालय कार्य से संबंधित अधिवक्ता एवं अन्य कर्मचारी गण ने सहर्ष आसानी से अपना सके जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर में बचत हो
डिजिटलाइजेशन ऑफ कोर्ट का अर्थ आधुनिकरण नहीं
वहीं इस व्याख्यान श्रृंखला में कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस के प्रधानाचार्य प्रोफेसर डॉ० तपन कुमार शांडिल्य ने अपने अध्यक्षीय और उद्घाटन भाषण में सबों का स्वागत करते हुए कहा कि आज के समय में भारतीय न्यायपालिका की प्रासंगिकता क्या है? किस प्रकार भारतीय न्यायपालिका के विभिन्न आयामों के बीच सामंजस्य लाया जाए, यह एक विचारणीय विषय है। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण, दबाव तथा हस्तक्षेप से मुक्त एक स्वतंत्र न्यायपालिका इस व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसके अलावा प्रोफेसर डॉ० रचना सुचिनमई, राजनीति शास्त्र विभाग, कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस, पटना ने अपने अवलोकन में कहा कि डिजिटलाइजेशन ऑफ कोर्ट का अर्थ आधुनिकरण नहीं समझना चाहिए बल्कि इसका जनतांत्रिककरण होना चाहिए जिससे हर नागरिक महसूस करें कि यह उनकी सुविधा के लिए है।
इस व्याख्यान श्रृंखला की समाप्ति आइ०क्यू०ए०सी० के समन्वयक प्रोफेसर संतोष कुमार, भौतिकी विभाग के धन्यवाद ज्ञापन से हुई। खुले सत्र में प्रश्नों की बौछार ने इसे और भी सूचना प्रद और मनोहर बना दिया। इस व्याख्यान श्रृंखला में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभिन्न विभागों के शिक्षक गण, छात्र एवं छात्राएं, अधिवक्ता और अन्य न्यायाधीश भी उपस्थित थे।